क्या राहुल गांधी द्वारा सार्वजनिक रूप से फाड़ा गया अध्यादेश उन्हें डराने के लिए वापस आ गया?

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दिल्ली क्या राहुल गांधी द्वारा सार्वजनिक रूप से फाड़ा गया अध्यादेश उन्हें डराने के लिए वापस आ गया?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सजायाफ्ता सांसदों को तत्काल अयोग्यता से बचाने के लिए यूपीए सरकार द्वारा लाए गए एक अध्यादेश को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने खारिज कर दिया था, यहां तक कि मीडिया से बातचीत के दौरान इसे सार्वजनिक रूप से फाड़ भी दिया था और आखिरकार इसे वापस लिया जाना है।अब, गुरुवार को सूरत की एक अदालत द्वारा मानहानि के मामले में उन्हें दोषी ठहराए जाने के बाद उनका कृत्य उन्हें फिर से परेशान करने लगा है।

लिली थॉमस बनाम भारत संघ मामले में 2013 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक के रूप में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 (4) को रद्द कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि यदि सदन का एक मौजूदा सदस्य दो साल से अधिक जेल की सजा लायक अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है और सजा के तीन महीने के भीतर अपील दायर करता है, तो उसे सदन की सदस्यता धारण करने से अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा।

इसका मतलब यह है कि ऐसे सांसदों के लिए सिर्फ अपील दायर करना ही काफी नहीं होगा, बल्कि उन्हें मामले में अपनी दोषसिद्धि पर रोक लगानी होगी।उसी वर्ष, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने फैसले को पलटने और धारा 8 (4) को बनाए रखने के लिए एक अध्यादेश जारी किया था, लेकिन राहुल गांधी ने अध्यादेश को पूरी तरह बकवास कहा था।अध्यादेश की एक प्रति को टुकड़ों में फाड़ने से पहले उन्होंने कहा था, मैं आपको बताऊंगा कि अध्यादेश पर मेरी राय क्या है। यह पूरी तरह बकवास है और यह मेरी निजी राय है।

यह अध्यादेश, उस समय लाया गया था, जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विदेश यात्रा पर थे। इसने सरकार को बहुत शर्मिदा किया और आखिरकार इसे वापस ले लिया गया।बदले हुए कानून के तहत कई राजनेताओं को अयोग्य घोषित कर दिया गया, जिसकी शुरुआत 2013 में ही कांग्रेस सांसद रशीद मसूद से हुई थी।राज्यसभा सदस्य मसूद को 2013 में ही अयोग्य घोषित कर दिया गया था, जब वह वी.पी. सिंह सरकार (1989-90) में मंत्री थे।

अयोग्य घोषित किए गए अन्य लोगों में राजद प्रमुख लालू प्रसाद और जदयू के जगदीश शर्मा शामिल हैं, जिन्हें चारा घोटाला मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद लोकसभा सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित किया गया था।

2014 में द्रमुक के राज्यसभा सदस्य टी.एम. सेल्वागणपति 1995 में तमिलनाडु भर में श्मशान घाटों पर इस्तेमाल किए जाने वाले शेड के निर्माण में एम्बेडेड वित्तीय घोटाले का दोषी पाए जाने के बाद अयोग्य घोषित कर दिए गए थे और उन्हें दो साल की जेल की सजा सुनाई गई थी।

घोटाला उस समय हुआ था, जब वह जे. जयललिता की सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री थे। साल 2008 में भ्रष्टाचार के आरोप सामने आने के बाद उन्हें अन्नाद्रमुक से निष्कासित कर दिया गया था और वह द्रमुक में शामिल हो गए, जिसने उन्हें उच्च सदन में भेज दिया था।

2018 में झारखंड पार्टी के कोलेबिरा से विधायक अनोश एक्का को 2014 में एक पारा शिक्षक की हत्या के आरोप में दोषी ठहराए जाने और आजीवन कारावास की सजा के बाद सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।

समाजवादी पार्टी के विधायक अब्दुल्ला आजम खान को 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था, क्योंकि एक अदालत ने उन्हें अभद्र भाषा के मामले में जेल की सजा सुनाई थी। उनके बेटे को भी एक अन्य मामले में सजा के बाद सदन के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया था।

कारावास की सजा होने पर अयोग्यता को लेकर जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 में यह प्रावधान है कि दोषी ठहराए जाने और दो साल या उससे अधिक के कारावास की सजा होने पर विधायक को आगे छह साल के लिए अयोग्य घोषित किया जाएगा।

लेकिन, अधिनियम में प्रदान किए गए मौजूदा सदस्यों के लिए एक अपवाद है।सूरत की एक जिला अदालत ने गुरुवार को राहुल गांधी को 2019 में उनकी कथित मोदी उपनाम टिप्पणी के लिए उनके खिलाफ एक आपराधिक मानहानि के मामले में दोषी ठहराया। उन्हें आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत दोषी ठहराया गया, जहां अधिकतम संभव सजा दो साल की जेल है।

 

 

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Created On :   23 March 2023 10:00 PM IST

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