माफिया मुख्तार अंसारी को बीएसपी से बाहर का दिखाया जाएगा रास्ता, मायावती काटेंगी टिकट 

Mafia Mukhtar Ansari will be shown the way out of BSP, Mayawati will cut ticket
माफिया मुख्तार अंसारी को बीएसपी से बाहर का दिखाया जाएगा रास्ता, मायावती काटेंगी टिकट 
मायावती का सख्त तेवर माफिया मुख्तार अंसारी को बीएसपी से बाहर का दिखाया जाएगा रास्ता, मायावती काटेंगी टिकट 
हाईलाइट
  • बीएसपी कर रही अपने चाल
  • चरित्र में बदलाव!
  • बीएसपी से बाहर होंगे अंसारी!
  • मायावती माफिया मुख्तार अंसारी की टिकट काटेंगी!

डिजिटल डेस्क, लखनऊ।  बीएसपी विधायक माफिया मुख्तार अंसारी की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। यूपी की योगी सरकार तमाम कानूनी दांवपेंच को दूरकर मुख्तार को पंजाब से उत्तर प्रदेश की  जेल ले आई। तो वहीं मायावती की पार्टी बीएसपी ने अब मुख्तार अंसारी से बाय-बाय करने का फैसला किया हैं। एक न्यूज़ चैनल ने दावा कि है कि मायावती न सिर्फ मऊ सीट से मुख्तार अंसारी का टिकट काटने जा रही है, बल्कि यूपी चुनाव से पहले अंसारी को तीसरी बार बीएसपी से बाहर का रास्ता भी दिखा सकती हैं। 

आखिर में मायावती क्यों एक्शन में?

जानकारों के मुताबिक,आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए मायावती अपने पार्टी की साफ-सुथरी छवि बनाने में जुटी हैं। मायावती की पार्टी से मुख्तार अंसारी को बीएसपी से बाहर करने के पीछे सबसे बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि बीजेपी इस समय यूपी में गुंडो, माफियाओं के खिलाफ ऑपरेशन चला रही है। और मायावती अंसारी को पार्टी में जगह देकर बीजेपी को चुनावी मुद्दा बनाने का मौका नहीं देना चाहती है। ताकि बीजेपी सियासी हमला बोल सके। माना जा रहा है कि मजबूरी में ही सही, पर मायावती की पार्टी बीएसपी मूर्तियों और स्मारकों के बाद अब माफियाओं से दूरी बनाने का फैसला लेते हुई, अपनी चाल-चरित्र और चेहरे में बदलाव कर खुद को मजबूत विकल्प के तौर पर पेश करने की तैयारी में जुट गई है।

 बीएसपी उम्मीदवार नहीं बनेंगे मुख्तार

सूत्रों के हवाले से खबर है कि मायावती माफिया डॉन के तौर पर बदनाम बीएसपी विधायक मुख्तार अंसारी को अपना उम्मीदवार नही बनाएंगी। माफिया मुख्तार अंसारी मऊ सीट से बीएसपी विधायक हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती मऊ सीट से मुख्तार का टिकट काटकर यहां से किसी दूसरे ताकतवर नेता को ही प्रत्याशी बनाए जाने का फैसला लिया है। बीएसपी मुख्तार के किसी करीबी रिश्तेदार या फिर किसी गैर मुस्लिम पर दांव लगा सकती है। यह फैसला टिकट तय करते वक्त सियासी हालातों और मुख्तार के खिलाफ चुनाव लड़ने की हिम्मत जुटाने वाले दावेदारों पर निर्भर करेगा। इतना ही नहीं मायावती ने मुख्तार से अब किनारा करने का भी मन बना लिया है। हालांकि पूर्वांचल में मुस्लिम वोटरों के बीच कोई गलत संदेश न जाए, इसके लिए पार्टी किसी जल्दबाजी के मूड में नहीं है। बीएसपी ने मुख्तार तक अपनी रणनीति का संदेश भिजवा भी दिया है। मायावती चाहती हैं कि अपनी सियासी जमीन बचाने के लिए मुख्तार खुद ही कोई फैसला ले ले, तो इससे उनकी पार्टी की रणनीति भी कामयाब हो जाएगी।

मुख्तार को लगी भनक, दूसरी पार्टियों में बनायेंगे जगह

बता दें कि मुख्तार अंसारी को भी मायावती की इस सियासी पैंतरेबाजी की भनक लग चुकी है। सूत्रों के मुताबिक बाहुबली मुख्तार ने अपना सियासी करियर बचाने के लिए दूसरी पार्टियों में संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी हैं। मुख्तार ने रणनीति के तहत ही दो हफ्ते पहले अपने बड़े भाई सिबगतउल्ला अंसारी को अखिलेश यादव की मौजूदगी में समाजवादी पार्टी में शामिल भी करा दिया है। बड़े भाई सिबगतउल्ला सपा में रहते हुए मुख्तार की इंट्री के लिए फील्डिंग सजाएंगे। अगर मायावती की तरह अखिलेश को भी दागी मुख्तार को अपने साथ खड़ा करने में संकोच हुआ तो बाहुबली विधायक प्रयागराज के अपने पुराने साथी पूर्व सांसद अतीक अहमद की राह पर चलते हुए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का दामन थाम सकता है। ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा भी मऊ के सियासी हालात के मद्देनजर बेहतरीन विकल्प हो सकता है।

बीएसपी की तरफ से आधिकारिक बयान नहीं

बता दें कि मुख्तार का टिकट काटे जाने और उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाए जाने को लेकर अभी तक बीएसपी की तरफ से आधिकारिक तौर पर कोई बयान नहीं दिया गया है, लेकिन इसके संकेत 28 अगस्त को तभी मिल गए थे। जब मुख्तार के बड़े भाई सिबगतउल्ला अंसारी लखनऊ में अखिलेश यादव के सामने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ले रहे थे। ठीक उसी वक़्त प्रयागराज में पार्टी कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में शिरकत कर रहे बीएसपी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद डॉ अशोक सिद्धार्थ ने यह कहा था कि उन्होंने बीएसपी छोड़ी नहीं है, बल्कि निष्क्रियता की वजह से उन्हें पहले ही पार्टी से निकाला जा चुका था। डॉ अशोक सिद्धार्थ ने उस वक्त यह भी साफ कर दिया था कि बड़े भाई की राह पर चलते हुए अगर मुख्तार भी बीएसपी से बाहर निकलने का मन बना रहा है तो पार्टी उसे न तो रोकने और न ही मनाने की कोई कोशिश करेगी।
 
अंसारी ने बीएसपी से राजनीतिक करियर शुरू की थी 

मुख्तार ने अपने सियासी करियर की शुरुआत बीएसपी से ही की थी। 1996 में हाथी की सवारी कर वह पहली बार विधानसभा पहुंचा था। हालांकि कुछ दिनों बाद ही मायावती ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया था। 2002 और 2007 का चुनाव वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीता। 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले उसने दोबारा हाथी की सवारी की। उस चुनाव में बीएसपी ने उसने वाराणसी सीट से बीजेपी नेता डॉ मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ उम्मीदवार बनाया था। लोकसभा के इस चुनाव में मुख्तार को हार का सामना करना पड़ा और थोड़े दिन बाद ही उसे फिर से बाहर कर दिया गया। साल 2012 में अंसारी ब्रदर्स ने अपनी अलग पार्टी कौमी एकता दल बनाई। मुख्तार 2012 में अपनी घर की पार्टी से चुनाव लड़कर लगातार चौथी बार विधायक बना। साल 2017 में मुख्तार ने अपनी पार्टी का बीएसपी में विलय कर दिया और पांचवीं बार विधायक का चुनाव लड़ा। हाथी का साथ मिलने से वह लगातार पांचवीं बार और जेल में रहते हुए तीसरा चुनाव जीतने में कामयाब रहा। योगी सरकार और बीजेपी ने अपराध और अपराधियों को लेकर जो लकीर खींची है, उसके बाद विपक्षी पार्टियों पर नैतिक दबाव काफी बढ़ गया है। इसके साथ ही पिछले एक दशक में जनता का मूड भी बदला है। कभी खलनायकों को अपने वोट के सहारे नायक बनाने वाले वोटर,अब इनसे दूरी बनानें लगे हैं और साफ-सुथरी छवि वाले उम्मीदवारों और विकास की बात करने वाली पार्टी को ही पसंद कर रहे हैं।

Created On :   9 Sep 2021 12:48 PM GMT

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