कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

Petition in Supreme Court against the order of Karnataka High Court
कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका
हिजाब का अधिकार संविधान द्वारा संरक्षित कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका
हाईलाइट
  • पगड़ी पहनने वाले सिखों को हेलमेट पहनने से छूट देती है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को एक याचिका दायर कर कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति देने संबंधी सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था।

अधिवक्ता अनस तनवीर के माध्यम से दो मुस्लिम स्टूडेंट्स मनन और नीबा नाज द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, याचिकाकर्ता बड़ी ही नम्रतापूर्वक यह प्रस्तुत करते हैं कि उच्च न्यायालय ने धर्म की स्वतंत्रता और अंतरात्मा की स्वतंत्रता का एक द्वंद्व पैदा करने में गलती की है, जिसमें अदालत ने निष्कर्ष निकाला है कि जो लोग धर्म का पालन करते हैं उन्हें अंतरात्मा का अधिकार नहीं हो सकता है।

याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय यह नोट करने में विफल रहा कि कर्नाटक शिक्षा अधिनियम, 1983 और उसके तहत बनाए गए नियम छात्रों द्वारा पहनी जाने वाली किसी भी अनिवार्य वर्दी का प्रावधान नहीं करते हैं।याचिका के अनुसार, उच्च न्यायालय यह नोट करने में विफल रहा है कि हिजाब पहनने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत अंतरात्मा के अधिकार के एक भाग के रूप में संरक्षित है। यह प्रस्तुत किया गया है कि चूंकि अंतरात्मा का अधिकार अनिवार्य रूप से एक व्यक्तिगत अधिकार है, इसलिए इस तात्कालिक मामले में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा आवश्यक धार्मिक व्यवहार परीक्षण लागू नहीं किया जाना चाहिए था।

याचिका में आगे कहा गया है, उच्च न्यायालय यह नोट करने में विफल रहा है कि भारतीय कानूनी प्रणाली स्पष्ट रूप से धार्मिक प्रतीकों को पहनने/साथ रखने को मान्यता देती है। यह ध्यान रखना उचित है कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 129, पगड़ी पहनने वाले सिखों को हेलमेट पहनने से छूट देती है।

इसमें नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा बनाए गए नियमों का भी हवाला दिया, जिसमें सिखों को विमान में कृपाण ले जाने की अनुमति दी गई है।याचिका में कहा गया है कि सरकारी अधिकारियों के इस सौतेले व्यवहार ने स्टूडेंट्स को अपने विश्वास की प्रैक्टिस से रोका है, जिसके परिणामस्वरूप अवांछित कानून और व्यवस्था की स्थिति पैदा हुई है।

इसमें कहा गया है, हालांकि, उच्च न्यायालय अपने आदेश में अपने दिमाग को लागू करने में पूरी तरह से विफल रहा है और यह स्थिति की गंभीरता के साथ-साथ भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत निहित आवश्यक धार्मिक प्रथाओं के मूल पहलू को समझने में असमर्थ रहा है।

उच्च न्यायालय ने मंगलवार को सुनाए गए अपने फैसले में कहा, हिजाब पहनना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। वर्दी का निर्धारण संवैधानिक है और छात्र इस पर आपत्ति नहीं कर सकते हैं।मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, हमारा विचार है कि मुस्लिम महिलाओं द्वारा हिजाब पहनना इस्लामी आस्था में कोई अनिवार्य प्रथा नहीं है। स्कूल की वर्दी का निर्धारण एक उचित प्रतिबंध है और संवैधानिक रूप से है अनुमेय है, जिस पर छात्र आपत्ति नहीं कर सकते।

 

(आईएएनएस)

Created On :   15 March 2022 8:00 PM IST

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