बिहार में छोटे दल हुए महत्वपूर्ण, ताकत बढ़ाने में जुटे
डिजिटल डेस्क, पटना। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर सभी दलों ने तैयारी शुरू कर दी है। बड़े दल जहां अपने फायदे और नुकसान का जोड़-घटाव कर छोटे दलों को अपने साथ लाकर गठबंधन को और मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं वहीं छोटे दल भी अपना नफा नुकसान देखकर गठबंधनों को तौलकर खुद को मजबूत बनाने की जुगत में हैं।
फिलहाल बिहार की सियासत को देखें तो आने वाले चुनाव में दो गठबंधनों के बीच ही मुख्य मुकाबला माना जा रहा है। इस कारण छोटे दलों को अपने साथ जोड़कर गठबंधन अपनी ताकत बढ़ाने में जुटे हैं।
पिछले साल नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल युनाइटेड ने एनडीए को छोड़कर जब महागठबंधन के साथ जाने का निर्णय किया था तब भाजपा राज्य में अकेले खड़ी नजर आ रही थी। सात दलों के इस महागठबंधन से मुकाबला करने के लिए भाजपा ने अकेले चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा कर दी, तब उसकी नजर छोटे दलों पर गई।
इसमें कोई शक नहीं कि बिहार की सियासत में जातीय समीकरणों को कोई नकार नहीं सकता। यही कारण माना जाता है कि छोटे दल का नेतृत्व भले ही राष्ट्रीय स्तर के नामीगिरामी नेता नहीं करते हैं, लेकिन चुनावों में विशेष क्षेत्रों और जाति समीकरणों में ये छोटे दल प्रभावशाली हो जाते हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) दो धड़ों में बंट चुकी है। बिहार में पासवान मतदाता रामविलास पासवान की पार्टी के प्रति शुरू से वफादार रहे हैं। लोजपा के दो धडों में बंटने के बाद लोजपा (रामविलास) का नेतृत्व रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान कर रहे हैं। चिराग ने जब से पार्टी की कमान संभाली है, तब से उन्हें एनडीए के करीब माना जाता रहा है। ऐसे में तय माना जा रहा है कि अगले चुनाव में भी वे भाजपा के साथ होंगे।
इसमें भी कोई शक नहीं कि जदयू के महागठबंधन के साथ जाने के बाद दल के लोगों में नाराजगी है। पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने इस्तीफा देकर नई पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल बना ली है। कुशवाहा जिस तरह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पार्टी नेतृत्व पर आक्रामक हैं, उससे एनके एनडीए के साथ जाने की संभावना है।
इधर, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल कहते हैं कि लालू प्रसाद की सरकार (जंगलराज) के खिलाफ जिसने भी लड़ाई लड़ी हैं उसके लिए भाजपा के दरवाजे खुले हैं। उन्होंने कहा कि कोई भी नेता या पार्टी जिसने जंगलराज के खिलाफ लड़ाई लड़ी है और बिहार को उस दौर से निकाला हो, वह राजद के साथ खड़ा नहीं हो सकता।
इधर, जदयू के एक नेता ने भी नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि पार्टी में लोग दबी जुबान राजद के साथ जाने का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी के कई विधायक और सांसद भी कहते हैं कि राजद की व्यवस्था में वे फिट नहीं बैठते। वे स्पष्ट लहजे में कहते हैं कि राजद के नेता जिस तरह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सरकार के खिलाफ बयान दे रहे हैं, उससे यह समझा जा सकता है, राजद के साथ दोस्ती बहुत दिनों तक नहीं चलने वाली।
इधर, एनडीए के साथ रह चुकी मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के नेता अभी इस मामले में खुलकर तो कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन इतना जरूर कह रहे हैं कि किसी भी गठबंधन के साथ होकर ही पार्टी चुनाव मैदान में उतरेगी।
इस बीच, पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी को केंद्र सरकार ने वाई प्लस कैटेगरी की सुरक्षा देकर यह संकेत दे दिया है कि भाजपा से सहनी की नजदीकियां फिर से बढ़ रही हैं।
उल्लेखनीय है कि बिहार के कुछ विधानसभा क्षेत्रों में निषाद मतदाताओं की संख्या चुनाव परिणााम को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। निषाद मतदाताओं पर सहनी की अच्छी पकड़ मानी जाती है। पिछले विधनसभा चुनाव में वीआईपी ने चार सीटें जीती थी।
इधर, सत्ताधारी महागठबंधन में शामिल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पहचान बिहार की राजनीति में चालाक नेता के तौर पर होती है। हाल ही में उन्होंने महागठबंधन के विरोध में बयान देकर हलचल मचा दी है। उन्होंने अपने पुत्र और बिहार के मंत्री संतोष कुमार सुमन को मुख्यमंत्री के अन्य दावेदारों से बेहतर बताते हुए कहा कि वे पढ़े लिखे और जानकार भी हैं। उल्लेखनीय है कि नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल के नेता और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में अपने गठबंधन का नेतृत्व करने की बात कही है।
वैसे, इन छोटे दलों के नेता कुछ भी खुलकर साफ नहीं बोल रहे। ऐसे में कहा जा सकता है कि सात दलों के महागठबंधन से मुकाबले के लिए भाजपा ने सामाजिक समीकरण दुरूस्त करने के लिए छोटे दलों को साथ लाने की तैयारी में है।
भाजपा पूर्वोत्तर राज्यों में विधानसभा चुनाव में मिली सफलता से उत्साहित है। भाजपा के प्रवक्ता मनोज शर्मा ने कहा कि फिलहाल केंद्र सरकार द्वारा किए गए कार्यों के कारण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर विश्वास को लेकर भाजपा का किसी से कोई मुकाबला नहीं है। बिहार में भी लोग कभी नहीं चाहेंगे कि 90 के दशक का दौर फिर से लौटे। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा, जद (यू) और रामविलास पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी ने मिलकर चुनाव लड़ा था और बिहार की 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी।
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ bhaskarhindi.com की टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.
Created On :   5 March 2023 1:00 PM IST