विधानसभा चुनाव में अनुराग ठाकुर को गृह जिले में लगा झटका
डिजिटल डेस्क, शिमला। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर और उनके पिता प्रेम कुमार धूमल को विधनसभा चुनाव के नतीजों से झटका लगा है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इन दोनों के गृह जिले हमीरपुर की सभी पांच सीटों पर हार गई है।
कभी धूमल परिवार के गढ़ रहे हमीरपुर जिले की पांच विधानसभा सीटों में से चार पर कांग्रेस ने जीत हासिल की, जबकि पांचवीं सीट पर एक निर्दलीय ने जीत दर्ज की।जीतने वाले कांग्रेस उम्मीदवारों में नादौन से सुखविंदर सिंह सुक्खू, बरसर से इंदर दत्त लखनपाल, सुजानपुर से राजिंदर राणा और भोरंज से सुरेश कुमार शामिल हैं।
हमीरपुर सीट पर भाजपा और कांग्रेस, दोनों को निर्दलीय उम्मीदवार आशीष शर्मा से हार का सामना करना पड़ा, जिन्होंने 12,899 मतों के अंतर से जीत हासिल की।दो बार के कांग्रेस विधायक राजिंदर राणा, जिन्होंने अपने गुरु और दो बार के मुख्यमंत्री धूमल से वर्षो तक राजनीतिक सबक सीखा है, उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी और भाजपा उम्मीदवार रंजीत सिंह को 399 मतों के मामूली अंतर से हराया। उन्होंने तीसरी बार इस सीट से जीत दर्ज की है।
साल 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने 68 सदस्यों वाले सदन में एक शानदार जीत दर्ज की थी, मगर भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार धूमल को सुजानपुर में सीधे मुकाबले में 1,919 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था, जहां उनकी अनिच्छा के बावजूद उन्हें चुनाव लड़ने के लिए कहा गया था।
कई विधानसभा और संसदीय चुनाव लड़ चुके धूमल इस बार फिर से मैदान में उतरकर 2017 की चुनावी हार का बदला लेने के इच्छुक थे। मगर उनकी इच्छा तब धराशायी हो गई, जब पार्टी नेतृत्व ने उनके गढ़ वाली दो सीटों - सुजानपुर और उससे सटे हमीरपुर से उनका नामांकन वापस ले लिया।
चुनाव प्रचार के दौरान अनुराग ठाकुर अपने पिता की उपलब्धियों की प्रशंसा करते हुए कई बार सार्वजनिक रूप से रोए भी।धूमल के करीबी भाजपा नेताओं ने स्वीकार किया कि पूर्व मुख्यमंत्री, जिन्होंने 1977 में पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री शांता कुमार के बाहर निकलने के बाद पार्टी को मजबूत करने में दो दशकों तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, उनके आगे बढ़ने के कारण वह चुनाव से हट गए थे।
उनका कहना है कि उनकी हार के बाद मतदाता उनसे भावनात्मक रूप से जुड़े हुए थे और वे चाहते थे कि उन्हें एक और मौका दिया जाए, क्योंकि धूमल अपने चेहरे पर हार का धब्बा लगाने के बजाय सम्मानजनक तरीके से पार्टी को अलविदा कहना चाहते थे।
यहां तक कि धूमल ने भी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को मैदान में उतरने की अपनी इच्छा से अवगत करा दिया था।धूमल को अक्सर सड़क वाले मुख्यमंत्री के रूप में जाना जाता है या उन्हें सड़कों के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने 1998 से 2003 और 2008 से 2012 तक राज्य का संचालन किया था।
चुनावों के दौरान धूमल राज्य की राजनीति में जनसभाओं में भाग लेकर सक्रिय हो गए थे, मुख्यत: अपने पोषित सुजानपुर निर्वाचन क्षेत्र में।2017 में हार के बाद भावुक धूमल ने कहा था, राजनीति में किसी एक को हार का सामना करना ही पड़ता है। सुजानपुर के लोगों को न्याय न दे पाना हमारी विफलता होगी। यह आत्मनिरीक्षण का समय है।
राजनीतिक हलकों में धूमल का गिरता कद अनुराग ठाकुर के ससुर गुलाब सिंह ठाकुर को जान-बूझकर दरकिनार किए जाने की पृष्ठभूमि में भी देखा जा रहा है, जिन्हें उनकी बढ़ती उम्र के कारण इस चुनाव में फिर से टिकट नहीं दिया गया।
अतीत में धूमल की रही लोकप्रियता और प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके बेटे द्वारा लड़े गए सभी लोकसभा चुनावों में धूमल को उनकी आसान वापसी सुनिश्चित करने के लिए उनके हमीरपुर निर्वाचन क्षेत्र में आक्रामक रूप से दौरा करते देखा गया था।
मई 2008 में संसदीय उपचुनाव में अपनी पहली जीत के बाद से अनुराग ठाकुर की छवि एक व्यस्त राजनेता और क्रिकेट प्रशासक की है, जो हर समय उच्च और शक्तिशाली हस्तियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं।भाजपा के एक वरिष्ठ नेता मानते हैं कि इसी वजह से धूमल अपने निर्वाचन क्षेत्र में अपना अधिकतम समय और ऊर्जा अपने बेटे की जीत सुनिश्चित करने में लगाते रहे हैं।
लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि अक्टूबर 2021 के उपचुनावों में तीन विधानसभा सीटों और एक संसदीय सीट के नुकसान से स्पष्ट रूप से एक मजबूत सत्ता विरोधी लहर दिखी थी, जिसे सत्तारूढ़ भाजपा ने महसूस नहीं किया था।
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Created On :   9 Dec 2022 9:00 PM IST