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26/11 मुंबई हमला: सरकार ने अंसारी को पुलिस क्लीयरेंस अनिवार्य नहीं होने वाली कोई भी नौकरी कर सकने की अदालत को जानकारी दी

- फहीम अंसारी ऐसी कोई भी नौकरी कर सकता है
- जिसमें पुलिस क्लीयरेंस अनिवार्य नहीं होती
Mumbai News. राज्य सरकार ने मंगलवार को बॉम्बे हाई कोर्ट को बताया कि 26/11 मुंबई हमले के मामले में बरी हुए फहीम अंसारी ऐसी कोई भी नौकरी कर सकता है, जिसके लिए पुलिस क्लीयरेंस और चरित्र सत्यापन प्रमाणपत्र जरूरत नहीं है। अंसारी ने इस साल जनवरी में हाई कोर्ट में याचिका दायर कर पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट का अनुरोध किया था, जिससे वह अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए ऑटो रिक्शा ड्राइवर के तौर पर काम कर सके। अदालत ने राज्य सरकार से इसको लेकर जवाब मांगा था।
पिछले दिनों मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड की पीठ ने राज्य सरकार से पूछा था कि किस कानून के तहत पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट देने से मना किया गया, जबकि अंसारी को 26/11 के आरोपों से बरी कर दिया गया था। राज्य सरकार ने मंगलवार को हलफनामा दाखिल कर पीठ को बताया कि अंसारी पर नजर रखी जा रही है, क्योंकि उस पर एक बैन आतंकवादी संगठन का कथित एक्टिव सदस्य होने का शक था। इसलिए सर्टिफिकेट के लिए उसकी एप्लीकेशन रिजेक्ट कर दी गई थी।
अतिरिक्त लोक अभियोजक अमित पालकर ने उन प्रोफेशन की डिटेल वाली एक लिस्ट पेश की, जिनके लिए पुलिस क्लीयरेंस या कैरेक्टर वेरिफिकेशन सर्टिफिकेट की जरूरत होती है। इसके मुताबिक ऐसा सर्टिफिकेशन सरकारी, सेमी-गवर्नमेंट, म्युनिसिपल बॉडी में पोस्ट और आरटीओ बैज, परमिट पाने के लिए और स्कूल, कॉलेज और सिक्योरिटी सर्विस में नौकरी के लिए जरूरी है। प्राइवेट कंपनियां भी चाहें, तो पुलिस वेरिफिकेशन की रिक्वेस्ट कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि अंसारी कोई भी ऐसा काम करने के लिए आजाद है, जिसके लिए ऐसे क्लीयरेंस की ज़रूरत नहीं है।
अतिरिक्त लोक अभियोजक अमित पालकर ने यह भी रिक्वेस्ट की कि पीठ सुनवाई चैंबर में करे, क्योंकि पुलिस ने अंसारी के बैन संगठन के साथ कथित जुड़ाव के बारे में एक कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट रिकॉर्ड में रखी थी। पीठ मान गई और कहा कि वह इस हफ्ते के आखिर में चैंबर में मामले की सुनवाई करेगी। 26 नवंबर 2008 को दस पाकिस्तानी आतंकवादियों ने मुंबई में छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस, ताज और ओबेरॉय होटलों सहित कई खास जगहों पर मिलकर हमले किए। यह हमला करीब 60 घंटे तक चला, जिसमें 166 लोग मारे गए और कई घायल हुए। इस दौरान 9 आतंकवादी मारे गए थे।
मई 2010 में स्पेशल कोर्ट ने अकेले जिंदा बचे पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब को दोषी ठहराया था। जबकि दो भारतीय आरोपियों फहीम अंसारी और सबाउद्दीन अहमद को सबूतों की कमी का हवाला देते हुए बरी कर दिया। दोनों पर को-कॉन्स्पिरेटर होने और आतंकी हमले को अंजाम देने में लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) की मदद करने का आरोप लगाया गया था। बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी बरी होने के फैसले को बरकरार रखा। अंसारी को उत्तर प्रदेश में एक अलग मामले में दोषी ठहराया गया था और उसे 10 साल जेल की सजा सुनाई गई थी। अपनी सजा पूरी करने के बाद उसे रिहा कर दिया गया।
Created On :   25 Nov 2025 8:38 PM IST












