यूपी: अपराधी घोषित होने वाले नेता, जिनका राजनीतिक करियर हुआ खत्म

UP: Leaders declared criminals, whose political career ended
यूपी: अपराधी घोषित होने वाले नेता, जिनका राजनीतिक करियर हुआ खत्म
उत्तर प्रदेश यूपी: अपराधी घोषित होने वाले नेता, जिनका राजनीतिक करियर हुआ खत्म
हाईलाइट
  • गठबंधन की राजनीति

डिजिटल डेस्क, लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में ऐसे नेता रहे हैं, जो आपराधिक गतिविधियों को लेकर बदनाम रहे हैं और उन्होंने इसका इस्तेमाल राजनीति चमकाने के लिए किया है। लेकिन आखिरकार, कानून की पकड़ में वे आ गए और अपराध ने उनके राजनीतिक करियर पर पूर्ण विराम लगा दिया। ये उत्तर प्रदेश के राजनेता हैं, जिनका राजनीतिक करियर अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के कारण ठहर गया है। इस ब्रिगेड का नेतृत्व पूर्व मंत्री अमर मणि त्रिपाठी कर रहे हैं, जिन्होंने पार्टी में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। वह उस दशक के दौरान कांग्रेस से बहुजन समाज पार्टी और फिर समाजवादी पार्टी में चले गए, जब गठबंधन की राजनीति ने राज्य पर शासन किया।

उन्हें 2007 में कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या में दोषी ठहराया गया था और उन्हें उच्च न्यायालयों से कोई राहत नहीं मिली थी। वह वर्तमान में गोरखपुर जेल में अपनी पत्नी के साथ आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। उनका राजनीतिक करियर समाप्त हो गया है। अमर मणि त्रिपाठी की सजा आपराधिक विधायकों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इससे पहले, केवल उदयभान सिंह डॉक्टर ही थे, जिन्होंने अपनी अदालती सजा के कारण विधानसभा सदस्यता खो दी थी।

बसपा के पूर्व विधायक उदयभान सिंह डॉक्टर को 2002 में बसपा के टिकट पर राज्य विधानसभा के लिए चुने जाने के बाद अयोग्य घोषित कर दिया गया था। उन्हें वकील शुक्ला हत्याकांड में दोषी ठहराया गया था और चुनाव आयोग के निर्देश पर यूपी विधानसभा में अपनी सीट गंवा दी थी। अन्य विधायक इस दलील पर विधानसभा के सदस्य बने रहे कि दोषसिद्धि के खिलाफ उनकी अपील विभिन्न अदालतों में लंबित है। त्रिपाठी के बाद दोषी ठहराए गए अन्य विधायक बसपा के पूर्व विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी थे, जिनका राजनीतिक करियर ठहर गया।

वह 2007 में राज्य विधानसभा के लिए चुने गए थे और 2010 में उन पर बलात्कार का आरोप लगाया गया था। बाद में उन्हें इस मामले में दोषी ठहराया गया था। गुर्दे से संबंधित बीमारी के कारण पिछले साल जेल में सजा काटने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी। एक अन्य बसपा विधायक, जिसकी सजा ने उनके राजनीतिक जीवन को छोटा कर दिया, वह हैं शेखर तिवारी। तिवारी पर 2008 में एक इंजीनियर मनोज गुप्ता की पीट-पीट कर हत्या करने का आरोप लगाया गया था। इस मामले में तिवारी और 11 अन्य को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। भाजपा के पूर्व विधायक अशोक चंदेल को 2019 में हमीरपुर में 1997 में पांच लोगों की हत्या के आरोप में दोषी ठहराया गया था। चंदेल वर्तमान में आगरा जेल में बंद है। उनकी सजा के बाद उन्हें राज्य विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।

भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर को दिसंबर 2019 में दिल्ली की एक अदालत ने बलात्कार के मामले में दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी और फरवरी 2020 में राज्य विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। चार बार के विधायक सेंगर ने मार्च 2017 में बांगरमऊ विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीता था। हाल ही में उत्तर प्रदेश के मंत्री राकेश सचान को आर्म्स एक्ट के एक मामले में दोषी ठहराए जाने ने इस मुद्दे पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है। मंत्री को एक साल की जेल की सजा दी गई है। हालांकि वह अदालत में ही जमानत पाने में कामयाब रहे।

यूपी विधानसभा के एक वरिष्ठ विधायक, (जिन्होंने नाम ना छापने की शर्त पर बात की) ने आईएएनएस को बताया, अमर मणि त्रिपाठी के बाद, कोर्ट ट्रायल के साथ-साथ मीडिया ट्रायल करना एक फैशन बन गया है। यह स्वाभाविक रूप से संबंधित पर दबाव डालता है। उन्होंने आगे पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी का उदाहरण देते हुए कहा, मुख्तार को 2019 में कृष्णानंद राय हत्याकांड में बरी कर दिया गया था, लेकिन मीडिया उन्हें मामले में आरोपी बताता रहा। इससे सार्वजनिक धारणा गलत होती है। शीर्ष अदालत द्वारा उनकी दोषसिद्धि को बरकरार रखने के बाद ही राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए।

सूत्रों के मुताबिक योगी आदित्यनाथ सरकार अब मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ केस वापस लेने की योजना बना रही है। नियमानुसार मामलों को वापस लेने से पहले राज्य सरकार को विशिष्ट बिंदुओं पर जिला प्रशासन से एक रिपोर्ट लेने की आवश्यकता होती है, जिसके बाद प्राप्त रिपोर्ट को कानून मंत्रालय के तहत एक समिति के सामने रखा जाता है, जो सिफारिश करती है।

 

आईएएनएस

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Created On :   14 Aug 2022 11:30 PM IST

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