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Beed News: बीड के अविनाश साबले ने फिर रचा इतिहास , देश को दिलाया स्वर्ण पदक

- 36 साल बाद स्टीपलचेज में कीर्तिमान
- एशियाई चैंपियनशिप में यह उनका दूसरा पदक
Beed News दक्षिण कोरिया के गुमी में आयोजित हो रही प्रतियोगिता में महाराष्ट्र के बीड जिले के अष्टी तहसील के मांडवा गांव के अविनाश साबले ने ऐतिहासिक कारनामा कर दिखाया। उन्होंने पुरुषों की 3000 मीटर स्टीपलचेज श्रेणी में 36 साल बाद भारत को तीसरा स्वर्ण पदक दिलाया है। उन्होंने फाइनल राउंड में 8:20.92 सेकंड का समय लेकर स्वर्ण पदक जीता। अविनाश इस प्रतियोगिता में पुरुषों की 3000 मीटर स्टीपलचेज श्रेणी में स्वर्ण पदक जीतने वाले तीसरे भारतीय बन गए हैं। इससे पहले हरबैल सिंह ने 1975 में स्वर्ण पदक जीता था।
अविनाश साबले ने गुरुवार को एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक जीता। अविनाश साबले 36 साल में 3000 मीटर स्टीपलचेज स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय पुरुष बन गए। अविनाश साबले ने आठ मिनट 20.92 सेकंड (8.20.92 सेकंड) के समय के साथ पहला स्थान हासिल किया। एशियाई चैंपियनशिप में यह उनका दूसरा पदक है। इससे पहले उन्होंने 2019 में रजत पदक जीता था।इस सफलता के चलते बीड जिले में अविनाश साबले को सोशल मीडिया नागरिकों ने बधाई दी।
6 साल की उम्र में स्कूल की वजह से भागना शुरू हुआ : साबले का जन्म बीड जिले से आष्टी तहसील के गांव मांडवा में हुआ । परिवार किसान है। पैदल ही शरीर को खोलने के अवसर बचपन से ही मिलने लगे। परिवार का हिसाब ऐसा था कि स्कूल 6 किलोमीटर दूर पड़ता है। 6 साल की उम्र में यह यात्रा या तो भागकर होती थी या फिर पैदल चलकर क्योंकि बस, रिक्शा वगैरह की कोई सुविधा नहीं थी।6 कक्षा में पढ़ाई करते समय क्रीड़ा प्रबोधन के टेस्ट में उत्तीर्ण होने पर छत्रपति संभाजी नगर के क्रीड़ा प्रबोधन में प्रवेश मिला ।आगे के चार साल की पढ़ाई वहीं पर रहकर पूरी की । 12वीं क्लास पास करने के बाद सेना में नौकरी लग गई और 2013-14 में सियाचीन ग्लेशियर पर पोस्टिंग दी गई, राजस्थान के रेगिस्तान में भी ड्यूटी की और 2015 में सिक्किम में तैनात रहे।
20 किलो वजन कम करना पड़ा, वो भी तीन महीने में : इसके बाद खेल में बड़ा पड़ाव आया जब इस जवान ने इंटर आर्मी क्रास कंट्री रनिंग में पहले भाग लिया। उनके साथी जवानों ने साबले में कुछ तो हुनर देखा और उनके कहने पर साबले दौड़ में शामिल हो गए। इसके बाद वे स्टीपलचेज में गए और अमरीश कुमार से ट्रेनिंग ली। साबले का वजन जो आज दुबला पुतला लगता है एक समय बड़ा भारी थी। उन्हे 20 किलो वजन कम करना पड़ा, वो भी तीन महीने में। उसके बाद नेशनल कैम्प में एंट्री हुई और विदेशी कोच ने उनको तराशा।
पटाखा फोड़कर खुशी मनाई : मेरे पुत्र अविनाश साबले ने स्वर्ण पदक जीतकर हमारा तथा देश का नाम रोशन किया है।हमने इस खुशी के मौके पर पटाखे फोड़कर हमारे पुत्र अविनाश को बधाई दी। वह हमसे मिलने के लिए जल्द गांव आएगा। मुंकुद साबले - पिता (मांडवा)
Created On :   30 May 2025 7:55 PM IST