तो इसलिए ट्रेन में हमें नहीं मिलती पसंद की सीट
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जब भी हम किसी मूवी की टिकट बुक करते हैं, तो हमारे पास अपनी पसंद की सीट चुनने का ऑप्शन होता है, लेकिन ट्रेनों में हमारे पास ऐसा कोई विकल्प नहीं होता। कई लोगों को खिड़की वाली सीट से बेहद लगाव होता है, लेकिन फिर भी उन्हें विंडो सीट नहीं मिलती। आखिर क्या कारण है कि आईआरसीटीसी हमें अपनी सीट चुनने की इजाजत नहीं देती। आईए जानते हैं इसके पीछे क्या वजह है।
ऐसे किया जाता है सीटों को आवंटित
ट्रेन में स्लीपर क्लास कोच की सीट का नंबर एस 1, एस 2, एस 3 होता है। हर कोच में 72 सीटें उपलब्ध होती हैं। जब भी आप टिकट बुक करते हैं, तो सॉफ्टवेयर आपको कोच के बीच में कहीं 30-40 नंबर के बीच सीट देता है और इनमें भी ज्यादातर लोअर बर्थ होती हैं। ऐसा कहा जाता है कि गुरुत्वाकर्षण के निम्न केंद्र को बनाए रखने के लिए रेलवे पहले निचली बर्थ भरता है और फिर ऊपरी बर्थ को भरा जाता है।
हर कोच का संतुलित रहना है जरूरी
जब भी आप अपनी टिकट बुक करते हैं, तो सॉफ्टवेयर इस तरह से काम करता है कि सभी कोचों में एक समान यात्री भर जाए और हमेशा शुरूआत कोच के बीच की सीटों से की जाती है और ऐसा करते हुए गेट के पास की सीटों तक आया जाता है। इतना ही नहीं सबसे पहले निचली बर्थ भरी जाती है और फिर ऊपरी बर्थ आवंटित की जाती हैं। रेलवे सुनिश्चित करता है कि हर कोच में प्रोपर लोड डिस्ट्रीब्यूशन रहें और प्रत्येक कोच सही ढंग से संतुलित रहे।
इसलिए नहीं मिलता सीट चुनने का विकल्प
ट्रेन की न्यूनतम स्पीड लगभग 100 किमी / घंटे की होती है, इस दौरान ट्रेन पर कई तरह के मैकेनिकल फोर्स लगते हैं। अगर केवल एस 1, एस 2, एस 3 सीट्स पर ही पैसेंजर हों और एस 5, एस 6 पूरी तरह से खाली हो तो ऐसे वक्त जब भी ट्रेन टर्न लेगी, तो कुछ कोचों में उच्चतम केन्द्रापसारक बल का अनुभव होगा और कुछ कोचों को न्यूनतम बल का सामना करना पड़ेगा। इससे ट्रेन पटरी से भी उतर सकती है।
आखिरी पल में दी जाती है ऊपरी बर्थ
जब ट्रेन में ब्रेक लगाए जाते हैं तो प्रत्येक कोच पर काम करने वाले विभिन्न तरह के बल काम करते हैं। प्रत्येक कोच अलग-अलग वजन का होता है, इसलिए ट्रेन की स्थिरता को बनाए रखना बेहद जरूरी होता है। अब आप समझ ही गए होंगे कि आखिरी पल में जब आप टिकट बुक करते हैं तब आपको हमेशा ऊपरी बर्थ ही क्यों दी जाती है।
Created On :   18 May 2018 2:20 PM IST