यहां पति के जिंदा होते हुए भी विधवा जैसी जिंदगी जीती हैं महिलाएं, जानिए इस अनौखी परंपरा के बारे में

Ajab-Gajab: Here women live a widow-like life even though her husband is alive
यहां पति के जिंदा होते हुए भी विधवा जैसी जिंदगी जीती हैं महिलाएं, जानिए इस अनौखी परंपरा के बारे में
अजब- गजब यहां पति के जिंदा होते हुए भी विधवा जैसी जिंदगी जीती हैं महिलाएं, जानिए इस अनौखी परंपरा के बारे में

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में महिलाओं के लिए पति की अहमियत से हर कोई परिचित है। करवाचौथ जैसे कई व्रत महिलाएं अपने पति के लिए करती हैं। वहीं कुंवारी लड़कियां अच्छे पति के लिए व्रत करती हैं। हिंदू धर्म में विवाह के बाद महिलाएं बिंदी, सिंदूर , महावर आदि चीजें पहनती हैं जो उनके सुहाग का प्रतीक होती है। माना जाता है की सोलह सिंगार करने से पति की उम्र लंबी होती है। वहीं सुहागन महिला का श्रृगांर ना करना अपशगुन माना जाता है।

लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि पति के जिंदा होते हुए भी महिला विधवा की जिंदगी जिए। वो भी जब, वह अपने पति की उम्र बढ़ाना चाहती है। पढ़ने सुनने में यह बात भले ही अनोखी लगे, लेकिन हमारे ही देश में एक ऐसा समुदाय है, जहां की महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए विधवा बनकर रहती हैं। आइए जानते हैं इस परंपरा के बारे में...

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यहां विधवा की जिंदगी जीती हैं सुहागिन महिलाएं
पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक गछवाह समुदाय है। जहां के लोग अजीब तरह के रिवाजों को मानते हैं। इस समुदाय की महिलाएं अपनी पति की लंबी उम्र के लिए साल में करीब 5 महीने विधवा बन कर रहती हैं। यहां पर ये परंपरा सालों से युं ही चली आ रही है। 

विधवा बनकर रहने का है ये कारण
इस समुदाय के पुरूष साल में पांच महीने पेड़ों से ताड़ी निकालने का काम करते हैं। इन 5 महीनों के दौरान ही महिलाएं विधवा बन कर रहती हैं। यहां की परंपरा है कि हर साल जब पुरुष पांच महीने तक पेड़ों से ताड़ी उतारने जाएंगे, तब उस वक्त सुहागिन महिलाएं न तो सिंदूर लगाएंगी और न ही माथे पर बिंदी लगाएंगी। साथ ही वह किसी भी तरह का कोई श्रृंगार भी नहीं करतीं हैं। 

दरअसल, ताड़ के पेड़ पर चढ़ कर ताड़ी उतारना काफी कठिन काम माना जाता है। ताड़ के पेड़ काफी लंबे और सीधे होते हैं। इस दौरान अगर जरा सी भी चूक हो जाए तो इंसान पेड़ से नीचे गिरकर मर सकता है। इसीलिए उनकी पत्नियां कुलदेवी से अपने पति के लंबी उम्र की कामना करती हैं तथा अपने श्रृंगार को माता के मंदिर में रख देती हैं। 

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गछवाहा समुदाय तरकुलहा देवी को अपना कुलदेवी मानता है और उनकी पूजा करता है। इस समुदाय का मानना है कि ऐसा करने से कुलदेवी प्रसन्न हो जाती हैं, जिससे उनके पति 5 महीने  काम के बाद सकुशल वापस लौट आते हैं। 

Created On :   17 Nov 2021 12:25 PM GMT

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