हिमालयी क्षेत्र की वहन क्षमता का आकलन करने में विफलता पर केंद्र की प्रतिक्रिया मांगी

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सुप्रीम कोर्ट हिमालयी क्षेत्र की वहन क्षमता का आकलन करने में विफलता पर केंद्र की प्रतिक्रिया मांगी

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हाल ही में जोशीमठ में जमीन में दरारें पड़ने और ढहने के मुद्दों की पृष्ठभूमि के खिलाफ, सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें पारिस्थितिक नाजुक भारतीय हिमालयी क्षेत्र की वहन क्षमता या सहनशक्ति का आकलन करने में केंद्र और राज्य सरकारों की विफलता को उठाया गया है।

याचिका में दावा किया गया है कि यह क्षेत्र, जो 13 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) में फैला हुआ है, अस्थिर और हाइड्रोलॉजिकल रूप से विनाशकारी निर्माण- होम स्टे, होटल, और वाणिज्यिक आवास- जलविद्युत परियोजनाओं और अनियमित पर्यटन जैसे मुद्दों का सामना कर रहा है, जिसने कथित रूप से जल निकासी और अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली को नुकसान पहुंचाया है।

अशोक कुमार राघव द्वारा दायर याचिका, जिस पर अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष बहस की, उन्होंने कहा, सरकारें 13 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में फैली हुए भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में मास्टर प्लान/पर्यटन योजना/ले-आउट/क्षेत्र विकास/जोनल प्लान तैयार करने और लागू करने में विफल रही हैं,

सरकारें - भारतीय हिमालयी क्षेत्र में, 13 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में फैली हुई हैं- मास्टर प्लान/पर्यटन योजना/ले-आउट/क्षेत्र विकास/क्षेत्रीय योजना तैयार करने और लागू करने में विफल रही हैं, और पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों की वहन क्षमता या असर क्षमता में भी विफल रहा, जो लगभग 50 मिलियन लोगों का घर है।

इस क्षेत्र में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, सिक्किम, नागालैंड, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं। दलील में कहा गया है, पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों, हिल स्टेशनों और पहाड़ियों में अत्यधिक देखे जाने वाले क्षेत्रों की क्षमता को वहन करना आवश्यक है क्योंकि अन्य बातों के साथ-साथ यह निर्धारित करेगा कि दी गई जगह मानव आबादी या मानव हस्तक्षेप का भार कितना सहन कर सकती है और इसकी भूगर्भीय/विवर्तनिक/भूकंपीय स्थिति, उपलब्ध जल संसाधन, भोजन, आवास, वायु गुणवत्ता और अन्य संसाधनों को देखते हुए बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की सीमा की अनुमति दी जा सकती है।

इसमें आगे कहा गया है कि वहन क्षमता अध्ययन न होने के कारण, भूस्खलन, भू-धंसाव, भूमि में दरार और ढहने जैसे गंभीर भूगर्भीय खतरों जैसे कि जोशीमठ में और पूर्व में केदारनाथ में आकस्मिक बाढ़/ग्लेशियल फटने के कारण (2013) और चमोली (2021) देखा जा रहा है और पहाड़ियों में गंभीर पारिस्थितिक और पर्यावरणीय विनाश हो रहा है।

दलील में कहा गया है, उत्तराखंड राज्य के पर्यटन विभाग की उत्तराखंड पर्यटन नीति 2018 ने खुद को उत्तराखंड पर्यटन की एक बड़ी चुनौती के रूप में अनुमेय वहन क्षमता की पहचान को मान्यता दी थी। उक्त नीति के उद्देश्य अन्य बातों के साथ-साथ राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थलों की वहन क्षमता के मुद्दों को हल करना है।

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाने को कहा। हालांकि, वशिष्ठ ने जोर देकर कहा कि एनजीटी अधिनियम की धारा 14 के तहत रोक है क्योंकि पर्यावरण उल्लंघन का विशिष्ट मामला होना चाहिए। वशिष्ठ द्वारा दबाव डालने के बाद कि यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, जल शक्ति मंत्रालय और अन्य को नोटिस जारी किया।

दलील में कहा गया है कि 2021 में 56,37,102 पर्यटकों ने हिमाचल प्रदेश का दौरा किया, जो कि 2020 में दर्ज किए गए आंकड़ों से अधिक था। जिन स्थानों पर पर्यटकों की सबसे अधिक संख्या देखी गई, उनमें शिमला, मनाली, लाहौल और स्पीति, सिरमौर, बिलासपुर और चंबा शामिल हैं।

(आईएएनएस)

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Created On :   18 Feb 2023 5:30 PM IST

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