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बॉम्बे हाई कोर्ट: अल्पसंख्यक संस्थानों में कक्षा 11 में दाखिले के लिए एससी,एसटी एवं ओबीसी आरक्षण पर रोक

- एससी,एसटी एवं ओबीसी आरक्षण पर लगाई रोक
- अल्पसंख्यक संस्थानों में कक्षा 11 में दाखिले के लिए आरक्षण
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक संचालित जूनियर कॉलेजों में प्रथम वर्ष जूनियर कॉलेज (एफवाईजेसी) में दाखिले के लिए अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण पर रोक लगा दी है।
न्यायमूर्ति एम.एस.कार्णिक और न्यायमूर्ति एन.आर. बोरकर की खंडपीठ ने पाया कि अल्पसंख्यक संस्थानों में पिछड़े वर्गों के लिए इसी तरह के आरक्षण के लिए मुंबई विश्वविद्यालय द्वारा जारी परिपत्र को रद्द करने वाला हाई कोर्ट का एक पूर्व निर्णय वर्तमान मामले पर पूरी तरह लागू होता है।
पीठ ने निर्देश दिया कि प्रथम दृष्टया, हम पाते हैं कि अंतरिम राहत प्रदान करने के लिए याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्कों में दम है। जहां तक कक्षा 11 में प्रवेश का संबंध है, अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों में किसी भी सीट पर सामाजिक आरक्षण का अधिदेश लागू नहीं किया जाएगा।
पीठ ने अल्पसंख्यक कॉलेजों में सीटों पर एससी/एसटी/ओबीसी आरक्षण लागू करने के राज्य के फैसले के खिलाफ अल्पसंख्यक संस्थानों द्वारा दायर याचिकाओं के एक समूह में यह आदेश पारित किया।
महाराष्ट्र अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के संघ (एमएएमआई), साथ ही सोलापुर और दक्षिण मुंबई के कई प्रमुख कॉलेजों, जिनमें जय हिंद, केसी, एचआर और सेंट जेवियर्स शामिल हैं। उन्होंने सरकार के फैसले को मनमाना और कानूनी अधिकार से रहित बताया है। विवाद के केंद्र में स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा 6 मई को जारी किए गए सरकारी संकल्प (जीआर) का खंड 11 है। यह खंड अल्पसंख्यक कोटे के तहत रिक्त सीटों को केंद्रीकृत प्रवेश प्रक्रिया के माध्यम से भरने की अनुमति देता है।
ऐतिहासिक रूप से महाराष्ट्र में अल्पसंख्यक संस्थानों ने 50-45-5 वितरण सूत्र का पालन किया है । संबंधित अल्पसंख्यक समुदाय के लिए 50 फीसदी, प्रबंधन कोटा के लिए 5 फीसदी और शेष 45 फीसदी बिना आरक्षण के प्रवेश के लिए। हालांकि 2025-26 शैक्षणिक वर्ष के लिए राज्य ऑनलाइन प्रवेश पोर्टल ने अल्पसंख्यक संस्थानों में खुली 45 फीसदी सीटों पर एससी, एसटी और ओबीसी आरक्षण लागू किया जा रहा है।
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील मिलिंद साठे ने दलील दी कि सरकार का निर्णय भारत के संविधान के अनुच्छेद 15(5) और 30 का उल्लंघन करता है, जो स्पष्ट रूप से अल्पसंख्यक संस्थानों, सहायता प्राप्त और गैर-सहायता प्राप्त दोनों को सामाजिक आरक्षण नीतियों के दायरे से बाहर रखता है। सरकारी वकील नेहा भिड़े ने कहा कि इस निर्णय से अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों में कटौती नहीं हुई है। यह नीति केवल सरेंडर की गई अल्पसंख्यक सीटों पर लागू होती है और यह सुनिश्चित करने के लिए शुरू की गई थी कि खाली सीटों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए।अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 6 अगस्त को रखी है।
Created On :   13 Jun 2025 8:35 PM IST