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Mumbai News: पुनर्विकास के लिए परिसर खाली करने से इनकार करने पर बिल्डर कब्जे के लिए मध्यस्थता का सहारा ले सकता है

- अदालत ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 की धारा 9 के तहत परिसर खाली करने के लिए कदम उठाने की बिल्डर को दी अनुमति
- बिल्डर उसे कब्जे के लिए मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) का सहारा ले सकता है
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि यदि सोसाइटी के सदस्य पुनर्विकास के लिए घर खाली करने से इनकार करते हैं, तो बिल्डर उसे कब्जे के लिए मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) का सहारा ले सकता है। अदालत ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 की धारा 9 के तहत एक परिसर खाली करने के लिए कदम उठाने की बिल्डर को अनुमति दी।
मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की पीठ के समक्ष प्रणव कंस्ट्रक्शन लिमिटेड की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता ने याचिका में एकल न्यायाधीश के 20 जून 2025 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें सांताक्रूज के प्रियदर्शिनी को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड के सदस्यों के खिलाफ अंतरिम राहत के लिए बिल्डर की याचिका खारिज कर दी गई थी। बिल्डर ने मध्यस्थता अधिनियम की धारा 9 के तहत अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें सोसाइटी की इमारत के तोड़ने और पुनर्विकास के लिए सोसायटी के सदस्यों को परिसर खाली करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। एकल न्यायाधीश ने बिल्डर को राहत दिए बिना याचिका का निपटारा कर दिया था।
पीठ ने निचली अदालत के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि सोसायटी और उसके सदस्य विकास समझौते की शर्तों से बंधे हैं। सोसायटी के सदस्यों द्वारा परिसर खाली न करना बिल्डर द्वारा सोसायटी के खिलाफ मध्यस्थता का आह्वान करने का एक ट्रिगर बिंदु बन सकता है। पीठ ने सोसायटी के सदस्यों को 12 मार्च 2025 के विकास समझौते के अनुसार चार हफ्तों के भीतर सहमति पत्र जमा करने और अपने परिसर खाली करने का निर्देश दिया। ऐसा न करने पर पीठ ने बिल्डर को जरूरत पड़ने पर पुलिस सहायता के साथ कब्जा लेने के लिए कोर्ट रिसीवर से संपर्क करने की अनुमति दी।
बिल्डर की ओर से पेश वरिष्ठ वकील वेंकटेश धोंड ने दलील दी कि व्यावसायिक और गैरेज इकाई मालिकों सहित सभी सदस्य विकास समझौते से बंधे हैं। बिल्डर ने सभी को स्थायी वैकल्पिक आवास की पेशकश की है और सटीक क्षेत्र आवंटन पर पुनर्विकास प्रक्रिया को बाधित नहीं करना चाहिए। सोसाइटी के वकील मयूर खांडेपारकर ने बिल्डर की दलीलों का समर्थन किया।
हालांकि सोसायटी के सदस्यों के वकील राजीव नरूला ने भेदभाव का आरोप लगाते हुए बिल्डर की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि व्यावसायिक सदस्यों को केवल 19 फीसदी अधिक स्थान आवंटित किया जा रहा है, जबकि आवासीय मालिकों को 39 फीसदी अधिक स्थान आवंटित किया जा रहा है। विरोध के बावजूद अदालत ने समझौते की शर्तों के तहत मध्यस्थता शुरू करने और कब्जा लेने के बिल्डर के अधिकार को बरकरार रखा है।
Created On :   20 July 2025 10:00 PM IST