Amravati News: मेलघाट में एक सप्ताह में दो माताओं की मौत का ठीकरा फोड़ा परिजनों पर

मेलघाट में एक सप्ताह में दो माताओं की मौत का ठीकरा फोड़ा परिजनों पर
जिला स्वास्थ्य विभाग की सफाई को लेकर उठे सवाल- दोष किसका, जिम्मेदारी किसकी?

Amravati News आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र में बाल व माता मृत्यु दर कम करने के लिए सरकार एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है, इसके बावजूद ऐसी घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। हाल ही में सात दिन के भीतर दो माता मृत्यु के मामले सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग सवालों के कटघरे में आ गया है। दिलचस्प बात यह है कि स्वास्थ्य विभाग ने हाईकोर्ट द्वारा बाल-माता मृत्यु दर को लेकर फटकार लगाए जाने के बाद यह रहस्योद्घाटन किया कि सात दिन के भीतर दो माताओं ने दम तोड़ा है, इसके साथ ही अपनी सफाई देते हुए उनके परिजनों पर इलाज में असहयोग का आरोप लगाकर अपने हाथ झटक लिए हैं।

इस प्रकार जिला स्वास्थ्य विभाग ने जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए इसका ठीकरा परिजनों पर ही फोड़ दिया है। जबकि दोनों मौतों की जानकारी विभाग ने तभी उजागर की, जब कुपोषण और बच्चों की मौतों पर हाई कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद सफाई देने की नौबत आई। स्वास्थ्य विभाग ने शुक्रवार को जारी बयान में दावा किया कि दोनों मामलों में स्वास्थ्य टीम ने समयबद्ध व गंभीर प्रयास किए, परंतु "अति-जोखिमग्रस्त" गर्भवती महिलाओं के परिजनों का असहयोग और रेफर से बार-बार इंकार बड़ी बाधा रहा। विभाग के इस स्पष्टीकरण पर सवाल उठते हैं, क्योंकि कार्रवाई की जानकारी स्वयं प्रशासन दे रहा है, फिर दोष परिजनों का कैसे?

पहला मामला : सिकलसेलग्रस्त थी वनिता धिक्कार! स्वास्थ्य विभाग के अनुसार वनिता धिक्कार सिकलसेल से पीड़ित थीं और जोखिम श्रेणी में थीं। विभाग के अनुसार गर्भकाल में पांच जांचें हुईं, जुलाई 2025 में रक्त चढ़ाने के लिए अचलपुर रेफर किया गया, लेकिन वह बीच में घर लौट गईं। प्रसव पीड़ा बढ़ने पर हतरू पीएचसी लाया गया, जहां स्थिति गंभीर पाई गई। बार-बार रेफर करने पर भी परिजनों ने मना किया। प्रसव के बाद परिजन उन्हें अस्पताल में नहीं रुकने दे रहे थे और 28 सितंबर को उनकी घर पर मृत्यु हो गई।

एचबीएसएजी रिएक्टिव थी रानी सावरकर : एचबीएसजी रिएक्टिव रानी सावकर भी अति-जोखिम श्रेणी में थीं। मई से सितंबर के बीच उनकी पांच जांचें एवं सोनोग्राफी सेवाएं दी गईं। 17 सितंबर को प्रसव पीड़ा होने पर 108 एंबुलेंस भेजकर उन्हें काटकुंभ से अचलपुर रेफर किया गया। प्रसव के बाद अगले ही दिन उपचार के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। जिला स्वास्थ्य प्रशासन ने अपनी सफाई में कहा है कि मेलघाट में हर मातृ मृत्यु की विस्तृत जांच होती है और गंभीर गर्भवती महिलाओं को उच्चस्तरीय संस्थानों में रेफर करना आवश्यक है। कई बार परिजन इलाज अधूरा छोड़ देते हैं, अंतिम क्षण में अस्पताल पहुंचते हैं या रेफर मानने से इंकार कर देते हैं। दोनों मामलों में जांच समिति ने संबंधितों पर कार्रवाई की है। परंतु जब प्रशासन स्वयं त्रुटियों पर कार्रवाई स्वीकार रहा है, तो आदिवासी परिजनों पर दोषारोपण उचित नहीं। आदिवासियों का समुपदेशन और सरकारी सेवाएं प्रभावी ढंग से उपलब्ध कराना प्रशासन की मूल जिम्मेदारी है, और यदि यही जिम्मेदारी निभाने में विभाग अपनी पीठ थपथपा रहा है, तो शासन को इसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।


Created On :   15 Nov 2025 3:45 PM IST

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