बॉम्बे हाई कोर्ट: 35 साल पहले अधिग्रहित जमीन का मुआवजा देने का निर्देश, भरण-पोषण भुगतान नहीं करने वाले पति को फटकार

35 साल पहले अधिग्रहित जमीन का मुआवजा देने का निर्देश, भरण-पोषण भुगतान नहीं करने वाले पति को फटकार
  • दूधगंगा सिंचाई परियोजना के लिए कुछ परिवारों की अधिग्रहित का मुआवजा देने का दिया निर्देश
  • बॉम्बे हाई कोर्ट से ठाणे के मेसर्स जुपिटर लाइफ लाइन हॉस्पिटल को मिली बड़ी राहत
  • कोलाबा में यात्री जेटी और टर्मिनल सुविधाओं के निर्माण को मंजूरी और एनओसी जारी करने को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने घरेलू हिंसा की शिकार पत्नी और बेटी को प्रति माह भरण-पोषण का भुगतान नहीं करने वाले पति को लगाई फटकार

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने कोल्हापुर में 1990 दूधगंगा सिंचाई परियोजना के लिए किसानों की अधिग्रहित के लिए मुआवजा को लेकर एक अहम फैसले में कहा कि सभ्य समाज में कानून के इस्तेमाल में भेदभाव की कोई जगह नहीं है। किसी नागरिक को सिर्फ इसलिए उसके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उसने समय पर अदालत या अधिकारियों से संपर्क नहीं किया। न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी और न्यायमूर्ति सोमशेखर सुंदरसन की पीठ ने राज्य सरकार को कोल्हापुर के उन परिवारों को उचित मुआवजा राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिनकी जमीन सितंबर 1990 में दूधगंगा सिंचाई परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई थी। पीठ ने कहा कि कानून के शासन द्वारा शासित समाज में समान स्थिति वाले व्यक्तियों के लिए कानून लागू करने में कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है। इस स्थिति में सीमित साधनों वाले व्यक्ति साक्षर नहीं हैं या जो अपने वैध कानूनी और संवैधानिक अधिकारों से अच्छी तरह वाकिफ नहीं हैं या इस आधार पर कि वे ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। कानून लागू करने में अलग-अलग मानक, मानदंड और तरीके नहीं हो सकते हैं। समान लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि इस तरह के प्रस्ताव को स्वीकार किया जाता है और खासकर हमारे जैसे देश में जहां ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले हमारे भाई-बहन नागरिकों के संबंध में न तो कानूनी साक्षरता है और न ही न्यायालय में जाने का कोई साधन है। पीठ कुछ परिवारों द्वारा दायर याचिकाओं पर विचार कर रही थी, जिनकी भूमि दूधगंगा सिंचाई परियोजना के लिए सामूहिक भूमि अधिग्रहण का हिस्सा थी। याचिकाकर्ता परिवारों ने सितंबर 1990 में स्वेच्छा से अपनी जमीनें सौंप दी थीं और यह एक समझौते के तहत किया गया था, फिर भी भूमि अधिग्रहण पुरस्कार प्रकाशित नहीं किया गया था। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ग्रामीण क्षेत्र से हैं और निश्चित रूप से अपने कानूनी अधिकारों से अच्छी तरह वाकिफ नहीं थे। उसकी जमीन केवल कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करके और मुआवजे का भुगतान करके ही छीनी जा सकती थी या उसका स्वामित्व छीना जा सकता था। ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने राज्य के अधिकारियों की ताकत के आगे घुटने टेक दिए और बिना किसी पुरस्कार के अपनी जमीन का कब्जा सौंप दिया, किसी भी पुरस्कार के तहत एक पैसा तो दूर की बात है। याचिकाकर्ताओं ने 2021 में बाजार मूल्यांकन के अनुसार मुआवजे की मांग करते हुए अधिकारियों से संपर्क किया। हालांकि मुआवजे की मांग में 32 साल से अधिक की अस्पष्ट देरी के आधार पर उनकी याचिका खारिज कर दी गई। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे अपने कानूनी अधिकारों से अनभिज्ञ थे और इसलिए उन्होंने इतनी देरी के बाद अधिकारियों और अदालतों में याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं की दलील को स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा कि हम यह देख सकते हैं कि इस दुखद वास्तविकता को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि ऐसी स्थिति में हर व्यक्ति इतना भाग्यशाली नहीं हो सकता है कि उसे पहले तो कानूनी अधिकारों के बारे में जानकारी मिले और फिर कानूनी सलाह मिले और उसके बाद अदालत का दरवाजा खटखटाया जाए।

बॉम्बे हाई कोर्ट से ठाणे के मेसर्स जुपिटर लाइफ लाइन हॉस्पिटल को मिली बड़ी राहत

उधर बॉम्बे हाई कोर्ट से ठाणे के मेसर्स जुपिटर लाइफ लाइन हॉस्पिटल को बड़ी राहत मिली है। अदालत ने पूर्व नगरसेवक राजकुमार रामनयन यादव की अस्पताल के लिए भूमि के आवंटन, भवन के निर्माण और अस्पताल चलाने को ठाणे महानगरपालिका (टीएमसी) की दी गई अनुमति, मंजूरी, लाइसेंस और प्रमाण पत्र को रद्द करने के अनुरोध की दायर जनहित याचिका खारिज दी। इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता के आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी छिपाने पर तल्ख टिप्पणी की। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति एम.एस. कार्णिक की पीठ ने कहा कि टीएमसी ने राज्य सरकार द्वारा भूमि को मेसर्स जुपिटर लाइफ लाइन हॉस्पिटल लिमिटेड को आवंटित नहीं किया है। मेसर्स जुपिटर लाइफ लाइन हॉस्पिटल लिमिटेड ने वोल्टास लिमिटेड से खुले बाजार से भूमि खरीदी है। टीएमसी आयुक्त ने अपने विवेक के अनुसार 2 दिसंबर 2006 के आदेश द्वारा 100 फीसदी अतिरिक्त एफएसआई प्रदान की है और अस्पताल की संशोधित योजना को मंजूरी दी है। जनहित याचिका में 2 दिसंबर 2006 के आदेश को कोई चुनौती नहीं दी गई है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि टीएमसी आयुक्त द्वारा दिए गए आदेश के दस वर्ष बाद जनहित याचिका दायर की गई। ऐसे में याचिकाकर्ता के जनहित याचिका दायर करने के पीछे जनता के हित को लेकर स्थिति संदिग्ध है। पीठ ने यह कहा कि जनहित याचिका दायर करते समय याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट के जनहित याचिका नियम 2010 के नियम 5 और 7 के प्रावधानों का पालन करना आवश्यक है। याचिकाकर्ता ने अपने आपराधिक मामलों का खुलासा नहीं किया है। उसके खिलाफ वागले ठाणे के एस्टेट और श्रीनगर पुलिस स्टेशन में कई एफआईआर दर्ज है। याचिकाकर्ता को अपनी जनहित याचिका में इसका खुलासा करना चाहिए था। हमें जनहित याचिका में कोई योग्यता नहीं मिली। इसलिए इसे खारिज की जाती है। जनहित याचिका में मेसर्स जुपिटर लाइफ लाइन हॉस्पिटल लिमिटेड द्वारा टीएमसी से योजना को मंजूरी लेने और दोहरी एफएसआई का उपभोग करने, फॉर्च्यून पार्क लेकसिटी और शैली के तहत होटल व्यवसाय के संचालन के लिए लाइसेंस और अनुमति प्राप्त करने में धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए उसे रद्द करने का अनुरोध किया गया था।

कोलाबा में यात्री जेटी और टर्मिनल सुविधाओं के निर्माण को मंजूरी और एनओसी जारी करने को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती

वहीं कोलाबा में यात्री जेटी और टर्मिनल सुविधाओं के निर्माण को मंजूरी और एनओसी जारी करने को लेकर क्लियर एंड हेरिटेज कोलाबा रेजिडेंट्स एसोसिएशन द्वारा बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। अदालत ने इसको लेकर राज्य सरकार और बीएमसी से जवाब मांगा है। साथ ही अदालत ने 12 जून को सुनवाई से पहले कोलाबा के पी.जे.रामचंदानी मार्ग पर फुटपाथ के समुद्र की ओर बनी हेरिटेज दीवार नहीं गिराने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति एम.एस.कार्णिक की पीठ के समक्ष क्लियर एंड हेरिटेज कोलाबा रेजिडेंट्स एसोसिएशन की ओर से वकील प्रेरक चौधरी की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई को दौरान याचिकाकर्ता के वकील एस्पी चिनॉय ने महाराष्ट्र तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (एमएमआरडीए) के 2 मार्च 2023 के आदेश और हेरिटेज संरक्षण समिति द्वारा 7 फरवरी 2025 के एनओसी जारी करने की वैधता पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि यात्री जेटी और टर्मिनल सुविधाओं के निर्माण को मंजूरी और एनओसी उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना जारी की गई है। यह अपने आप में अवैध है। पीठ ने राज्य की ओर से पेश महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ को जवाब दाखिल करने के लिए बुलाया। उन्होंने पीठ को आश्वासन दिया कि जब तक न्यायालय मामले की अगली सुनवाई नहीं हो जाती, तब हेरिटेज दीवार को नहीं गिराया जाएगा। पीठ ने 12 जून को मामले की अगली सुनवाई से पहले राज्य सरकार को अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया है।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने घरेलू हिंसा की शिकार पत्नी और बेटी को प्रति माह भरण-पोषण का भुगतान नहीं करने वाले पति को लगाई फटकार

बॉम्बे हाई कोर्ट ने घरेलू हिंसा की शिकार पत्नी और बेटी को प्रति माह भरण-पोषण का भुगतान नहीं करने वाले पति को फटकार लगाई। अदालत ने पति को हलफनामा दाखिल कर पत्नी और बेटी को अब तक दिए गए गुजारा भत्ता की राशि की पूरी जानकारी देने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति जी.एस. कुलकर्णी और न्यायमूर्ति अद्वैत सेथना की पीठ के समक्ष मंजरी मुकेश चावरे की ओर से वकील कंचन फाटक की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि पारिवारिक न्यायालय द्वारा 22 जुलाई 2021 को अपने आदेश में पति को याचिकाकर्ता पत्नी को 22500 रुपए और बेटी के लिए 22500 रुपए प्रति माह भरण-पोषण के लिए देने का निर्देश दिया था। पारिवारिक न्यायालय ने आदेश पर पूरी तरह से अमल नहीं किया गया। घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत भी बकाया है, जिसके तहत भरण-पोषण का निर्देश देने वाले अलग-अलग आदेश हैं। उसे पूरा करने की कार्यवाही लंबित है। जबकि पति की ओर से पेश हितेश व्यास ने पीठ से कहा कि कोई राशि बकाया नहीं है। इस पर पीठ ने कहा कि हम पति को निर्देश देते हैं कि वह उन राशियों के बारे में हलफनामा पेश करें, जिनका वह भुगतान करने की बात बता रहे हैं। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 8 मई को रखी है।

Created On :   4 May 2025 9:17 PM IST

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