- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- मुंबई
- /
- सेवानिवृत कर्मचारी की विधवा पत्नी...
बॉम्बे हाई कोर्ट: सेवानिवृत कर्मचारी की विधवा पत्नी को पेंशन देने का निर्देश, वृद्ध दंपति के बीच अत्याचार मामले में कराया समझौता

- बॉम्बे हाई कोर्ट ने सरकारी सेवा से सेवानिवृत कर्मचारी की विधवा पत्नी को पेंशन देने का दिया निर्देश
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने वृद्ध दंपति के बीच अत्याचार के मामले में कराया समझौता
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के वाणिज्य विभाग में निर्यात निरीक्षक परिषद के सहायक निदेशक के पद सेवानिवृत्त स्वर्गीय विश्वनाथ कुमार चौगल की पत्नी शकुंतला चौगल को पेंशन देने का निर्देश दिया है। अदालत ने माना कि सरकार ने कर्मचारियों के केंद्रीय भविष्य निधि (सीपीएफ) स्कीम से पेंशन स्कीम में बदलाव के संबंध में 1 मई 1987 को नोटिफिकेशन जारी किया। नोटिफिकेशन में यह सोचा गया था कि सभी सीपीएफ बेनिफिशियरी जो 1 जनवरी 1986 को सर्विस में थे, उन्हें उस तारीख से पेंशन स्कीम में शामिल माना जाएगा। न्यायमूर्ति रवींद्र वी. घुगे और न्यायमूर्ति अश्विन डी. भोबे की पीठ ने शकुंतला चौगल की याचिका पर कहा कि याचिकाकर्ता ने 1 मई 1987 के नोटिफिकेशन के तहत ऑप्शन का इस्तेमाल नहीं किया। इसलिए याचिकाकर्ता के मामले में पेंशन को मंजूरी दी जाती है। वह पति की जगह सेंट्रल सिविल सर्विसेज (पेंशन) स्कीम 1972 के तहत पेंशन पाने का हकदार होगी। याचिकाकर्ता के उनके पति के रिटायरमेंट की तारीख से पेंशन दी जाएगी। पीठ ने यह भी कहा कि हमारी राय में फाइनेंस मिनिस्ट्री ने गलत आधार पर आगे बढ़कर यह कहा कि पेंशन स्कीम मौजूद नहीं थी। दो कानूनी मनगढ़ंत बातें बनाई गईं, एक मेमोरेंडम की वजह से और दूसरी 1 जनवरी 1986 से चौथे सेंट्रल पे कमीशन की सिफारिशों को मानने की वजह से थी। ऐसी कानूनी बातों के मामले में यह कहना जरूरी होगा कि प्रतिवाद को पेंशन स्कीम में लिया गया माना जाएगा, जिसका मतलब यह होगा कि वे अब सीपीएफ स्कीम में नहीं रहेंगे। पीठ ने स्पष्ट किया कि जब कोई कर्मचारी जानबूझकर सीपीएफ स्कीम जारी रखने का ऑप्शन चुनता है, तो वह पेंशन स्कीम का मेंबर नहीं बनता है। अगर कोई कर्मचारी 1 मई 1987 के ऑफिस मेमोरेंडम में बताई गई तारीख से पहले कोई ऑप्शन नहीं चुनता है, तो माना जाएगा कि कर्मचारी अपने आप पेंशन स्कीम में आ गया है। याचिकाकर्ता शकुंतला चौगल के पति स्वर्गीय विश्वनाथ कुमार चौगल निर्यात निरीक्षक परिषद (ईआईसी) के पद पर कार्यरत थे। उन्होंने साल 2021 में भारत के संविधान के आर्टिकल 226 के तहत याचिका दायर किया। याचिका में पेंशन का अनुरोध किया गया था
बॉम्बे हाई कोर्ट ने वृद्ध दंपति के बीच अत्याचार के मामले में कराया समझौता
उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने वृद्ध दंपति के बीच अत्याचार के मामले में समझौता कराया। अदालत ने कहा कि पत्नी पति को सपोर्ट करने के लिए सहमत है। वह उसे मुंबई के फ्लैट में रहने की इजाजत दे दी। शादी टूटने के बावजूद भी पति अपनी हाल की सर्जरी के बाद मुंबई के फ्लैट में रह सकता है। पत्नी ने पति को मुंबई के फ्लैट में हर महीने में 7 दिन रहने के लिए भी राजी हो गई है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति संदेश डी. पाटील की पीठ के समक्ष बोरीवली (प.) में रहने वाली 67 वर्षीय विजया सूर्यकांत वेलंकर की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में दावा किया गया कि पति शादी के बाद उसके साथ क्रूरता कर रहा था। पत्नी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर मेंटेनेंस का अनुरोध किया और बांद्रा फैमिली कोर्ट के फैसले को रद्द करने की मांग की। दिया था। बांद्रा फैमिली कोर्ट के 29 अगस्त, 2023 के फैसले को रद्द किया जाता है। उनकी 3 फरवरी 1982 को हुई शादी हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13 (बी) के तहत तलाक के आदेश से खत्म की जाती है। पीठ ने कहा कि आपसी सहमति से तलाक के लिए सहमत होकर वे अपनी शादी को आखिरी और हमेशा के लिए खत्म कर रहे हैं। वे आगे यह भी वादा करते हैं कि वे अभी या भविष्य में भारत में किसी भी फोरम में एक-दूसरे के खिलाफ किसी भी तरह की सिविल या क्रिमिनल शिकायत या कार्रवाई फाइल नहीं करेंगे। पत्नी और पति के बीच शादी 3 फरवरी 1982 को रत्नागिरी में हिंदू वैदिक रीति-रिवाजों के अनुसार हुई थी। इस शादी से उनका एक बेटा हुआ। वह शादीशुदा है और उसका अपना परिवार है। पत्नी ने इस आधार पर फाइल की थी कि याचिकाकर्ता और उनके पति की उम्र को देखते हुए आपसी सहमति से समझौते की संभावना तलाशने के लिए मामले को समय-समय पर चैंबर में रखा गया। पीठ ने मामला 8 सितंबर 2025 को सहमति की शर्तों पर सुलझाया। पीठ ने कहा कि कोई भी पार्टी गलत, अनैतिक, गैर-कानूनी काम नहीं करेगी। साथ ही पति सिर्फ खुद को रखेगी और रहने के दौरान किसी मेहमान को नहीं बुलाएंगे। दोनों पक्ष अपनी मर्जी से फैमिली कोर्ट के फैसले को रद्द करने और पीठ के सामने दी गई शर्तों के अनुसार शादी को खत्म करने के लिए सहमत हैं। कोई भी पार्टी उनकी पर्सनल लाइफ में दखल नहीं देगी और इस सहमति की शर्तों पर साइन करने के बाद वे अपनी-अपनी जिंदगी अपनी मर्जी और इच्छा के अनुसार जीने के लिए आजाद होंगे। इसमें उनके परिवार के सदस्य भी शामिल हैं। एक-दूसरे की पर्सनल लाइफ में दखल नहीं देंगे।
Created On :   23 Nov 2025 9:38 PM IST












