बॉम्बे हाईकोर्ट: टॉर्च की रोशनी से डिलीवरी के दौरान महिला-नवजात की मौत मामले में नोटिस

टॉर्च की रोशनी से डिलीवरी के दौरान महिला-नवजात की मौत मामले में नोटिस
  • बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण डिलीवरी के दौरान मां-बच्चे की मौत का आरोप
  • साइन अस्पताल में केस पेपर पाने के लिए मृतक का परिवार भटकता रहा

डिजिटल डेस्क, मुंबई. भांडुप के अस्पताल में बिजली जाने पर मोबाइल से टॉर्च की रोशनी से डिलीवरी के दौरान महिला और नवजात की मौत के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) को नोटिस जारी किया है। याचिका में प्रसूति अस्पताल में बुनियादी सुविधाओं की कमी और अस्पताल के अधिकारियों की कथित लापरवाही के कारण महिला और उसके नवजात बच्चे की मौत होने का दावा किया गया है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-ढेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की पीठ के समक्ष खुशरुद्दीन अंसारी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गायत्री सिंह और वकील विजय हीरेमठ की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि भारतीय चिकित्सा परिषद (आईएमसी) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार अस्पतालों को रोगी या उनके परिवार के मांगे जाने के 72 घंटों के भीतर चिकित्सा दस्तावेज देने होंगे। पीठ ने पाया कि कोई अस्पताल आईएमसी दिशा-निर्देशों का पालन करने में विफल रहते हैं, जिसका आदेश सर्वोच्च न्यायालय और बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी दिया है, तो वे अनुशासनात्मक जांच के लिए उत्तरदायी हैं। इस ऑपरेशन में महिला और उसके नवजात बच्चे की मौत हो गई।

अस्पताल में बुनियादी सुविधाओं के अभाव और डॉक्टरों की लापरवाही की वजह से मां और बच्चों की मौत हुई। पीठ ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में क्या स्थिति है? हमें लगता है कि हर अस्पताल में बुनियादी सुविधाएं होनी चाहिए और ये अनिवार्य हैं। हम बीएमसी को नोटिस जारी करते हैं।याचिकाकर्ता की वरिष्ठ वकील गायत्री सिंह ने दलील दी कि भांडुप में सुषमा स्वराज प्रसूति अस्पताल के डॉक्टरों ने अप्रैल 2024 में अस्पताल में बिजली चले जाने के कारण मोबाइल टॉर्च की रोशनी से डिलवरी के दौरान याचिकाकर्ता की बेटी शाहिदुन्निसा शेख का ऑपरेशन किया। डॉक्टरों ने मोबाइल की रोशनी की मदद से उसका ऑपरेशन किया, क्योंकि बिजली चली गई थी और जनरेटर की सुविधा भी उपलब्ध नहीं थी। प्रसव के तुरंत बाद उसके बच्चे की मृत्यु हो गई और मृतका की भी नाड़ी नहीं चल रही थी और फिर भी उसे आधी रात को एक एम्बुलेंस में सरकारी लोकमान्य तिलक अस्पताल (सायन अस्पताल) में स्थानांतरित कर दिया गया। जिसमें कोई बुनियादी सुविधाएं नहीं थीं। अस्पताल में लिफ्ट काम नहीं कर रही थी और मृतका को सीढ़ियों के माध्यम से एम्बुलेंस में लाया गया, जबकि उसे बहुत खून बह रहा था। सायन अस्पताल पहुंचने के बाद उसकी मौत हो गई। दोनों अस्पतालों ने मृतका के मेडिकल रिकॉर्ड प्रस्तुत नहीं किए, जबकि उसकी मौत 29 अप्रैल, 2024 को हो चुकी थी। उसका परिवार केस के कागजात पाने के लिए इधर-उधर भटकता रहा। सरकारी अस्पताल में बुनियादी सुविधाओं का अभाव और डॉक्टरों की लापरवाही को लेकर मृतक के परिवार ने हाई कोर्ट दरवाजा खटखटाया।

Created On :   14 Aug 2024 10:35 PM IST

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