भिंड में दिखाई देती है यूपी राजनीति की झलक, जातियां तय करती है जीत

भिंड में दिखाई देती है यूपी राजनीति की झलक, जातियां तय करती है जीत
  • सियासी हवा में रेत का अवैध उत्खनन
  • जातीय राजनीति का बोलबाला
  • त्रिकोणीय मुकाबला

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पूर्व में चंबल संभाग की पहचान बंदूक की नोंक से निकलते बारूद से हुआ करती थी, धड़ाधड़ गोलियों की आवाज आज भी लोगों के कानों में सुनाई देती है, चंबल का नाम लेते हुए आज भी लोग सहम जाते हैं। चंबल की अन्य पहचान रेत के बीच चमचमाती नदी और बीहड़ हैं। यहां की सियासी हवा में रेत का अवैध उत्खनन और जातीय राजनीति का हमेशा से ही बोलबाला रहा है। भिण्ड जिले में पांच विधानसभा सीट है, जिनमें अटेर, भिंड, लहार, मेहगांव और गोहद सीट शामिल है।

भिंड जिला उत्तरप्रदेश से सटा हुआ है, इसलिए यहां की सियासी फिजा में यूपी राजनीति की झलक दिखाई देती है, यहां बहुजन समाज पार्टी का काफी प्रभाव मतदाताओं पर देखने को मिलता है। जिले की सभी पांचों सीटों पर बीएसपी कड़ा मुकाबला करती है, बीएसपी की वजह से यहां का चुनाव त्रिकोणीय हो जाता है।

भिंड विधानसभा सीट

भिंड विधानसभा सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी ने भाजपा प्रत्याशी को भारी मतों के अंतर से हराया। बाद में बीएसपी विधायक बीजेपी के पाले में चले गए । भिंड सीट की एक खासियत ये भी रही है कि भिंड विधानसभा सीट पर 2003 के बाद से कोई भी दल दो बार लगातार चुनाव नहीं जीता है। 2003 में बीजेपी के नरेंद्र कुशवाह, 2008 में कांग्रेस से राकेश चौधरी,2013 में बीजेपी के नरेंद्र कुशवाह, 2018 में बीएसपी के संजीव कुशवाह ने जीत हासिल की थी।

कब किसकी रही भिंड

1977 में जेएनपी के ओम कुमारी कुशवाह

1980 में बीजेपी के दिलीप सिंह चौधरी

1985 में कांग्रेस के उदयभान सिंह

1990 में कांग्रेस के राकेश सिंह

1993 में बीजेपी के रामलखन सिंह

1998 में कांग्रेस के राकेश सिंह

2003 में बीजेपी के नरेंद्र सिंह कुशवाह

2008 में कांग्रेस के राकेश सिंह

2013 में बीजेपी के नरेंद्र सिंह कुशवाह

2018 में बीएसपी के संजीव सिंह कुशवाह

अटेर विधानसभा सीट

चंबल और बीहड़ के आगोश में बसे भिंड जिले के अंतर्गत अटेर विधानसभा आती है। मूल अटेर आज भी ग्राम पंचायत के स्वरूप में जी रही है। अटेर विधानसभा को मंत्री देने का गौरव प्राप्त है। सरकार, सत्ता संगठन में भले ही इलाके के नेता और मंत्री का दबदबा रहा हो, लेकिन विकास की नजर से आज भी अटेर पिछड़ा हुआ है। पानी सड़क,शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली की आम समस्याओं से आज भी इलाका जूझ रहा है। चंबल से अवैध रेत उत्खनन इलाके के साथ साथ पर्यावरण के लिए की बहुत बड़ी समस्या है। इलाके का जो भी नेता सरकार में मंत्री रहा जनता ने उनसे काफी उम्मीदें लगाई, लेकिन धरातल पर सभी उम्मीदें धरी रह गई। जो भी विकास यहां हुआ है, वह बंटा हुआ है। यहां के बंटे हुए विकास के पीछे की वजह विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण व ठाकुर वोटरों का बाहुल्य होना है। अभी तक इन्हीं दो जातियों के विधायक बारी बारी से बनते आए है। जातियों के गांव भी बंटे हुए क्षेत्र में दिखाई देते है, जिसके चलते गांव के साथ साथ सरकारी खर्चे पर होने वाला विकास भी बंट गया है। बारिश अधिक होने पर हर साल कई गांव बाढ़ की चपेट में आते है, कई युवा बेरोजगार है। जबकि चंबल नदी और बीहड़ के बीच स्थित अटेर किला पर्यटकों के लिए बड़ा आकर्षण बन सकता है। अटेर से कोई भी विधायक दो बार लगातार चुनाव नहीं जीता। हालंकि इस सीट पर अभी तक कांग्रेस और बीजेपी जीतती आई है।

सीट के राजनीतिक इतिहास को देखें तो 1952 से 2018 के चुनाव सहित अटेर में 16 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं, इनमें से 9 बार कांग्रेस, 4 बार भाजपा, 2 बार बीएसपी और 1 बार जनता पार्टी जीती है।

वर्ष 1952 में कांग्रेस के बाबूराम खेरी अटेर से पहले विधायक बने, 1957 में हरज्ञान बौहरे से खेरी चुनाव हार गए थे। इसके बाद बाबूराम खेरी दोबारा कभी अटेर की चुनावी राजनीति में नजर नहीं आए। वहीं अटेर सीट पर बीजेपी का खाता साल 1977 में जनसंघ के रूप में खुला था, उस समय शिवशंकर समाधिया ने बाजी मारी थी।

आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को बुरी तरह से शिकस्त झेलनी पड़ी थी। बात यहीं नहीं रुकी वर्ष 1985 में कांग्रेस नेता सत्यदेव कटारे अटेर की राजनीति में धूमकेतु की तरह चमके लेकिन उन्होंने 1990 में चतुराई दिखाई और मैदान छोड़ दिया। मतलब हार का तमगा अपने ऊपर लेने से बच गए। 1993 में दुबारा चुनाव लड़ा और बाजी मार ली। वर्ष 1998 में हुए चुनाव में फिर कटारे ने गेप ले लिया और लगातार दो बार विधायक न बनने वाले अभिशाप से बच गए। लेकिन 2003 के चुनाव में जब प्रदेशभर में उमा भारती की आंधी चली लेकिन अटेर में कटारे विजयी रहे।

अटेर में जीत का सफर

1990 में बीजेपी के मुन्ना सिंह भदौरिया

2008 में बीजेपी के अरविंद सिंह भदौरिया

2013 में कांग्रेस के सत्यदेव कटारे

2018 में बीजेपी के अरविंद सिंह भदौरिया

लहार विधानसभा सीट

भिंड जिले की लहार सीट कांग्रेस का गढ़ है, इस सीट पर कांग्रेस के डॉ गोविंद सिंह का एकतरफा राज है, विधानसभा चुनाव के एक- दो बार के मौके पर यहां बीएसपी कांग्रेस को टक्कर दिखाई देती हुई नजर आई थी, यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी से ही होता आया है। डॉ गोविंद सिंह इस समय कांग्रेस के विपक्ष के नेता है। लहार में डॉ सिंह का एकतरफा दबदबा है।

लहार में गोविंद की सियासी लहर

1977 में जेएनपी से राम शंकर सिंह

1980 में कांग्रेस से रामशंकर चौधरी

1985 में कांग्रेस के सत्यदेव कटारे

1990 में जेडी से गोविंद सिंह

1993 में कांग्रेस से डॉ गोविंद सिंह

1998 में कांग्रेस के डॉ गोविंद सिंह

2003 में कांग्रेस के डॉ गोविंद सिंह

2008 में कांग्रेस के डॉ गोविंद सिंह

2013 में कांग्रेस के डॉ गोविंद सिंह

2018 में कांग्रेस के डॉ गोविंद सिंह

मूलभूत सुविधाओं से महरूम मेहगांव का मतदाता

भिंड जिले की मेहगांव सीट मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी विधानसभा क्षेत्रों में शामिल है। मूलभूत सुविधाओं से महरूम मेहगांव के मतदाता चुनावी साल में प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करने को तैयार बैठे है। मेहगांव सीट पर सभी जातियों के वोटर्स मिल जाते है, यहां ओबीसी और सामान्य वर्ग की चुनावी जंग दिखाी देती है। चुनाव में जातीय समीकरण साफ दिखाई पड़ता है। मेहगांव सीट पर अनुसूचित जाति का दबदबा है, यहां एसी प्लस ओबीसी बनाम ब्राह्मण और क्षत्रिय का फॉर्मूला चलता है। यहां एसी वोट गांव गांव में बंटा है, सीट पर करीब 80 हजार एससी मतदाता है। जो किसी भी प्रत्याशी की हार जीत का फैसला करते हे। सीट पर ब्राह्मण जाति और क्षत्रिय वर्ग के मतदाताओं की संख्या तकरीबन बराबर है।

मेहगांव का चुनावी मौसम

मेहगांव विधानसभा सीट पर जातीय मतदाता प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करते है। मेहगांव सीट पर कई उम्मीदवार चुनावी मैदान में अपना भाग्य आजमाने के लिए उतरते है। मेहगांव के मतदाताओं ने भी कभी भी एक पार्टी और प्रत्याशी पर भरोसा नहीं जताया है। हर बार नए उम्मीदवार पर जीत का ठप्पा लगता है। मेहगांव चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी और निर्दलीयों ने जीत हासिल की।

आगामी चुनावों को देखते हुए बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी और निर्दलीयों ने अपने अपने चुनावी गणित को बैठाना स्टार्ट कर दिया है।

1980 में निर्दलीय राय सिंह भदौरिया

1985 में कांग्रेस के रुस्तम सिंह

1990 में कांग्रेस के हरि सिंह

1993 में बीएसपी के नरेश सिंह गुर्जर

1998 में बीजेपी के राकेश शुक्ला

2003 में निर्दलीय मुन्ना सिंह

2008 में बीजेपी के राकेश शुक्ला

2013 में मुकेश सिंह चतुर्वेदी

2018 में कांग्रेस के ओपीएस भदौरिया

2020 उपचुननाव में बीजेपी के ओपीएस भदौरिया

गोहद का गणित

भिंड जिले की पांच विधानसभाओं में से गोहद विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, गोहद विधानसभा सीट पर बीजेपी, कांग्रेस और बीएसपी के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिलती है। यहां से बीजेपी ने अधिकबार जीत हासिल की है।

गोहद का सियासी इतिहास

1957 के कांग्रेस से सुशीला सोबरन सिंह भदौरिया

1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रामचरण लाल थापक

1967 जनसंघ से कन्हैयालाल माहौर

1972 में जनसंघ से भूरेलाल फिरौजिया

1977 जनता पार्टी से भूरेलाल फिरौजिया

1980 में भाजपा के श्रीराम जाटव

1985 कांग्रेस से चर्तुभुज भदकारिया

1989 कांग्रेस के सोपत जाटव

1990 में बीजेपी के श्रीराम जाटव

1993 में बीएसपी के चतुरीलाल बराहदिया

1998 में बीजेपी के लाल सिंह आर्य

2003 में बीजेपी के लाल सिंह आर्य

2008 में कांग्रेस के माखनलाल जाटव

2009 में कांग्रेस के रणवीर जाटव

2013 में बीजेपी के लाल सिंह आर्य

2018 में कांग्रेस से रणवीर सिंह जाटव

2020 उपचुनाव कांग्रेस के मेवाराम जाटव

Created On :   23 Jun 2023 12:02 PM GMT

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