बॉम्बे हाई कोर्ट: माओवादी संबंध मामले में गाइचोर अस्थायी जमानत पर रिहा, भूमि अधिग्रहण के साथ आम के पेड़ों का मुआवजा भी दें, मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र जीआर के खिलाफ याचिकाएं दायर

माओवादी संबंध मामले में गाइचोर अस्थायी जमानत पर रिहा, भूमि अधिग्रहण के साथ आम के पेड़ों का मुआवजा भी दें, मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र जीआर के खिलाफ याचिकाएं दायर
  • एल्गार परिषद का मामले में माओवादी संबंध मामले में आरोपी रमेश गाइचोर अस्थायी जमानत पर रिहा
  • किसान की भूमि अधिग्रहण के मुआवजे के साथ आम के पेड़ों का मुआवजा भी देने का दिया निर्देश
  • मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र देने के जीआर के खिलाफ याचिकाएं दायर

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट की नाराजगी के बाद माओवादी संबंध मामले में आरोपी रमेश गाइचोर को नवी मुंबई के तलोजा जेल से अस्थायी जमानत पर रिहा कर दिया गया। तलोजा जेल अधिकारियों ने अदालत से गाइचोर की रिहायी में देरी के लिए माफी मांगते हुए उनको रिहा किए जाने की जानकारी दी। न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति रंजित सिंह राजा भोंसले की पीठ के समक्ष रमेश गाइचोर याचिका पर सुनवाई हुई। इस दैरान याचिकाकर्ता के वकील मिहिर देसाई ने दावा किया कि हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद आरोपी को रिहा नहीं किया गया, क्योंकि जेल अधिकारी निचली अदालत से रिहाई वारंट जारी करने पर अड़े रहे। पीठ ने 26 अगस्त को गाइचोर को बीमार पिता से मिलने के लिए तीन दिन की अस्थायी जमानत दी थी। इस पर पीठ ने जेल अधिकारियों के व्यवहार पर नाराजगी जताते हुए कहा कि अधिकारी केवल आरोपी को परेशान कर रहे हैं। गुरुवार को जेल अधीक्षक ने बिना शर्त माफी मांगते हुए हलफनामा दाखिल किया, जिसमें कहा कि गाइचोर को बुधवार रात जेल से रिहा कर दिया गया। गाइचोर को 13 सितंबर तक अस्थायी जमानत दी गई है। गाइचोर और कई अन्य कार्यकर्ताओं को भाकपा (माओवादी) समूह का कथित सदस्य होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। आरोप है कि कथित तौर पर एल्गार परिषद में भाषणों से शहर के बाहरी इलाके में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़का दी थी।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने किसान के भूमि अधिग्रहण के मुआवजे के साथ आम के पेड़ आम के पेड़ों का मुआवजा भी देने का दिया निर्देश

उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक किसान के भूमि अधिग्रहण के मुआवजे के साथ 374 हापुस आम के पेड़ों का मुआवजा भी देने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार की याचिका खारिज करते हुए किसान की शर्तों को स्वीकार की जाती है। किसान भूमि के लिए दिए गए मुआवजे की अपर्याप्त राशि और भूमि पर खड़े आम के पेड़ों के लिए अलग से मुआवजे का भुगतान नहीं किए जाने से व्यथित था। उसने अपनी याचिका में भूमि के लिए 60 रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से मुआवजे का भी अनुरोध किया था। न्यायमूर्ति शर्मिला देशमुख की पीठ ने किसान लक्ष्मण नाथू म्हात्रे की याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी को मुआवजे और वैधानिक लाभों की गणना करने का निर्देश दिया जाता है। यह न्यायालय इस निर्णय के समयबद्ध तरीके से निष्पादन सुनिश्चित करने के लिए समय-सीमा निर्धारित कर सकता है। यह देखते हुए कि भूमि के अधिग्रहण वर्ष 1986 का है। इसलिए विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी को आदेश के अनुसार मुआवजे की गणना आधिकारिक वेबसाइट पर 12 सप्ताह के भीतर करने का निर्देश दिया जाता है। किसान को उसके बाद तीन महीने की अवधि के भीतर गणना की गई राशि का भुगतान करने को कहा है। किसान की ओर से पेश वकील श्रीराम कुलकर्णी ने दलील दी कि अधिग्रहित भूमि फलदार वृक्षों से आच्छादित थी और फलदार वृक्षों के लिए अलग से मुआवजा प्रदान किया जाना आवश्यक है। प्रत्येक आम की कीमत 5 रुपए प्रति पेड़ के हिसाब से तय की गई है। 374 हापुस आम के पेड़ हैं, जो प्रति वर्ष 1000 फल देते हैं। इसके मुताबिक प्रति वर्ष मुआवजा 1 करोड़ 87 लाख रुपए होगा। भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 की धारा 4 के अंतर्गत किसान की भूमि के अधिग्रहण की अधिसूचना 3 फरवरी 1970 को ट्रांस हार्बर पनवेल और ट्रांस ठाणे क्रीक क्षेत्र में औद्योगिक वाणिज्यिक और आवासीय उद्देश्य के लिए भूमि के नियोजित विकास और उपयोग के उद्देश्य से जारी की गई थी। धारा 6 की अधिसूचना 25 सितंबर 1972 को प्रकाशित हुई और धारा 11 के तहत 27 जून 1986 को निर्णय पारित किया गया। किसान दिए गए मुआवजे से व्यथित होकर एल.ए. अधिनियम 1894 की धारा 18 के तहत अलीबाग के संयुक्त सिविल न्यायाधीश के समक्ष मुआवजे के लिए दावा किया। न्यायालय ने भूमि के संबंध में 16 रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से मुआवजा प्रदान किया। जहां तक वृक्षों के मूल्यांकन का संबंध है। न्यायालय ने वृक्षों के लिए मुआवजा 11 लाख 12 हजार 190 रुपए निर्धारित किया। किसान न्यायालय द्वारा दिए गए मुआवजे में वृद्धि का अनुरोध किया। जबकि राज्य सरकार ने भी न्यायालय द्वारा मुआवजे में की गई वृद्धि से व्यथित हो कर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र देने के राज्य सरकार के शासनादेश (जीआर) के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर

वहीं बॉम्बे हाई कोर्ट में मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र देने के राज्य सरकारी शासनादेश (जीआर) के खिलाफ याचिकाएं दायर की गई है। याचिकाओं में शिक्षा और सार्वजनिक सेवाओं में आरक्षण का लाभ उठाने के लिए मराठा समुदाय को कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी करने के सरकार के फैसले का विरोध किया गया है। मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड की पीठ के समक्ष ओबीसी वेलफेयर फाउंडेशन के अध्यक्ष मनोज सासाने और शिवा अखिल भारतीय वीरशैव युवक संगठन की दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर सकती है। याचिकाओं में दावा किया गया है कि सरकार का फैसला मनमाना, असंवैधानिक और कानून की दृष्टि से गलत है और इसे रद्द किया जाना चाहिए। मनोज सासाने ने बुधवार को पीठ से अपनी याचिका में संशोधन की अनुमति मांगी, जिससे सरकार के जीआर को भी चुनौती दी जा सके। पीठ ने उनसे इस तरह के संशोधन के लिए एक आवेदन दायर करने को कहा। सासाने ने अपनी याचिका में 2004 से जारी विभिन्न सरकारी फैसलों को चुनौती दी थी, जिनमें मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र देने अनुमति का भी विरोध किया गया था। पिछले हफ्ते वकील विनीत विनोद धोत्रे ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की, जिसमें दावा किया गया कि सरकार के जीआर में मनमाने ढंग से मराठों को ओबीसी का दर्जा दिया है, जो राजनीतिक रूप से प्रभावशाली और सामाजिक रूप से उन्नत समुदाय हैं। जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि सरकार का यह फैसला वास्तविक ओबीसी समुदायों के आरक्षण के हिस्से को कम करके उनके साथ भेदभाव करता है। शिवा अखिल भारतीय वीरशैव युवक संगठन द्वारा दायर याचिका में भी राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की कई रिपोर्ट का हवाला देते हुए सरकारी आदेश को चुनौती दी गई है। मराठा समुदाय के पात्र व्यक्तियों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी करने का सरकार का फैसला आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे द्वारा 29 अगस्त से दक्षिण मुंबई के आजाद मैदान में पांच दिनों की अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल के बाद आया है। जरांगे और उनके समर्थकों ने पांच दिनों तक दक्षिण मुंबई के कई महत्वपूर्ण इलाकों को घेर रखा था। हाई कोर्ट ने इस पर नाराजगी जतायी। 2 सितंबर को सरकार ने हैदराबाद गजेटियर (हैदराबाद राजपत्र) पर एक शासनादेश जारी किया और एक समिति के गठन की घोषणा की, जो उन मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी करने में सुविधा प्रदान करेगी, जो अतीत में खुद को कुनबी के रूप में मान्यता देने वाले दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत करने में सक्षम हैं। राज्य के सामाजिक न्याय एवं विशेष सहायता विभाग द्वारा हैदराबाद राजपत्र को लागू करने के लिए जीआर जारी करने के बाद ओबीसी में बेचैनी है, जिससे मराठा समुदाय के पात्र सदस्य कुनबी जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन कर सकेंगे। इससे वे प्रमाण पत्र जारी होने के बाद ओबीसी श्रेणी के तहत कोटा का दावा कर सकेंगे।

Created On :   11 Sept 2025 9:28 PM IST

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