बॉम्बे हाई कोर्ट: ट्रायल कोर्ट में दो तारीखों पर गैरहाजिर रहने पर जमानत हो सकती रद्द, कानूनी वारिस को लेकर अहम फैसला, अश्लील कमेंट मामले में राहत

ट्रायल कोर्ट में दो तारीखों पर गैरहाजिर रहने पर जमानत हो सकती रद्द, कानूनी वारिस को लेकर अहम फैसला, अश्लील कमेंट मामले में राहत
  • ट्रायल कोर्ट में दो तारीखों पर गैरहाजिर रहने पर आरोपियों की जमानत रद्द हो सकती है
  • सिविल न्यायालय के पास मृतक के कानूनी वारिस पर फैसला करने का अधिकार है..बॉम्बे हाई कोर्ट
  • बॉम्बे हाई कोर्ट से महिला पर अश्लील कमेंट के मामले में व्यक्ति को मिली राहत

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक आरोपी की जमानत पर सुनवाई के दौरान कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर आप मामले की लगातार दो सुनवाई में पेश नहीं होते हैं, तो आप की जमानत रद्द हो सकती है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखकर दी गई जमानत का किसी को भी फायदा नहीं उठाना चाहिए।न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की एकल पीठ के समक्ष विनोद वाघेला की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि इस मामले में अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई है। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि मामला कब खत्म होगा। इस मामले में मुख्य आरोपी को पहले ही जमानत मिल चुकी है। सह-आरोपी विनोद वाघेला को दो साल से अधिक समय से जेल में है। पीठ ने याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि आरोपी को जेल में रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। उसे 25 हजार रुपए के निजी मुचलके पर सशर्त जमानत मंजूर की जाती है। पीठ ने कहा कि यदि आरोपी लगातार दो सुनवाई पर ट्रायल कोर्ट में उपस्थित नहीं होता है, तो उसकी जमानत रद्द की जा सकती है। पुलिस ने सरकारी नौकरियों का झांसा देकर लोगों के साथ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया था। आरोपियों ने सरकारी नौकरी दिलाने के नाम पर एक शिकायतकर्ता से आठ लाख रुपए लियए थे। विनोद पर सरकारी नौकरी का फर्जी नियुक्ति पत्र और अन्य दस्तावेज तैयार कर शिकायतकर्ता को देने का आरोप है। इस मामले में विनोद वाघेला को पुलिस ने अगस्त 2022 में गिरफ्तार किया था।

सिविल न्यायालय के पास मृतक के कानूनी वारिस पर फैसला करने का अधिकार है..बॉम्बे हाई कोर्ट

उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक मृतक के कानूनी वारिस को लेकर अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने माना कि उत्तराधिकार अधिनियम या बॉम्बे विनियमन के प्रावधानों के तहत सिविल न्यायालय के अनन्य अधिकार क्षेत्र पर कोई स्पष्ट प्रतिबंध नहीं है। अदालत ने ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की पीठ ने कहा कि स्वामित्व की घोषणा के बारे में प्रार्थना सिविल न्यायालय के अनन्य अधिकार क्षेत्र में आएगी, क्योंकि संपत्ति पर स्वामित्व के मुद्दे को उत्तराधिकार अधिनियम या बॉम्बे विनियमन के प्रावधानों के तहत तय नहीं किया जा सकता है। सिविल न्यायालय के पास वर्तमान मामले में मुकदमे का फैसला करने का अधिकार है। उत्तराधिकार अधिनियम या बॉम्बे विनियमन के प्रावधानों के तहत सिविल न्यायालय के अनन्य अधिकार क्षेत्र पर कोई स्पष्ट प्रतिबंध नहीं है। पीठ ने कहा कि इसलिए अपीलीय न्यायालय का यह मानना सही है कि सिविल न्यायालय के अधिकार क्षेत्र पर किसी प्रतिबंध के अभाव में शिकायत को सीपीसी के आदेश 7 नियम 11(ए) या (डी) के तहत अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। वादपत्र घोषणा के लिए प्रार्थनाओं के लिए कार्रवाई का कारण प्रकट करता है। इस प्रकार वाद पत्र को दहलीज पर खारिज नहीं किया जा सकता। वाद पत्र ही वह दस्तावेज है, जो सिविल कोर्ट में मुकदमे की शुरुआत करता है। ट्रायल कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सिविल कोर्ट के पास वसीयतनामा न्यायालय द्वारा दिए गए उत्तराधिकार प्रमाण पत्र को रद्द करने का अधिकार नहीं होगा। दोनों पक्षों द्वारा दो अलग-अलग उत्तराधिकार प्रमाणपत्रों पर भरोसा किया गया था, इसलिए पनवेल के मृतक चंगा उर्फ चंगू पाडा भोईर के कानूनी वारिसों के संबंध में वसीयतनामा न्यायालय द्वारा किसी ठोस निर्णय के अभाव में सिविल न्यायालय में कोई राहत नहीं दी जा सकती। इसलिए आदेश 7 नियम के तहत अपीलकर्ताओं का आवेदन सी.पी.सी.की धारा 11 को स्वीकार किया गया और वाद-पत्र को अस्वीकार कर दिया गया था। वसीयतनामा न्यायालय (प्रोबेट कोर्ट) एक विशेष न्यायालय है, जो किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके संपत्ति और उत्तराधिकार की प्रक्रिया को संभालता है। प्रतिवादियों ने वाद-पत्र की अस्वीकृति को चुनौती देते हुए अपील दायर की। अपीलीय अदालत ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को उलट दिया और अस्वीकृति के आदेश को अलग रखते हुए मुकदमे को उसकी मूल स्थिति में बहाल कर दिया। अपीलकर्ताओं ने उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्रदान करने के लिए बॉम्बे विनियमन 8 के तहत एक याचिका दायर किया था।

बॉम्बे हाई कोर्ट से महिला पर अश्लील कमेंट के मामले में व्यक्ति को मिली राहत

वहीं बॉम्बे हाई कोर्ट से महिला पर अश्लील कमेंट के मामले में व्यक्ति को राहत मिली है। अदालत ने उसके खिलाफ ट्रायल कोर्ट में चल रही कार्यवाही पर रोक लगा दी है। याचिका में महिला द्वारा व्यक्ति के खिलाफ कथित झूठी एफआईआर दर्ज करने का अनुरोध किया गया है। 27 जुलाई को मामले की अगली सुनवाई रखी गई है। न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल और न्यायमूर्ति एस.एम.मोडक की पीठ के समक्ष मनोज दुबे की ओर से गणेश गुप्ता की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील गणेश गुप्ता ने दलील दी कि याचिकाकर्ता को परेशान करने के लिए उसके खिलाफ अश्लील कमेंट करने की झूठी एफआईआर दर्ज कराई गई। इसके पहले याचिकाकर्ता ने महिला और अन्य के खिलाफ 2 फरवरी 2023 और 12 जून 2023 को शिकायतों दी थी, जिसमें उसने कहा था कि उसके खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज किए जाने की आशंका जताई थी।महिला ने घटना के लगभग एक महीने बाद घाटकोपर पुलिस स्टेशन में ‘जीरो’ शिकायत दर्ज कराई थी, जिसे विक्रोली पुलिस स्टेशन में जांच के लिए भेज दिया गया था। याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करनी चाहिए और उसके खिलाफ ट्रायल कोर्ट में चल रहे मुकदमे पर रोक दी जानी चाहिए। पीठ ने याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत देते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही नहीं करेगा। 27 जुलाई को मामले की अगली सुनवाई रखी गई है।

Created On :   26 May 2025 9:08 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story