कैसे होगी हरित क्रांति? विदर्भ की 198 परियोजनाओं को जरूरत है 28833 करोड़ की, मात्र 30% क्षेत्र ही होगा सिंचित 

कैसे होगी हरित क्रांति? विदर्भ की 198 परियोजनाओं को जरूरत है 28833 करोड़ की, मात्र 30% क्षेत्र ही होगा सिंचित 

Anita Peddulwar
Update: 2018-07-19 07:28 GMT
कैसे होगी हरित क्रांति? विदर्भ की 198 परियोजनाओं को जरूरत है 28833 करोड़ की, मात्र 30% क्षेत्र ही होगा सिंचित 

लिमेश कुमार जंगम, नागपुर। विदर्भ का सिंचाई अनुशेष व अन्य विकास पूरक योजनाओं के असंतुलन पर अनेक बार विधानमंडल के सदनों में विरोधकों ने हंगामा मचाया था। समय का पहिया घूमता गया और जो कभी विरोध में थे, वे सत्ताधारी बन गए तथा सत्ता का उपभोग लेने वाले विपक्ष में बैठकर मेज थपथपाने लगे। यह क्रम जारी है, परंतु विदर्भ में खेती योग्य 2519000 हेक्टेयर भूमि में से आज भी 1753000 हेक्टेयर जमीन को सिंचाई का लाभ नहीं मिल रहा है। बारिश पर निर्भर पारंपरिक खेती करने वाले लाखों किसानों का जीवन बदलने के लिए राज्य सरकारों ने अनेक सिंचाई योजनाएं बनाई।

वर्तमान में विदर्भ की 198 परियोजनाओं को पूर्ण करने के लिए 28833 करोड़ रुपए की जरूरत है। निधि उपलब्ध तो कराई जा रही है, किंतु निर्माण कार्य की कछुआ गति के कारण सिंचाई का लाभ क्षेत्र 30.7 फीसदी से भी आगे नहीं बढ़ पाया है। ऐसे में सरकार के हरित क्रांति का सपना महज दिखावा लगने लगा है। 

9.22 लाख किसानों की कौन लेगा सुध ?
सरकार व प्रशासन दावा करती है कि पूर्व विदर्भ में 766000 हेक्टेयर भूमि को सिंचाई का लाभ मिल रहा है। यहां 199941 सिंचन कुएं उपलब्ध हैं और 254000 हेक्टेयर भूमि सिंचन कुओं से सिंचित हो रही है। कुल मिलाकर 30.7 प्रतिशत कृषि भूमि का सिंचन हो रहा है। 8508 गांवों में बसने वाले 922000 किसान एवं 1335000 खेत मजदूर अपना खून-पसीना बहाकर 2299000 हेक्टेयर में खेती कर रहे हैं। 1155000 मीट्रिक टन अनाज और 205000 मीट्रिक टन दलहन के अलावा 325000 मीट्रिक टन गन्ना तथा 56000 मीट्रिक टन कपास उगा रहे हैं।

इसके बावजूद अन्नदाता किसान व इन गांवों में रहने वाले 767000 परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। अनेक नदियों से घिरे 6831 गांवों में 12 माह पानी उपलब्ध होता है। इसके बावजूद 9.22 लाख किसानों को सिंचाई सुविधा नहीं मिल पाने के कारण वे केवल एक फसल लेकर अपना जीवन गुजर-बसर करने के लिए मजबूर हैं।

2010.67 करोड़ की योजनाएं केवल मरहम
सिंचाई परियोजनाओं को छोड़, अन्य विविध विकास कार्यों के लिए सरकार की ओर से कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। इसमें मुख्य रूप से जिला परिषदों की ओर से पूर्व विदर्भ के 6 जिले नागपुर, वर्धा, चंद्रपुर, गड़चिरोली, गोंदिया व भंडारा पर प्रति वर्ष औसतन 2010 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। जिसमें सर्वसाधारण जिला वार्षिक योजना पर 1080.25 करोड़, अनुसूचित जाति उपयोजना पर 333.43 करोड़, आदिवासी उपयोजना पर 531.82 करोड़ तथा 32 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में अन्य योजनाओं के तहत 65.17 करोड़ की निधि का समावेश है। लेकिन सिंचाई की क्षमता को बढ़ाने के लिए आज भी महाराष्ट्र के अन्य संभागों की तुलना में विदर्भ को पर्याप्त निधि उपलब्ध नहीं कराए जाने के आरोप लगते रहे हैं। यही वजह है कि सिंचाई का क्षेत्र अपेक्षा के अनुरुप बढ़ नहीं पा रहा है।

314 सिंचाई परियोजनाएं आज भी अधूरी
16 से अधिक प्रमुख नदियों से घिरे विदर्भ में सिंचाई विभाग की ओर से 1108 परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। इनमें से 788 का निर्माण पूर्ण हो चुका है। शेष 320 में से 6 परियोजनाओं को विभिन्न कारणों के चलते रद्द किया गया। 314 निर्माणाधीन परियोजनाओं से 8442.71 दलघमी जलसंग्रहण क्षमता निर्मित की गई है। इन परियोजनाओं के निर्माण के लिए अब तक 37 हजार 927 करोड़ निधि खर्च की जा चुकी है, जबकि वन कानून की जटिल शर्तों एवं मंजूरी प्राप्त करने में आ रही दिक्कतों के कारण अब तक विदर्भ की 28 परियोजनाओं को मंजूरी नहीं मिल पाई है। इस कारण संबंधित परियोजनाओं का निर्माण कार्य अधर में अटका हुआ है। वहीं 6 परियोजनाओं को विविध कारणों के चलते सरकार ने रद्द कर दिया है। प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों के प्रयास इस दिशा में कम पड़ते दिखाई दे रहे हैं। वहीं 314 निर्माणाधीन परियोजनाओं में से मात्र 122 का ही कार्य पूर्ण हुआ है। 

पूर्व विदर्भ में कृषि व सिंचन की स्थिति
12 बड़ी परियोजनाएं
531000 हेक्टेयर सिंचन लाभ क्षेत्र
41 मध्यम परियोजनाएं
273000 हेक्टेयर सिंचन लाभ क्षेत्र
3176 किमी नदियों की लंबाई
औसतन बारिश-1010.1 मिमी
64 तहसीलें, 8508 गांव
3674 ग्रापं, 9.22 लाख किसान
13.35 लाख खेत मजदूर
2299000 हेक्टेयर में खेती
1741000 मीट्रिक टन उत्पादन
8463.19 करोड़ योजनाओं पर खर्च

सिंचाई का अनुशेष 10.33 लाख हेक्टेयर 
विदर्भ का सिंचाई अनुशेष दूर करने में सरकार नाकाम होती रही है। इसलिए समय-समय पर पृथक विदर्भ की मांग विरोधी दल उठाते रहे। विधानसभा में भी सिंचाई के मुद्दे पर 10 लाख 94 हजार हेक्टेयर अनुशेष की बात कही गई थी। सिंचाई के अनुशेष एवं असंतुलित विकास के कारण महाराष्ट्र के अन्य संभागों की तुलना में विदर्भ तथा मराठवाड़ा की कृषि की स्थिति दयनीय है। सिंचाई के लाभ से वंचित इलाकों के किसान ही बड़ी संख्या में आत्महत्याएं करने लगे हैं। खासकर पश्चिम विदर्भ का हालात बद-से-बदतर है।

पश्चिम व उत्तर महाराष्ट्र में सिंचाई की बेहतर स्थिति के कारण वहां के किसान आत्महत्या जैसे गलत कदम नहीं उठाते। पर्याप्त निधि उपलब्ध कराने के साथ-साथ विकास कार्यों को गति देकर समय रहते सभी परियोजनाओं को पूर्ण करना अनिवार्य है। विकास कार्यों में देरी के कारण लंबित परियोजनाओं की लागत भी बढ़ने लगी है।

402000 हेक्टेयर है बंजर भूमि
पूर्व विदर्भ के 6 जिलों की बात की जाए तो यहां का भौगोलिक क्षेत्र 4238000 हेक्टेयर है। इसमें से 1051000 हेक्टेयर भूमि जंगल से व्याप्त है, जबकि 345000 हेक्टेयर जमीन पर खेती नहीं होती। हैरत की बात है कि आज भी यहां की 402000 हेक्टेयर भूमि बंजर है, जहां अनाज का एक दाना भी नहीं उगाया जाता। ऐसे में 2519000 हेक्टेयर कृषि भूमि से 577.04 करोड़ रुपए का राजस्व इसी भूमि से प्राप्त करने वाली सरकार को कृषि व सिंचाई के विकास पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।

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