- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- मुंबई
- /
- पिता की बीमारी की वजह से नहीं दे...
पिता की बीमारी की वजह से नहीं दे पाई फीस तो स्कूल ने दो साल से नहीं दी दसवीं की मार्कशीट
- 70 फीसदी अंक हासिल करने का बाद भी रुकी पढ़ाई
- पिता की बीमारी की वजह से नहीं दे पाई फीस
- स्कूल ने दो साल से नहीं दी दसवीं की मार्कशीट
डिजिटल डेस्क, मुंबई। ईशा कनोजिया डॉक्टर बनना चाहती है लेकिन कांजुरमार्ग स्थित डॉ दत्ता सामंत माध्यमिक विद्यालय प्रबंधन की मनमानी के चलते उसका सपना चकनाचूर होते दिख रहा है। दरअसल ऑटोरिक्शा चलाकर गुजर बसर करने वाले उनके पिता कोरोना संक्रमण के दौरान बीमारी के चलते उसकी फीस नहीं भर पाए और 35 हजार रुपए बकाया रह गए। ईशा ने साल 2021 में बिना ट्यूशन के 70 फीसदी अंकों से दसवीं की परीक्षा पास की और उसे उम्मीद थी कि उसे आगे साइंस में दाखिला मिल जाएगा लेकिन उनकी उम्मीदें उस वक्त टूट गईं जब स्कूल ने फीस भरे बिना मार्कशीट और लीविंग सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया। ईशा ने बताया कि पिता कई बीमारियों से जूझ रहे हैं और उनके पास पैसे नहीं हैं इसलिए मैं खुद नौकरी खोज रही हूं जिससे स्कूल की फीस चुका सकूं लेकिन सर्टिफिकेट न होने के चलते मुझे भी कोई नौकरी देने को तैयार नहीं है। ईशा को यह भी पता नहीं था कि वह मदद के लिए किससे गुहार लगाए। इसी बीच सामाजिक कार्यकर्ता स्वप्निल करगुटकर को मामले की जानकारी मिली तो उन्होंने ईशा को न्याय दिलाने की कोशिश शुरू की। साथ ही महाराष्ट्र राज्य विद्यार्थी पालक शिक्षक महासंघ के नितीन दलवी ने भी स्कूल के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। मामले की शिकायत बाल अधिकार आयोग और शिक्षा उपसंचालक से की गई है। दलवी ने कहा कि छात्रा के दो बहुमूल्य साल खराब हुए हैं साथ ही उसने जो मानसिक परेशानी झेली है उसके लिए स्कूल प्रबंधन जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि अगस्त 2021 में जारी शासनादेश में निर्देश दिए गए थे कि फीस न भरने और दूसरी वजहों से विद्यार्थियों की मार्कशीट न रोकी जाए लेकिन निजी स्कूल अब भी मनमानी करते हैं।
सिर्फ एक बार आई थी छात्रा
विद्यालय के मुख्याध्यापक शरद पाटील ने दावा किया कि छात्रा दसवी के नतीजों के बाद सिर्फ एक बार मार्कशीट लेने आई थी। उस दौरान उसे फीस भरने को कहा गया था और उसके पिता ने बकाया फीस लिखकर देने की बात कही थी। पाटील के मुताबिक छात्रा की पांच वर्ष की फीस बकाया है उन्होंने कहा कि हमारी वार्षिक फीस सात हजार रुपए है और सरकार से कोई अनुदान नहीं मिलता। ऐसे में अगर विद्यार्थी फीस न भरें तो स्कूल चलाना मुश्किल हो जाएगा। पाटील ने कहा कि छात्रा अगर स्कूल में आएगी तो उसे मार्कशीट और लीविंग सर्टिफिकेट दे दिया जाएगा।
छात्रा को स्कूल आने से रोका
कोरोना संक्रमण के बाद कमाई बंद होने के चलते अंधेरी में रहने वाले दीपक सोलंकी अपनी बेटी की फीस नहीं चुका पा रहे हैं इसके चलते स्कूल ने उनकी बेटी को स्कूल आने से रोक दिया है। सोलंकी ने बताया कि उनकी बेटी त्रिधा स्कूल में छठीं कक्षा में पढ़ती है। आर्थिक स्थित ठीक न होने के चलते वे स्कूल की दो लाख रुपए बकाया फीस नहीं चुका पाए इसलिए पहले उनकी बेटी को परेशान किया गया और फिर स्कूल आने से रोक दिया। सोलंकी के मुताबिक उन्होंने स्कूल से किश्तों में फीस लेने का आग्रह किया लेकिन स्कूल पूरी फीस लेने पर अड़ा हुआ है।
Created On :   17 July 2023 2:15 AM IST