April Fool: जानिए क्यों मनाते है ये मूर्ख दिवस, किसने की इसकी शुरुआत
डिजिटल डेस्क । आज एक अप्रैल है और ये तो सभी जानते हैं कि इस दिन अप्रैल फूल मनाया जाता है। इसे मूर्ख दिवस भी कहा जाता है। इस दिन मस्ती-मजाक में लोग अपने करीबियों या कई तो राह चलतों को भी मूर्ख बना देते है, लेकिन इस दिन की सबसे बड़ी खासियत है कि अन्य दिनों की तरह इस दिन मूर्ख बना व्यक्ति नाराज नहीं होता। वहीं मूर्ख बनने के बाद लोग इसका बदला भी लेते हैं और फिर वो भी दूसरों को मूर्ख बनाते हैं।
इस दिन आधिकारिक छुट्टी नहीं होती है, लेकिन लोग अपने दोस्त रिश्तेदार, ऑफिस में ये दिन अच्छे से मस्त होकर सेलिब्रेट करते हैं। पारंपरिक तौर पर कुछ देशों में जैसे न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका में इस तरह के मजाक केवल दोपहर तक ही किए जाते थे। जिन शहरों में दोपहर के बाद मजाक करने वालों को अप्रैल फूल कहा जाता है। ब्रिटेन के अखबार जो अप्रैल फूल पर मुख्य पृष्ठ निकालते हैं वे ऐसा सिर्फ पहले (सुबह के) एडिशन के लिए ही करते हैं। इसके अलावा फ्रांस, आयरलैंड, इटली, दक्षिण कोरिया, जापान रूस, नीदरलैंड, जर्मनी, ब्राजील, कनाडा और अमेरिका में जोक्स का सिलसिला दिन भर चलता रहता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि April fool क्यों मनाते है और इसकी शुरूआत कहां से हुई? शायद जानते होंगे, लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे है कि आखिर ये "मूर्ख दिवस" किसके दिमाग की उपज है।
कहां से शुरू हुआ?
इस बारे में कोई पुख्ता सबूत या तथ्य तो नहीं कि अप्रैल फूल्स डे वास्तव में कहां से शुरू हुआ? लेकिन, कुछ घटनाएं इस बारे में इशारा जरूर करती हैं।
- कहा जाता है कि ज्यॉफ्री सॉसर्स ने पहली बार साल 1392 में इसका जिक्र केंटरबरी टेल्स में किया था।
- कुछ लोग इसका रिश्ता एक मजेदार घटना से भी जोड़ते हैं। कहा जाता है कि ब्रिटिश किंग रिचर्ड द्वितीय और बोहेमियन किंगडम की राजकुमारी एनी की सगाई की तारीख राजमहल ने 32 मार्च घोषित कर दी। जबकि महीना सिर्फ 31 दिन का था। लोगों को लगा कि उन्हें मूर्ख बनाया गया है। हालांकि, वो इसे 1 अप्रैल ही समझे। कहा जाता है कि तभी से 1 अप्रैल को फूल्स डे के तौर पर मनाया जाता है।
कैंटरबरी टेल्स में क्या है खास?
एक अप्रैल और मूर्खता के बीच सबसे पहला दर्ज किया गया संबंध चॉसर के कैंटरबरी टेल्स (1392) में पाया जाता है। कई लेखक ये बताते हैं कि 16वीं सदी में एक जनवरी को न्यू ईयर्स डे के रूप में मनाए जाने का चलन एक छुट्टी का दिन निकालने के लिए शुरू किया गया था, लेकिन ये सिद्धांत पुराने संदर्भों का उल्लेख नहीं करता है।
इस किताब की एक कहानी नन्स प्रीस्ट्स टेल के मुताबिक इंग्लैण्ड के राजा रिचर्ड द्वितीय और बोहेमिया की रानी एनी की सगाई की तारीख 32 मार्च घोषित कर दी गई। जिसे वहां की जनता ने सच मान लिया और मूर्ख बन बैठे। तब से 32 मार्च यानी 1 अप्रैल को अप्रैल फूल डे के रूप में मनाया जाता है।
नया साल अप्रैल फूल
एक और कहानी के मुताबिक प्राचीन यूरोप में नया साल हर वर्ष 1 अप्रैल को मनाया जाता था। 1582 में पोप ग्रेगोरी 13 ने नया कैलेंडर अपनाने के निर्देश दिए जिसमें न्यू ईयर को 1 जनवरी से मनाने के लिए कहा गया। रोम के ज्यादातर लोगो ने इस नए कैलेंडर को अपना लिया लेकिन बहुत से लोग तब भी 1 अप्रैल को ही नया साल के रूप में मानते थे। तब ऐसे लोगो को मूर्ख समझकर उनका मजाक उड़ाया।
एक कहानी ये भी
-1915 की बात है जब जर्मनी के लिले हवाई अड्डा पर एक ब्रिटिश पायलट ने विशाल बम फेंका। इसको देखकर लोग इधर-उधर भागने लगे, देर तक लोग छुपे रहे, लेकिन बहुत ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद भी जब कोई धमाका नहीं हुआ तो लोगों ने वापस लौटकर इसे देखा। जहां एक बड़ी फुटबॉल थी, जिस पर अप्रैल फूल लिखा हुआ था।
- तो कुछ का मनाना ये भी है कि 1582, में पोप ग्रीगरी XIII ने नया साल, मार्च महीने के अंत के बजाए 1 जनवरी से मनाने का ऐलान किया था। इस बदलाव के बाद भी यूरोप में कई लोग पुराने जूलियन यानी पुराने कैलेंडर के अनुसार ही नया साल मना रहे थे क्योंकि उन्हें शायद इसकी जानकारी नहीं थी या फिर वे इसे अपनाना नहीं चाहते थे। ऐसे में जिन्होंने नया कैलेंडर अपनाया, उन्होंने उन लोगों को ‘fools’ यानी मूर्ख कहना शुरू कर दिया था जो पुराने कैलेंडर के हिसाब से चल रहे थे। कैलेंडर का यह बदलाव फ्रांस से शुरू हुआ था।
भारतीय कैलेंडर में क्या है
ऐसा भी कहा जाता है कि पहले पूरे विश्व में भारतीय कैलेंडर की मान्यता थी। जिसके अनुसार नया साल चैत्र मास में शुरू होता था, जो अप्रैल महीने में होता था। बताया जाता है कि 1582 में पोप ग्रेगोरी ने नया कैलेंडर लागू करने के लिए कहा। जिसके अनुसार नया साल अप्रैल के बजाय जनवरी में शुरू होने लगा और ज्यादातर लोगों ने नए कैलेंडर को मान लिया।
Created On :   1 April 2018 8:55 AM IST