Nagpur News: ममतामयी देवियों को सलाम - जब अपने छोड़ देते हैं साथ, तब थाम लेतीं हैं हाथ

ममतामयी देवियों को सलाम - जब अपने छोड़ देते हैं साथ, तब थाम लेतीं हैं हाथ
  • जहां थम जाता है उपचार, वहां से शुरू होती हैं उनकी सेवाएं
  • सेवा का सफर, मृत्यु तक निभाते साथ

Nagpur News - चंद्रकांत चावरे। यूं तो मां का ऋण कोई उतार नहीं सकता। हां, मां की सेवा कर सकते, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर सकते। ‘मदर्स डे’ यानि ‘मातृ दिवस’ मां का महिमागान व कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है। इस अवसर पर स्वास्थ्य व चिकित्सा सेवा में काम कर रही 16 से अधिक नर्सेस की बात कर रहे हैं। यह नर्सेस नहीं बल्कि मरीजों के लिए ‘मां’ बनकर काम कर रही है। निश्चल प्रेम भाव से मरीजों के अंतिम दिनों में उन्हें खुशियां देने का काम करती हैं। कैंसर से पीड़ित मरीजों की अंतिम सांसें चल रही हो, घर में या अस्पतालों में रखने लायक न हो, ऐसे मरीजों की सेवा ही इन नर्सेस का काम है। एक-दो नहीं बल्कि 16 नर्सेस का यह ममतामयी समूह जीवन के अंतिम क्षण काट रहे, ऐसे मरीजों की खुद के बच्चों से भी बढ़कर देखभाल करती है।

मरीज की मां बनकर की सेवा

नागपुर में कैंसर पीड़ित मरीजों की अंतिम क्षणों में देखभाल करनेवाली संस्था है। संस्था का नाम स्नेहांचल उपशामक व देखभाल केंद्र है। यहां 15 महिला नर्स हैं, जो दिन-रात मरीजों की सेवा में लगी रहती हैं। सबको पता होता है कि कैंसर अंतिम चरणों में है। मरीजों को भी यह पता होता है कि उनकी जिंदगी चंद दिन की ही है। इन मरीजों की हालत इतनी दर्दनाक होती है कि घर में या अस्पताल में नहीं रखा जा सकता। उनका उपचार थम चुका होता है। ऐसे मरीजों को स्नेहांचल अपना लेता है। मरीज के भर्ती होने के बाद से ही यहां की नर्सों की सेवा शुरू होती है। सेवा इतनी ममता करुणाभरी होती है कि एक मां भी अपने बच्चों को उतना प्रेम नहीं दे सकती।

आखिर तक निभाते साथ

स्नेहांचल में मरीज भर्ती होने के बाद नर्सेस अपने काम से लग जाती हैं। मरीज की जांच करना, उनसे संवाद करना, दिन रात मरीज के साथ रहना, उसकी निगरानी करना, उसके दर्द काे महसूस करना, उनको हौसला देना सारा काम नर्सेस करती हैं। दर्द हो तो दर्द निवारक दवाएं देना। घाव हो या कीड़े लगे हो तो उनकी नियमित सफाई करना, मरीज को नहलाना, कपड़े पहनाना, नाखून काटना, सांस लेने में तकलीफ हो तो ऑक्सीजन या नेबुलाइजर से राहत देना आदि सेवा काम बड़े ही करुणामयी भाव से किया जाता है।

मरीज कहते- आप मेरी ‘मां’ हो

नर्सेस मरीजों से बात करती है तो वे अपनी जीवनी साझा करते है। कुछ जीवन की गलतियों के लिए ईश्वर से क्षमा मांगते हैं। नर्सेस उनका हाथ थामती हैं तो मरीज के आंसू बहते हैं। मरीज मुस्कुराकर कहते हैं, आप मेरी मां हो। जिसने सगे बेटे से बढ़कर मेरा ध्यान रखा है। यह नर्सेस मरीजों के अंतिम क्षणों में सबसे करीबी साथी बनकर खुशियां बांटती हैं। हर क्षण मृत्यु की ओर बढ़ता मरीज आंखों से एक-एक बूंद आंसू बहाता है, लेकिन उस नर्स को देखकर, उसका हाथ थामकर ईश्वर से मिलने का मनोबल बढ़ता है। यदि किसी मरीज का कोई नहीं तो यहां की नर्सेस ही मृत देह को नहलाना, उसके वस्त्र बदलना, मृत्यु शैया को सजाना और अंत्येष्टि करना आदि काम करती है।

मृत्यु के बाद होती है अंतर्वेदना

नर्सेस अपनी प्रसिद्धि नहीं चाहती। नि:स्वार्थ भाव से सेवा करती है। उनका कहना है कि वह पैसे कमाने नहीं बल्कि सेवा के लिए आयी है। हर दिन मृत्यु को छूते हैं, हर बार जीवन का थोड़ा और सत्य समझते हैं। एक-एक नर्स हर रोज 8 से 12 घंटे सेवा देती है। आपात स्थिति हो तो समय भी नहीं देखती। न किसी से शिकायत होती, न कोई झुंझलाहट। बस शांति से ईश्वर द्वारा सौंपे गए सेवा कार्य में लगी रहती है। जिनकी सेवा दिन रात की, उनकी मृत्यु के बाद अंतर्वेदना और उनकी यादें लंबे समय तक साथ रहती है। वह जब दुनिया से विदा लेता है तो नर्सेस के भी आंसू बहने लगते हैं। कुछ देर के लिए वे भी टूट जाती है। लेकिन फिर नया मरीज आया तो अपने काम से उसे खुशियां बांटने का सिलसिला शुरू हो जाता है। यह वे नर्सेस हैं, जो मरीज को मौत से पहले अपने सेवा कार्य से जीवन का सुकून देती है। स्नेहांचल की नर्सेस सही मायने में हर मरीज के लिए ‘मां’ बनकर काम करती हैं, वे वंदनीय हैं।


Created On :   11 May 2025 6:14 PM IST

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