बिहार विधानसभा चुनाव 2025: महागठबंधन से मुद्दे ,बीजेपी से युवा और क्षेत्रीय आधार पर वोट बैंक में सेंध लगा सकती है पीके की जनसुराज

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव में चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने नए खिलाड़ी के तौर पर चुनावी मैदान में अपने उम्मीदवार उतारें है। पीके की पार्टी के चुनावी जंग में उतरने से किस दल को नुकसान हो सकता है, इस पर विचार किया जाए तो, इससे पहले पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालने से पता चलता है कि पिछले चुनाव में एनडीए से अलग होकर चुनावी मैदान में उतरी चिराग पासवान की एलजेपी ने नीतीश कुमार को अधिक नुकसान पहुंचाया था। कई सीटें ऐसी रही जहां एलजेपी को जितने वोट मिले उससे कम वोटों से जेडीयू हार गई।
अबकी चुनाव में पीके के उतरने से किस पार्टी को नुकसान होगा इसकी चर्चा सियासी तौर पर अधिक हो रही है। तो आपको बता दें पीके जनता के बीच में उन मुद्दों को लेकर जा रहे है जिन्हें महागठबंधन उठा रहा है। पीके ने शुरूआत में परिवारवाद को लेकर आरजेडी और लालू परिवार पर खूब निशाना साधा। पीके युवा वोटर्स ,बेरोजगारी और पलायन को लेकर वोट मांग रहे है। सियासी जानकारों का मानना है कि इससे मध्यम वर्ग के वोट पर असर पड़ने की उम्मीद है। इससे महागठबंधन में खासतौर पर आरजेडी के मतों पर असर पड़ सकता है।
जनसुराज से कांग्रेस को कम आरजेडी को हो सकता है भारी नुकसान
जनसुराज विपक्षी महागठबंधन के लिए वोट काटने में अहम भूमिका निभाएगी। इसका असर उन सीटों पर अधिक पड़ सकता है जहां महागठबंधन और एनडीए में जीत का अंतर बहुत ही कम है। ऐसी 30 सीटें बताई जा रही है। जहां महागठबंधन और एनडीए में जीत का अंतर 10% से भी कम रहा है। पीके प्रत्याशी की वजह से आरजेडी को एनडीए की सीटें पलटने में रूकावट आ सकती है। जनसुराज बेरोजगारी, शिक्षा और पलायन जैसे मुद्दों को उठाकर युवा यादव और मुस्लिम वोटरों को आकर्षित कर आरजेडी के मुस्लिम यादव वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। महागठबंधन में कांग्रेस की कमजोर स्थिति और सीमित सीटें पहले से ही आरजेडी पर दबाव बढ़ा रही हैं। जनसुराज के कारण अगर महागठबंधन का वोट शेयर और कम होता है, तो आरजेडी को सीटों का भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में बीजेपी के युवा वोट पर पीके का फोकस
कुछ जानकारों का मानना है कि पीके को ब्राह्मण वर्ग अधिक समर्थित कर रहा है, खासतौर पर बीजेपी को समर्थ करने वाला ब्राह्मण और सामान्य जाति का युवा वोटर्स पीके के समर्थन में नजर आ रहा है, यहीं मुख्य वजह हो सकती है कि पीके शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में युवा वोट को बीजेपी से चुराकर नुकसान पहुंचा सकते है। क्योंकि इन इलाकों में बीजेपी मजबूत स्थिति में होती है। पीके की जनसुराज से एनडीए खासतौर पर बीजेपी को शहरी और अर्ध शहरी विधानसभा क्षेत्रों में सीमित नुकसान हो सकता है।
एनडीए में बीजेपी को नुकसान और नीतीश को लाभ
आपको बता दें बीजेपी का बेस वोट ऊपरी जाति जैसे ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य शहरी और अर्ध शहरी क्षेत्रों में अधिक है। पीके की जनसुराज पार्टी का प्रभाव भी इसी वर्ग और क्षेत्र में है। असल में बिहार में 18-35 आयु वर्ग के मतदाता महत्वपूर्ण हैं। जनसुराज का 'नया बिहार' और रोजगार का नारा इन वोटर्स को बीजेपी से दूर कर सकता है। एनडीए में अब तक नीतीश बड़े भाई की भूमिका में थे,लेकिन चुनाव आते आते बीजेपी ने बराबर का भाई बना दिया। सीट बंटवारे और नेतृत्व को लेकर आंतरिक मनमुटाव पहले से ही है। अगर जनसुराज बीजेपी के वोट काटती है, तो यह नीतीश की जेडीयू को अपेक्षाकृत मजबूत स्थिति में ला सकता है, जिससे बीजेपी की सीटें कम हो सकती हैं।
जनसुराज से नीतीश असुरक्षित या जेडीयू को अप्रत्यक्ष लाभ
आपकी जानकारी के अनुसार बता दें अगर पीके की जनसुराज पार्टी की युवा वोट को खंडित करती है ,और ब्राह्मण और सामान्य वर्ग के युवा वोट पीके को समर्थित करते है तो बीजेपी को 10 से 20 सीटों का नुकसान हो सकता है।
जनसुराज के प्रभाव से नीतीश की जेडीयू को अप्रत्यक्ष लाभ मिलने की संभावना भी है, क्योंकि उनके विरोध में पड़ने वाले विपक्षी वोटों का बंटवारा हो सकता है। जिसमें युवा, शिक्षित और बेरोजगारी से असंतुष्ट वोटर्स शामिल है। ये महागठबंधन और आरजेडी की ओर झुकने वाले मतदाता है। जनसुराज पार्टी इन वोटों को काट सकती है।
वैसे भी नीतीश का कोर वोट बैंक कुर्मी, कोइरी, और अन्य ओबीसी समुदाय है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत है। जनसुराज का प्रभाव मुख्य रूप से शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में है, जिससे नीतीश के ग्रामीण वोट पर असर पड़ने की उम्मीद कम है। पीके का नीतीश के प्रति सॉफ्ट रूख भी है। नीतीश की जेडीयू का शहरी क्षेत्रों में बीजेपी की तुलना में कम प्रभाव है। जनसुराज का शहरी युवा और ऊपरी जाति वोटरों पर असर बीजेपी को ज्यादा नुकसान पहुंचाएगा, जिससे नीतीश की स्थिति अपेक्षाकृत सुरक्षित रह सकती है।
2020 में एनडीए ने 125 सीटें (बीजेपी 74, जेडीयू 43) और महागठबंधन ने 110 सीटें (आरजेडी 75, कांग्रेस 19) जीती थीं। कई सीटों पर जीत का अंतर 5,000-10,000 वोटों का था। अगर जनसुराज 5-10% वोट अपने पक्ष में लाने में सफल होती है ,तो यह आरजेडी को 20-30 सीटों का नुकसान पहुंचा सकती है, जबकि बीजेपी को 10-15 सीटों का।
जनसुराज का प्रभाव मगध, सीमांचल और मिथिलांचल में अधिक देखने को मिल रहा है, जहां आरजेडी और बीजेपी दोनों मजबूत स्थिति में हैं। महागठबंधन में तेजस्वी की नेतृत्व शैली पर सवाल जनसुराज के लिए अवसर हैं। पीके से एनडीए और महागठबंधन दोनों को ही नुकसान हो सकता है, भले ही नीतीश को लाभ मिले लेकिन गठबंधनों के लिए पीके की जनसुराज पार्टी को वोट कटवा पार्टी के खतरे के तौर पर देखा जा रहा है।
Created On :   3 Nov 2025 3:17 PM IST












