बॉम्बे हाई कोर्ट: एल्गार परिषद मामले में दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू को मिली जमानत

एल्गार परिषद मामले में दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू को मिली जमानत
  • निचली अदालत में बिना ट्रायल के पांच साल से अधिक समय से जेल में रहने का दिया हवाला
  • हनी बाबू की 28 जुलाई 2020 को हुई थी गिरफ्तारी
  • अदालत ने एनआईए की सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए हनी बाबू की जमानत के आदेश पर रोक लगाने की मांग को किया खारिज

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट से एल्गार परिषद के मामले में दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू जमानत मिल गयी। अदालत ने इसके लिए बिना ट्रायल के पांच साल से अधिक समय से जेल में रहने का हवाला दिया। उन्हें 28 जुलाई 2020 को गिरफ्तारी किया गया था। उसके बाद से ही वह जेल में थे। अदालत ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए हनी बाबू की जमानत के आदेश पर रोक लगाने की मांग को खारिज कर दिया।

न्यायमूर्ति अजय एस गाडकरी और न्यायमूर्ति रंजीतसिंह आर भोंसले की पीठ ने हनी बाबू की याचिका पर 3 अक्टूबर को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था। पीठ ने गुरुवार को अपना फैसला सुनाया गया। हनी बाबू को 1 लाख रुपए के पर्सनल बॉन्ड और उतनी ही राशि की ज़मानत पर रिहा करने का निर्देश दिया गया है। पीठ ने एनआईए की सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए जमानत के आदेश पर रोक लगाने की मांग को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह पांच साल से अधिक समय से जेल में हैं।

इस साल 2 मई को एनआईए की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह और एडवोकेट चिंतन शाह ने शुरू में बाबू की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि एनआईए एक्ट के तहत नामित स्पेशल कोर्ट के फरवरी 2022 के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी अपील, जो दो साल से ज़्यादा की देरी के बाद 2024 में दायर की गई थी। यह जमानत याचिका सुनवाई के योग्य नहीं है।

सिंह ने दलील दी कि ट्रायल कोर्ट के आदेश को बाबू ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी और एक कोऑर्डिनेट पीठ ने सितंबर 2022 में इसे खारिज कर दिया था। पिछले साल मई में, सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी अपील खारिज कर दी थी, क्योंकि उन्होंने इसे आगे नहीं बढ़ाया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश में दखल नहीं दिया था। इसलिए उन्हें ट्रायल कोर्ट में एक नया आवेदन दायर करना चाहिए था।

बाबू का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील युग मोहित चौधरी ने तब दलील दिया था कि उनके मुवक्किल फरवरी 2022 के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली अपनी प्रार्थना को हटा देंगे और हाई कोर्ट उनकी याचिका पर ट्रायल में देरी के आधार पर एक नियमित जमानत याचिका के रूप में विचार कर सकता है। हाई कोर्ट द्वारा सितंबर 2022 में जमानत याचिका खारिज करने के आदेश के बाद, आठ सह-आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट ने जमानत पर रिहा कर दिया था। इसलिए बाबू भी बिना ट्रायल के लंबे समय तक जेल में रहने के आधार पर जमानत मांगने का हकदार है। पीठ ने हनी बाबू के वकील की दलील को दलील को स्वीकार करते हुए उन्हें जमानत दे दी।

बाबू इस समय तलोजा सेंट्रल जेल में बंद है। उन्होंने बिना किसी ट्रायल के पांच साल से ज़्यादा समय जेल में बिताया है। उन्हें 28 जुलाई, 2020 को गिरफ्तार किया गया था। पुणे पुलिस ने 2018 में इस मामले में 16 लोगों को गिरफ्तार किया था और जनवरी 2020 में एनआईए द्वारा जांच अपने हाथ में लेने के बाद सात और लोगों को गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तार किए गए लोगों में वकील, एक्टिविस्ट और शिक्षाविद शामिल थे, जिन पर प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) के सदस्य होने और माओवादियों के मकसद को आगे बढ़ाने का आरोप था। 16 आरोपियों में से झारखंड में रहने वाले 84 साल के पादरी और आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी का जुलाई 2021 में हिरासत में निधन हो गया।

वरवर राव, सुधा भारद्वाज, आनंद तेलतुंबडे, वर्नोन गोंसाल्वेस, अरुण फरेरा, शोमा सेन, गौतम नवलखा, सुधीर धवले और रोना विल्सन समेत दस आरोपियों को जमानत मिल गई और उन्हें रिहा कर दिया गया।

पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने ज्योति जगताप को अंतरिम जमानत दी। आरोपी महेश राउत को भी सुप्रीम कोर्ट ने छह हफ्ते की मेडिकल जमानत पर रिहा किया था, जिसे बाद में बढ़ा दिया गया। वकील सुरेंद्र गाडलिंग और सांस्कृतिक कलाकार और कार्यकर्ता सागर गोरखे और रमेश गाइचोर को अभी तक रेगुलर जमानत नहीं मिली है।

Created On :   4 Dec 2025 8:45 PM IST

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