- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- लातूर
- /
- कितनी दर्द भरी है इन भूमि पुत्रों...
मुसीबतें हजार: कितनी दर्द भरी है इन भूमि पुत्रों की कहानी, सात समंदर जैसा आंखों में उतरा पानी - न बेटा रहा, न बची फसलें

Latur News. संजय बुच्चे। औसा तहसील के इस किसान की आखों में दर्द साफ-साफ देखा जा सकता है। आंसू जो अंदर की तकलीफ को चेहरे पर उभार रहे हैं। साहूकार के कर्ज से परेशान इस बाप के सीने में बेटे के बिछड़जाने का दर्द रह रह कर उठ रहा है। जिसने आत्महत्या कर ली थी। इसके बाद अब साहूकारों का कर्ज और भारी बारिश से बर्बाद फसल का दुख टीस बनकर उभर रहा है। बोरफल गांव के 70 वर्षीय किसान व्यंकट सिताराम कवडे ने बताया कि उन्होंने कर्ज लेकर अपनी ढाई एकड़ जमीन पर सोयाबीन की फसल बोई थी, लेकिन हाल ही में हुई भारी बारिश और बाढ़ ने उनकी पूरी फसल बर्बाद कर दी। खेतों में घुटनों तक पानी भर गया और कवडे दंपती ने अपनी जान जोखिम में डालकर फसल बचाने की कोशिश की, लेकिन निराशा ही हाथ लगी।
कवडे ने भावुक होकर कहा, "जिस बेटे को पाल-पोसकर बड़ा किया, उसी ने एक साल पहले कर्ज के बोझ से तंग आकर आत्महत्या कर ली। यह खेत उसका सपना था। आज 70 साल की उम्र में हमें फिर से खेती करनी पड़ी और अब किस्मत ने फिर मेहनत पर पानी फेर दिया।" उन्होंने यह भी बताया कि अगली फसल बोने के लिए उन्होंने अपनी पत्नी का मंगलसूत्र तक गिरवी रख दिया था, लेकिन अब हाथ में कुछ भी नहीं बचा है।
कवडे की पत्नी ने रुआंसी आवाज में कहा, "आसमान और जमीन दोनों ने हमें घेर लिया है। बेटे का दुख ताजा है और हमारी फसल भी बह गई। बची रोटी भी हाथ से चली गई। हमारे पास अब कोई सहारा नहीं है।"
जिले में सैंकड़ों किसानों की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। लगातार प्राकृतिक आपदाओं और कर्ज के बोझ से यहां के किसान हताश हो चुके हैं। आत्महत्या का काला साया गांव-गांव मंडरा रहा है। किसान सरकार से राहत और आर्थिक मदद की अंतिम उम्मीद लगाए बैठे हैं। बढ़ते कृषि संकट को देखते हुए यह सवाल उठता है कि क्या सरकार समय रहते इन किसानों को राहत प्रदान करेगी, या फिर हालात और बिगड़ेंगे? किसानों की मांग है कि उनकी मदद की जाए, मुआवजा दिया जाए, कम से कम दो जून की रोटी का तो बंदोबस्त हो सके।
Created On :   26 Sept 2025 5:29 PM IST