आनंद मोहन की रिहाई से किस दल को मिलेगा फायदा? आरजेडी, जेडीयू से लेकर बीजेपी भी बाहुबली नेता की पक्ष में क्यों कर रहे बातें?

Anand Mohans release will benefit any party, from RJD, JDU to BJP why are they talking in favor of Bahubali leader
आनंद मोहन की रिहाई से किस दल को मिलेगा फायदा? आरजेडी, जेडीयू से लेकर बीजेपी भी बाहुबली नेता की पक्ष में क्यों कर रहे बातें?
रिहाई पर सियासत तेज आनंद मोहन की रिहाई से किस दल को मिलेगा फायदा? आरजेडी, जेडीयू से लेकर बीजेपी भी बाहुबली नेता की पक्ष में क्यों कर रहे बातें?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बिहार के पूर्व सांसद और राजपूत समाज के दबंग नेता आनंद मोहन सिंह की रिहाई के बाद राज्य से लेकर केंद्र तक की सियासत गर्म हो गई है। साल 1994 में गोपालगंज के आईएएस जी कृष्णैया की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे आनंद मोहन की रिहाई सीएम नीतीश कुमार के द्वारा लिए गए फैसले से संभव हो सका है। बिहार में गंठबधन की सरकार बनने के बाद नीतीश सरकार ने कारा नियमों में बदलाव किया, जिसकी वजह से बाहुबली नेता आनंद मोहन को रिहाई मिली है।

खबर है कि, आनंद मोहन की रिहाई कराने के पीछे आरजेडी ने पुरजोर कोशिश की है। लेकिन एक समय ऐसा था जब आनंद मोहन आरजेडी सूप्रीमो लालू प्रसाद यादव के धुर विरोधी माने जाते थे। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि एक समय बिहार की राजनीति में लालू यादव के विरोधी रहे आनंद मोहन की रिहाई के पक्ष में आरजेडी क्यों है? 

गैंगस्टर से लेकर राजनीति तक का सफर

26 जनवरी, 1956 में बिहार के सहरसा जिले के नवगछियां गांव में जन्मे आनंद मोहन सिंह जेपी आंदोलन से अछूते नहीं है। वह इमरजेंसी के समय दो साल जेल गए लेकिन रिहाई के बाद उनकी छवि गैंगस्टर के रुप में उभर कर समाने आई। उनका प्रभाव बिहार के कोसी क्षेत्र में बहुत अधिक है और वे स्वतंत्रता सेनानी रामबहादुर राय के परिवार से आते हैं। 

साल 1990 में आनंद मोहन जनता दल की ओर से महिषी सीट से विधायक बने। उस वक्त बिहार में जातिगत राजनीति, हिंसा और लूटपाट की स्थिति चरम पर थी और 1993 में उन्होंने बिहार पीपुल्स पार्टी बनाई। साथ ही आनंद मोहन ने सवर्णों के हक लिए लड़ते हुए उस समय की मौजूदा लालू प्रसाद यादव की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। गौरतलब है कि, इस दौरान आनंद मोहन का मकसद पिछड़ी जातियों के उत्थान का विरोध करना और सवर्णों के दबदबा को एक बार फिर से कायम करना था। इसके अलावा इस दौर में आनंद मोहन ने लालू यादव के खिलाफ आवाज उठाकर अपनी राजनीति चमकाने का भी काम किया था। 

चरम पर सियासत के बीच डाउन फॉल

5 दिसंबर 1994 की बात है जब गैंगस्टर छोटन शुक्ला की हत्या के बाद मुजफ्फरपुर जिले में भारी विरोध प्रदर्शन चल रहा था। तभी गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की गाड़ी वहीं से गुजर रही थी, तभी अचानक भीड़ ने डीएम की गाड़ी पर हमला बोल दिया, जिसकी वजह से आईएएस जी कृष्णैया की मॉब लिंचिग में मौत हो गई। घटना के बाद पुलिस ने आनंद मोहन और उनके समर्थकों को आरोपी बनाया। जिसके बाद साल 2007 में अदालत ने पहले आनंद मोहन को फांसी की सजा सुनाई थी, लेकिन इसके बाद उनकी सजा को उम्र कैद में बदल दी गई। हालांकि इस फौसले पर आनंद मोहन को न ही हाईकोर्ट से और न ही सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली।

जेल की सलाखों के पीछे रहने के बाद भी आनंद मोहन का सियासी दबदबा कायम रहा और जेल में रहते हुए उन्होंने आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से अपनी नजदीकियां बढ़ाईं। फिर आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद आरजेडी से जुड़ गए। साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान आरजेडी ने चेतन आनंद को शिवहर सीट से चुनाव लड़ने का मौका दिया है और आनंद मोहन के बेटे ने चुनाव जीत लिया। कुछ माह पहले की बात है जब आनंद मोहन सिंह की बेटी की शादी में सीएम नीतीश और बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव शामिल हुए थे। इसके अलावा चेतन की सगाई में भी तेजस्वी यादव पहुंचे थे। 

क्या है आरजेडी की रणनीति?

इधर, 15 साल की सजा काटने के बाद आनंद मोहन अब नीतीश सरकार के एक फैसले से रिहा हो गए हैं। लेकिन सवाल यह है कि लालू यादव का विरोध करने वाले और सवर्णों के लिए आवाज उठाने वाले आनंद मोहन की रिहाई पर आरजेडी इतनी हमदर्दी क्यों दिखा रही है?

राजनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं कि आरजेडी मुस्लिम और यादव यानी MY की समीकरण पर काम करती है। हालांकि, इसके बावजूद भी पार्टी की पकड़ राजपूतों में काफी ज्यादा है। वर्तमान समय में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह हैं। इसके अलावा पार्टी में कई नेता राजपूत कास्ट से हैं। हालांकि बीजेपी भी राजपूत वोटबैंक में अपनी अच्छी काफी पकड़ बनाए हुए हैं। ऐसे में महागठबंधन सरकार आनंद मोहन के जरिए राजपूत समाज को खुश करने का प्रयास में लगी है।  इस भले राजपूत समाज आनंद मोहन को अपना नेता नहीं मानते हो, लेकिन समाज की सहानुभूति अभी उनके साथ जुड़ी हुई है। सियासी गलियारों में खबर है कि आनंद मोहन अब एक बार फिर सक्रिय राजनीति का रुख कर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में आरजेडी की ओर से चुनाव लड़ सकते हैं। लेकिन अभी तक इस मामले में आनंद मोहन की ओर से किसी तरह का बयान सामने नहीं आया है। 

फिलहाल, विपक्षी दल के नेता यानी बीजेपी भी आनंद मोहन की रिहाई पर फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। आपकों बता दें कि, 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में 28 राजपूत नेता विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे थे। जिसमें बीजेपी की ओर से 15, जेडीयू से 2, आरजेडी के 7, कांग्रेस की तरफ से एक, वीआईपी से दो और एक निर्दलीय विधायक है।  

Created On :   26 April 2023 10:35 AM GMT

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