MP Election 2023: सिवनी के मतदाता विधायक चुनते समय नहीं देखते जाति और धर्म

सिवनी के मतदाता विधायक चुनते समय नहीं देखते जाति और धर्म
17 नवंबर को मध्य प्रदेश में होंगे विधानसभा चुनाव

डिजिटल डेस्क, सिवनी (सतीश शर्मा)। आदिवासी बहुल इस जिले की चारों विधानसभा सीटों का ट्रैक रिकॉर्ड यह बताता है कि यहां के मतदताओं ने वोट डालते या विधायक चुनते समय जाति और धर्म को कभी नहीं देखा। यही वजह है कि एक तिहाई से अधिक आदिवासी मतदाताओं वाले इस जिले में विधायक दीगर समुदायों जो कि यहां बहुत थोड़ी संख्या में है, बनता आया है। जिले की चारों विधानसभा सीटों पर आदिवासी मतदाताओं की कुल संख्या करीब पौने चार लाख यानि 35 प्रतिशत है। यहां एसटी वर्ग के लिए आरक्षित बरघाट के साथ लखनादौन सीट को छोड़ दिया जाए तो सिवनी विधानसभा सीट पर अधिकांशत: ब्राह्मण, जैन व कलार समाज के लोग ही विधायक बनते आए हैं। इसी तरह से केवलारी सीट पर राजपूतों का ही वर्चसव रहा है। एसटी वर्ग के लिए आरक्षित बरघाट सीट पर भी परिसीमन व आरक्षण से पहले मतदाता पवार समाज के प्रत्याशी को विधानसभा में जाने का अवसर देते आए हैं।

सिवनी में पहले ब्राह्मणों व जैन फिर कलारों का रहा दबदबा

2 लाख 74 हजार 945 मतदाताओं वाले सिवनी विधानसभा क्षेत्र में करीब 74 हजार 500 (27 प्रतिशत ) आदिवासी मतदाता हैं। उसके बाद 11 प्रतिशत कुर्मी, 9 फीसदी मुस्लिम तथा 8 फीसदी बागरी मतदाता हैं। बावजूद इसके छिंदवाड़ा जिले से सटी इस सीट पर वोटर महज 4.3 प्रतिशत मतदाता वर्ग के ब्राम्हणों का प्रतिनिधित्व करने वालों सहित 1.5 फीसदी वाले जैन समाज और पिछली 2 बार से 1.5 प्रतिशत मतदाता वर्ग वाले कलार समाज को चुनता आया है। भाजपा ने इस बार भी कलार समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले अपने विजयी प्रत्याशी दिनेश राय ‘मुनमुन’ को रिपीट किया है जबकि कांग्रेस ने सिंधी समाज को पहली बार यहां टिकट देते हुए नये चेहरे बतौर आनंद पंजवानी को अवसर दिया है।

केवलारी पर रहा राजपूतों का कब्जा

2 लाख 60 हजार 521 मतदाताओं वाले केवलारी विधानसभा क्षेत्र में 86 हजार से अधिक (33 फीसदी) आदिवासी मतदाता हैं। संख्या बल के हिसाब से यहां आदिवासियों के बाद सर्वाधिक 10 प्रतिशत मुस्लिम तथा 8 प्रतिशत बागरी मतदाता हैं। बावजूद इसके मंडला और बालाघाट जिले की सीमा से सटी इस सीट का मतदाता कांग्रेस और भाजपा की ओर से चुनाव मैदान में उतारे गए 5 फीसदी मतदाता वर्ग के राजपूतों को चुनता आया है। कांग्रेस के ठाकुर हरवंश सिंह के कब्जे वाली इस घरेलू सीट को जीतने पिछले 4 बार से कांग्रेस के साथ भाजपा भी राजपूत को ही अवसर देती आ रही है। इस बार भी कांग्रेस और भाजपा ने यहां से अपने हारे-जीते प्रत्याशी ठाकुर रजनीश सिंह तथा विधायक राकेश पाल सिंह को ही अवसर दिया है।

बरघाट पर ज्यादातर पवार समाज से चुना जाता रहा विधायक

2 लाख 43 हजार 723 मतदाताओं वाली बालाघाट जिले की सीमा से सटी बरघाट सीट पर भी 2008 के पूर्व के विधानसभा चुनावों तक सिवनी तथा केवलारी जैसी स्थिति रही है। यहां आदिवासी मतदाताओं की संख्या 90 हजार (37 फीसदी) से अधिक है। लेकिन मतदाता संख्या क्रम में 20 प्रतिशत के साथ दूसरे नंबर पर आने वाले पवारों को ही 2003 तक यहां का मतदाता चुनता आया है। 2008 में परिसीमन व आरक्षण के बाद यहां स्थिति बदली और कांग्रेस के साथ भाजपा ने भी एसटी वर्ग को अवसर देना शुरू किया। फिलहाल इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। इस बार यहां कांग्रेस ने एसटी परधान जाति के अपने विजयी प्रत्याशी अर्जुन सिंह काकोडिय़ा को रिपीट किया है तो भाजपा ने एसटी गोंड जाति के अपने पुराने विजयी चेहरे कमल मर्सकोले को मौैका दिया है।

लखनादौन में आदिवासी मतदाता बीच-बीच में देता रहा है झटका

जबलपुर तथा नरसिंहपुर जिले की सीमा से सटी 2 लाख 94 हजार 823 मतदाताओं वाली लखनादौन सीट पर आदिवासी वोटर्स की संख्या पूरे जिले में सर्वाधिक एक लाख 20 हजार यानि 41 प्रतिशत है। यही वजह है कि यहां के परिणाम इनके मूड पर टिका रहता है। पिछले 33 सालों में इस सीट पर तीन-तीन बार जीत हासिल करने वाली कांग्रेस और भाजपा को भी यहां का मतदाता झटका देता रहा है। एक बार तो उसने दोनों प्रमुख दलों को दरकिनार कर जनता दल के प्रत्याशी को चुना था। पिछले दो बार से यहां लगातार कांग्रेस जीतती आ रही है। उससे पहले भाजपा यहां जीत की हैट्रिक लगा चुकी है। अब यह मौका कांग्रेस प्रत्याशी योगेन्द्र सिंह बाबा के पास है, जिनका रास्ता रोकने भाजपा ने अपने पुराने चेहरे विजय सिंह उइके को मैदान में उतारा है। इन दोनों की राह मुश्किल करने इस क्षेत्र में सर्वाधिक प्रभाव व दखल रखने वाली गोंगपा भी चुनाव मैदान में है।

आदिवासी वोट बंट जाते इसलिए सिवनी व केवलारी में नहीं जीत पा रहे

लखनादौन व बरघाट गोंड व परधान जाति के वोट मूड के हिसाब से एक तरफा पड़़ते हैं। लेकिन, केवलारी और सिवनी में यही वोट बंट जाता है। वोटों के इस बटवारे के पीछे राजनीतिक दलों की अपनी रणनीति रहती है जो दूसरे दल का वोट काटने अपने पक्ष का प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतार देते हैं। सिवनी में गोंगपा का अपना वह प्रत्याशी है जिसने बरघाट में निकाय चुनाव दौरान भारी उलट-फेर करवाया था। केवलारी में उसके प्रत्याशी का फॉर्म निरस्त हो गया है, लेकिन यहां पार्टी के कार्यवाक अध्यक्ष जरूर बागी होकर चुनाव मैदान में हैं जो दोनों ही दलों की मुश्किलें बढ़ाएंगे। बरघाट में गठबंधन के तहत गोंगपा की जगह इस बार बसपा का प्रत्याशी है। तय है यहां ‘हाथी’ कांग्रेस तथा भाजपा की राह में रोड़े अटकाएगा।

Created On :   4 Nov 2023 6:05 PM GMT

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