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व्यक्ति पर अपराध दर्ज होने के बाद एमपीडीए लगाने में 22 दिनों की देरी, पुलिस कार्रवाई पर संदेह
- अदालत ने 8 महीने से एमपीडीए के तहत जेल में बंद याचिकाकर्ता को छोड़ने का दिया आदेश
- समाज में शांति भंग होने का खतरा को देखते हुए आरोपी पर एमपीडीए के तहत होती है कार्रवाई
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति पर अपराध दर्ज होने के बाद उस पर खतरनाक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम (एमपीडीए) लगाने में 22 दिनों की देरी पुलिस की कार्रवाई पर संदेह होता है। ऐसे में संदेह का लाभ व्यक्ति को मिलता है। पुलिस ने व्यक्ति पर एमपीडीए लगाने में देरी का कारण भी नहीं बता पाई। अदालत ने याचिकाकर्ता को जेल से रिहा करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे और न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की खंडपीठ के समक्ष 13 जुलाई को विशाल विजय चाफलकर की ओर से वकील रविराज परामणे की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में पुलिस की याचिकाकर्ता पर एमपीडीए के तहत कार्रवाई को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता के वकील परामणे ने अदालत में दलील दी कि याचिकाकर्ता पर एमपीडीए गलत तरीके से लगाया गया। नाशिक उपनगर पुलिस ने चाफलकर पर एमपीडीए के तहत कार्रवाई के लिए नाशिक पुलिस आयुक्त के पास जो प्रस्ताव भेजा गया, उसमें याचिकाकर्ता पर चार मारपीट के मामले का हवाला दिया था।
पुलिस ने 21 दिसंबर 2021 को जो चौथा मामला दर्ज हुआ था, उसके 22 दिनों बाद पुलिस ने एमपीडीए का प्रस्ताव नाशिक पुलिस आयुक्त को भेजा था। नाशिक के पुलिस आयुक्त ने उस पर मुहर लगाते हुए राज्य सरकार के पास भेज दिया। सरकार ने भी चाफलकर पर एमपीडीए लगाने को अपनी मंजूरी दे दी। याचिकाकर्ता को हिरासत में लेकर जेल भेज दिया गया। वह 8 महीने से जेल में बंद है। याचिकाकर्ता से समाज में रहने से शांति व्यवस्था भंग हो सकती थी, तो ऐसे में पुलिस ने याचिकाकर्ता पर एमपीडीए लगाने में देरी क्यों की? क्या इस दौरान समाज में शांति भंग हुई? खंडपीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टि पुलिस की याचिकाकर्ता पर एमपीडीए के तहत कार्रवाई पर संदेश है। ऐसे में याचिकाकर्ता को जेल से रिहा करने का निर्देश दिया जाता है।
Created On :   16 July 2023 9:48 PM IST