बिहार : पुराने दिनों को फिर से लौटने नहीं देना चाहते अरवल के मतदाता

Bihar: voters of Arwal do not want to let the old days return again
बिहार : पुराने दिनों को फिर से लौटने नहीं देना चाहते अरवल के मतदाता
बिहार : पुराने दिनों को फिर से लौटने नहीं देना चाहते अरवल के मतदाता
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अरवल (बिहार), 24 अक्टूबर (आईएएनएस)। बिहार में नक्सलवाद के लिए बदनाम रहे अरवल विधानसभा क्षेत्र में एक बार फिर चुनावी रण में राजनीतिक योद्धा उतरे हुए हैं और राज्य की सत्ता तक पहुंचने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं।
इस चुनाव में अरवल विधानसभा क्षेत्र में मुख्य मुकाबला महागठबंधन की ओर से चुनावी मैदान में उतरे भाकपा (माले) के महानंद प्रसाद और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन समर्थित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दीपक शर्मा के बीच माना जा रहा है, हालांकि वामपंथी दल के प्रत्याशी को भीतरघात का भी डर सता रहा है।

पिछले विधानसभा चुनाव में राजद के रविंद्र सिंह ने भाजपा के चितरंजन कुमार को 17,810 वोटों के भारी अंतर से हराया था। राजद के रविंद्र कुमार साल 2015 में इस सीट पर लगातार दूसरी बार विधायक चुने गए थे। पहली बार रविंद्र सिंह यहां से 1995 में जनता दल के टिकट पर जीते थे जबकि 2010 में चितरंजन कुमार यहां के विधायक बने थे।

इस बार महागठबंधन में यह सीट भाकपा (माले) के हिस्से चली गई, जिससे राजद के कार्यकर्ता नाराज बताए जा रहे हैं। इधर, रालोसपा के सुभाष चंद यादव और जन अधिकार पार्टी के अभिषेक रंजन भी मैदान में पूरी ताकत झोंककर मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाने में जुटे हुए हैं। कहा जा रहा है कि राजद अपने वोटों को वामपंथी दल में शिफ्ट करवा सकेंगे, इसमें संदेह है।

अरवल विधानसभा क्षेत्र नक्सलवाद के लिए बदनाम रहा है। नक्सलवाद से जुड़ी कई हिंसक घटनाएं सामने आई हैं। अरवल से सटा जिला औरंगाबाद और जहानाबाद है जो नक्सलवाद का दंश झेल चुके हैं। अब स्थिति पहले से बहुत सुधरी है और घटनाओं में कमी आई है, जिसे मुद्दा बनाकर सत्ताधारी पार्टी चुनावी मैदान में है।

अरवल विधानसभा क्षेत्र में अरवल, कलेर प्रखंड के अलावे करपी प्रखंड के कई ग्राम पंचायतें हैं। करीब 2.53 लाख वाले इस विधानसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण की बात करें तो रविदास, यादव, कुर्मी, भूमिहार और पासवान जाति के मतदाताओं की संख्या यहां अधिक है, जो चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं।

अरवल के उसरी गांव के रहने वाले और गया स्थित जे वी एम कॉलेज के प्रोफेसर बृजकिशोर पाठक कहते हैं कि भाजपा और भाकपा (माले) में कांटे की टक्कर है और मतदाता बंटे हुए हैं। मतदाता क्षेत्र के विकास और शांति व्यवस्था को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं। उन्होंने कहा कि अरवल के लोग पुराने दिन को कभी लौटने नहीं देना चाह रहे हैं, इस लिहाज से सत्ताधारी पार्टी का पलड़ा भारी है।

इधर, भारतीय सेना में सेवा दे चुके एस पी पाठक कहते हैं, इस क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट पड़ेगा। उन्होंने कहा कि मोदी का मुद्दा किसी क्षेत्र में गौण नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि स्थानीय मुद्दे है, लेकिन राष्ट्रीय मुद्दा भी यहां हावी है।

भाजपा के प्रत्याशी दीपक शर्मा के समर्थक अरवल का बेटा, अरवल की बात नारे के साथ लोगों तक पहुंच रहे हैं। दीपक शर्मा भी कहते हैं कि उन्हें समर्थन मिल रहा है। उन्होंने अपने जीत का दावा करते हुए कहा कि अरवल के लोग क्षेत्र में शांति चाहते हैं और ऐसे दल के प्रत्यशी को विजयी बनाना चाहते हैं, जो स्थनीय हो और विकास कर सके। उन्होंने कहा कि अरवल के लोग अब पुराने दिनों को भूल जाना चाहते हैं।

इधर, तेलपा के रामचंद्र पासवान कहते हैं कि अभी मतदाता तय नहीं कर पाए हैं कि वोट किसे दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि भाजपा और वामपंथी दल में कांटे की टक्कर है और जातीय समीकरण इस चुनाव में उलझा हुआ है।

बिहार विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण में 28 अक्टूबर को अरवल में मतदान होना है।

एमएनपी/वीएवी

Created On :   24 Oct 2020 7:30 AM GMT

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