संघ विचारक गोविंदाचार्य का मोदी सरकार को सुझाव- डब्ल्यूटीओ को मोड़ो, तोड़ो या फिर छोड़ो (इंटरव्यू)

Sangh ideologue Govindacharyas suggestion to Modi government - Fold, break or leave WTO (interview)
संघ विचारक गोविंदाचार्य का मोदी सरकार को सुझाव- डब्ल्यूटीओ को मोड़ो, तोड़ो या फिर छोड़ो (इंटरव्यू)
संघ विचारक गोविंदाचार्य का मोदी सरकार को सुझाव- डब्ल्यूटीओ को मोड़ो, तोड़ो या फिर छोड़ो (इंटरव्यू)

नई दिल्ली, 14 मई(आईएएनएस)। आरएसएस के जाने माने विचारक रहे और स्वदेशी चिंतक केएन गोविंदाचार्य ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान का समर्थन किया है। लेकिन, उन्होंने मोदी सरकार को कई सुझाव दिए हैं।
आईएएनएस को दिए इंटरव्यू के दौरान गोविंदाचार्य ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से नव उपनिवेशवाद की बदबू आती है। इसलिए भारत या तो डब्ल्यूटीओ को अपने हितों के अनुरूप मोड़े नहीं तो उसे तोड़ दे। अगर यह सब भारत न कर पाए तो फिर डब्ल्यूटीओ का साथ ही छोड़ दे। नहीं तो भारत हमेशा दुनिया के लिए सिर्फ बाजार बना रहेगा और उसके स्थानीय उत्पादों को नुकसान पहुंचेगा।

कभी भाजपा के थिंकटैंक रहे गोविंदाचार्य का कहना है कि भारत को पहले खुद को पहचानना होगा और फिर उसी अनुरूप आर्थिक नीतियां तय कर लक्ष्यों को हासिल करना होगा। अटल-आडवाणी के जमाने में भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रह चुके गोविंदाचार्य ने गुरुवार को आईएएनएस से कहा कि वह इन दिनों स्वदेशी मॉडल को लेकर सुझावों से भरे कुछ नोट तैयार कर रहे हैं, जिसे केंद्र सरकार को भी देंगे। अब सुझावों को मानना और न मानना सरकार पर निर्भर करेगा।

क्या डब्ल्यूटीओ के साथ भारत का टकराव लेना मुमकिन है? इस सवाल पर केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि भारत में विश्व व्यापार संगठन(डब्ल्यूटीओ) का बेवजह हौव्वा खड़ा किया जाता है। उन्होंने कहा, हम आबादी के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर के देश हैं, जिस रफ्तार से आबादी बढ़ रही है उससे नंबर वन भी आगे हो सकते हैं। ऐसे में भारत को अलग-थलग करने की दुनिया की औकात नहीं है। भारत अपनी नीतियां खुद तैयार करने में समर्थ है। लेकिन यह तब संभव है जब हम अपने आत्मविश्वास और स्वाभिमान को जगाएंगे।

केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि डब्ल्यूटीओ की कार्यप्रणाली में खामियां ही खामियां हैं। वह अमेरिका आदि मुट्ठी भर विकसित और ताकतवर देशों के हितों के अनुकूल ही काम करता है। गोविंदाचार्य ने कहा, डब्ल्यूटीओ में एक राष्ट्र-एक वोट की नीति है। एक करोड़ आबादी वाले देशों के वोट की उतनी ही कीमत है जितना कि 130 करोड़ की आबादी वाले भारत की। क्या यह तर्कसंगत है? मेरा मानना है कि एक करोड़ की आबादी पर एक वोट की व्यवस्था हो तब भारत के वोट की कीमत ज्यादा होगी और भारत की बात भी सही से डब्ल्यूटीओ के फोरम पर सुनी जाएगी। तभी ग्लोबल विलेज की बात हकीकत बनेगी।

गोविंदाचार्य ने कहा, मैं सरकार से कहता हूं कि वह डब्ल्यूटीओ को अपने हितों के अनुकूल होने के लिए मजबूर करे। ऐसा न हो पाए तो डब्ल्यूटीओ को ही तोड़ दे, नहीं तो उसका साथ छोड़ दे। तभी देश का भला हो सकेगा और भारत लोकल के प्रति वोकल होने के साथ एमएसएमई सेक्टर के साथ न्याय कर सकेगा।

गोविंदाचार्य ने कहा कि भारत को अमेरिका और चीन की नकल उतारने की जगह अपने अनुकूल अर्थव्यवस्था के मॉडल को तैयार करना होगा। उन्होंने पांच बिंदुओं का फॉर्मूला देते हुए कहा कि पहले तो हमें सत्वबोध यानी खुद को पहचानना होगा। फिर स्वाभिमान जगाना होगा। इसके बाद आत्मविश्वास बढ़ाना होगा, फिर आत्मनिर्भर होने की दिशा में आगे बढ़ेंगे, जिसका परिणाम स्वावलंबन के रूप में निकलेगा।

केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि ग्लोबलाइजेशन के दौर में तमाम संकट के बावजूद भारत अपनी विशेष सामाजिक आर्थिक व्यवस्था के तहत लड़खड़ाने से बचता रहा है। भारत में पूंजी निर्माण का बड़ा आधार बचत है। भारतीय परिवारों की बचत व्यवस्था ही उन्हें आत्मनिर्भरता की ओर ले जाती है। इसलिए भारतीय व्यवस्थाओं को आदर देना होगा न कि उनका मजाक उड़ाना चाहिए।

गोविंदाचार्य ने कहा कि चिंता की बात है कि पिछले दो सौ वर्षो से भारत अपनी मजबूती को ही कमजोरी समझता रहा। पश्चिमी व्यवस्था व्यक्तिवाद पर जोर देती है। पश्चिमी मॉडल में राज्य और व्यक्ति के बीच कोई लिंक नहीं होता। जबकि भारतीय व्यवस्था में राज्य और व्यक्ति के बीच कई तरह के लिंक होते हैं, जो सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। ऐसे में सरकार को इस व्यवस्था में अवरोधक बनने की जगह सहायक बनना चाहिए।

गोविंदाचार्य ने उदाहरण देते हुए कहा कि जंगल विभाग को चाहिए कि वह वनवासियों को जंगलों का हिस्सेदार बनाए न कि उन्हें बेदखल कर ठेकेदारों के हवाले वन संपदा को कर दे। अगर हम वनवासियों को जंगलों का हिस्सेदार बनाएं तो फिर चमत्कार देखने को मिलेगा और वन संपदाएं और विकसित होंगी न कि उजड़ेंगी।

गोविंदाचार्य ने सवाल उठाते हुए कहा कि जिस एमएसएमई सेक्टर की देश में उपेक्षा हो रही है, वह तमाम संकटों के बावजूद देश के निर्यात (एक्सपोर्ट) में आज भी अच्छी-खासी भूमिका निभा रहा है। इसका मतलब है कि भारत के स्वदेशी उत्पादों में दम है और उसे सरकार के प्रोत्साहन की जरूरत है।

कुछ लोग कहते हैं कि स्वदेशी और ग्रामीण मॉडल से उतना रोजगार नहीं पैदा होगा, जितना कि विदेशी कंपनियों के लिए दरवाजे खोलने से? इस सवाल पर गोविंदाचार्य ने कहा कि पहले तो हमें तय कर लेना होगा कि रोजगार है कहां? सरकारी नौकरियां लगातार कम हो रहीं हैं। मशीनीकरण हावी होने से कॉरपोरेट सेक्टर में भी नौकरियां कम हो रहीं हैं। जबकि देश की जीडीपी में सिर्फ 17 प्रतिशत योगदान देने वाला कृषि सेक्टर सबसे ज्यादा करीब 56 प्रतिशत रोजगार दे रहा है। इससे 56 प्रतिशत आबादी के माली हालत का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। इससे संकेत मिलते हैं कि हमें कृषि पर कितना ध्यान देने की जरूरत है।

Created On :   14 May 2020 2:30 PM GMT

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