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बॉम्बे हाईकोर्ट: झगड़े के दौरान महिला के बाल खींचना या धक्का देना छेड़छाड़ नहीं, दूसरे मामले में वझे की याचिका पर सुनवाई टली
- दंपति के छेड़छाड़ का मामला दर्ज किए जाने क अनुरोध की याचिका खारिज
- एक डॉक्टर की ठाणे के ज्यूपिटर अस्पताल में डीएनबी प्रशिक्षण पूरा करने की उम्मीदवारी को रखा बरकरार
- सचिन वझे की हाई कोर्ट में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई 14 अगस्त तक टली
- सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव और तेजी से विकसित हो रहे समाज को यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट में अलग अलग मामलों में सुनवाई हुई। एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि झगड़े के दौरान किसी महिला के बाल खींचना या धक्का देना उसके साथ छेड़छाड़ करना नहीं है, क्योंकि इसमें छेड़छाड़ करने का 'इरादा' होना चाहिए। अदालत ने बाबा बागेश्वर धाम के अनुयाई और उनकी पत्नी के साथ मारपीट करने वाले आरोपियों के खिलाफ छेड़छाड़ का मामला दर्ज करने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की पीठ के समक्ष एक दंपति की ओर वकील अनिकेत निकम और वकील साधना सिंह की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील ने मुंबई पुलिस को बागेश्वर धाम के बाबा धीरेंद्र शास्त्री के अनुयाई और उनकी पत्नी के साथ मारपीट करने वाले अभिजीत करंजुले, मयूरेश कुलकर्णी, ईश्वर गुंजाल, अविनाश पांडे और लक्ष्मण पंत के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 (छेड़छाड़) के तहत मामला दर्ज करने और मामले की जांच क्राइम ब्रांच का अनुरोध किया। पीठ ने याचिकाकर्ता नितिन उपाध्याय और उनकी पत्नी के बयानों से पाया कि पांच लोगों के खिलाफ आरोप यह है कि उन्होंने याचिकाकर्ता पर हमला किया और उनकी पत्नी को धक्का देते हुए उनके बाल खींचे। पीठ ने कहा आपराधिक बल का मतलब छेड़छाड़ करना कैसे है? क्या आपराधिक बल का इस्तेमाल छेड़छाड़ हो सकता है? इसमें छेड़छाड़ का इरादा कहां है? याचिकाकर्ता के वकील अनिकेत निकम ने याचिकाकर्ता की पत्नी के बयानों का हवाला देते हुए कहा कि उनके बाल खींचे गए, उन्हें पीटा गया और एक आरोपी ने धक्का दिया, जबकि अन्य उसके पति को पीट रहे थे। उनके बयानों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि उनके बाल खींचे गए और इसलिए उनके साथ छेड़छाड़ हुई। अगर उन्हें अनुचित तरीके से छुआ गया, तो कोई क्यों नहीं कहेगा, जो छेड़छाड़ का मामला दर्ज करने का मुख्य तत्व है। पीठ ने कहा कि झगड़े का हर मामला छेड़छाड़ का मामला नहीं बन सकता है। पीड़िता को ऐसा कहना होगा कि उसके साथ छेड़छाड़ की गई है। केवल इसलिए कि आपराधिक बल का इस्तेमाल किया गया और उसे धक्का दिया गया, इसका मतलब यह नहीं है कि उसके साथ छेड़छाड़ हुई है। बाल खींचना छेड़छाड़ करना नहीं है। छेड़छाड़ करने का कोई इरादा होना चाहिए। मान लीजिए कि अगर कोई झगड़ा या लड़ाई होती है, तो यह स्पष्ट है कि कोई महिला के बाल खींचेगा या उसे धक्का देगा, लेकिन यह महिला के साथ छेड़छाड़ करने के रूप में योग्य नहीं हो सकता है। महिला को स्पष्ट रूप से यह बताना होगा कि उसके साथ छेड़छाड़ करने के लिए क्या किया गया? लेकिन केवल बाल खींचना और आपराधिक बल का इस्तेमाल करना छेड़छाड़ करने का मतलब नहीं है। पीठ ने कहा कि दुराचार के मामलों में आमतौर पर पीड़िता (बुरा व्यवहार के विषय में) कहती है। वह अपने बयानों में विस्तार से बताते हैं कि ऐसा किया गया था, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं है। पीठ ने ओशिवारा पुलिस को आरोपियों के खिलाफ धारा 354 लगाने का निर्देश देने से इनकार कर दिया। अदालत ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 323 (चोट पहुंचाना) जैसे प्रासंगिक प्रावधान लगाए गए हैं। पीठ ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता द्वारा तत्काल मामले की जांच किसी अन्य एजेंसी को सौंपने का कोई अनुरोध नहीं किया गया था। याचिकाकर्ता नितिन उपाध्याय के अनुसार 5 आरोपी 9 मई 2023 को उनके घर आए। उन्होंने एक वीडियो रिकॉर्ड करने को कहा कि बाबा बागेश्वर धाम एक कार्यक्रम करने के लिए 3.50 करोड़ रुपए मांगते हैं। जब उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया, तब आरोपियों ने उनके और उनकी पत्नी के साथ मारपीट की। आरोपियों ने उनके बच्चों को भी थप्पड़ मारा था। पिछले दिनों एक क्लिप वायरल हुई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि बाबा किसी भी राज्य में कार्यक्रम आयोजित करने के लिए 3.50 करोड़ रुपए मांगते हैं। बागेश्वर बाबा याचिकाकर्ता महाराष्ट्र में उनके कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक डॉक्टर की ठाणे के ज्यूपिटर अस्पताल में डीएनबी प्रशिक्षण पूरा करने की उम्मीदवारी को रखा बरकरार
दूसरे मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने डॉ.अमित कुमार मोटवानी को बड़ी राहत मिली है। अदालत ने उनकी ठाणे के ज्यूपिटर अस्पताल में डीएनबी प्रशिक्षण पूरा करने की उम्मीदवारी को बरकरार रखा है। राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (एनबीई) ने डॉ.मोटवानी के छुट्टी नियमों के उल्लंघन के कारण उनकी डीएनबी प्रशिक्षण की उम्मीदवारी को रद्द कर दिया था। उन्हें ने जनरल मेडिसिन में डीएनबी पोस्ट एमबीबीएस कोर्स की पढ़ाई के दौरान किडनी की बीमारी के इलाज के लिए एक वर्ष से अधिक छुट्टी ली थी। न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर और न्यायमूर्ति राजेश एस.पाटिल की पीठ के समक्ष डॉ.अमित कुमार मोटवानी की ओर से वकील एम.डी.लोनकर की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान पीठ ने कहा कि एनबीई द्वारा बनाए गए अवकाश नियमों के तहत एक डीएनबी प्रशिक्षु नियमित ड्यूटी अवकाश को छोड़कर एक वर्ष में अधिकतम तीस दिनों की छुट्टी ले सकता है। डीएनबी प्रशिक्षण अवधि को निर्धारित समाप्ति तिथि से आगे बढ़ाने की अनुमति एनबीई की पूर्व स्वीकृति से असाधारण परिस्थितियों में दी जा सकती है। एनबीई की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया कि याचिकाकर्ता ने 12 दिसंबर 2019 से 23 नवंबर 2020 तक चिकित्सा के आधार पर छुट्टी ली थी, इस तथ्य की जानकारी उज्जैन के देवास स्थित अमलतास इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज द्वारा एनबीई को नहीं दी गई थी। डॉ.मोटवानी ने 26 जून 2019 अमलतास इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में जनरल मेडिसिन में डीएनबी पोस्ट एमबीबीएस कोर्स के लिए प्रवेश लिया था। उन्हें प्रशिक्षण के दौरान उनके क्रोनिक किडनी रोग का पता चला और डॉक्टरों द्वारा उनको किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी गई थी। इसलिए उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान 12 दिसंबर 2019 से 23 नवंबर 2020 तक छुट्टी ली थी। डॉ.मोटवानी को आगे की पढ़ाई करने के लिए देवास के अमलतास इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज से ठाणे के ज्यूपिटर अस्पताल में भेज दिया गया। वह अपनी पढ़ाई पूरी कर रही रहे थे कि संस्थान ने एनबीई को डॉ.मोटवानी छुट्टी के नियमों का उल्लंघन कर एक साल से अधिक की छुट्टी लेने की जानकारी दी। एनबीई ने पिछले साल 10 नवंबर दिशा-निर्देश जारी कर याचिकाकर्ता(डॉ.मोटवानी)की जनरल मेडिसिन में कोर्स करने की उम्मीदवारी को रद्द कर दिया। इसके बाद डॉ.मोटवानी ने एनबीई ने आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। पीठ ने एनबीई के आदेश को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को डीएनबी प्रशिक्षण पूरा करने के लिए उम्मीदवारी को बरकरार रखा है।
सचिन वझे की हाई कोर्ट में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई 14 अगस्त तक टली
उधर बॉम्बे हाई कोर्ट में मंगलवार मुंबई पुलिस के बर्खास्त सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वझे की 100 करोड़ रुपए की वसूली के मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस) याचिका पर सुनवाई 14 अगस्त के लिए टल गई। याचिका में सीबीआई के भ्रष्टाचार के मामले में जमानत की मांग की गयी है। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ के समक्ष सचिन वझे की दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस) याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील आबाद पोंडा ने दलील दी कि 100 करोड़ रुपए की वसूली के मामले में मुख्य आरोपी तत्कालीन गृहमंत्री अनिल देशमुख समेत सभी आरोपियों को जमानत मिल गई है। जबकि सीबीआई ने इस मामले में याचिकाकर्ता को क्षमादान देते हुए सरकारी गवाह बनाया है। ऐसे में याचिकाकर्ता को जमानत दी जानी चाहिए। वह तलोजा जेल में बंद हैं। 2021 के एंटीलिया बम कांड और व्यवसायी मनसुख हिरेन की हत्या के मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा गिरफ्तार किए गए सचिन वाझे ने एक बार फिर से दावा किया है कि महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख ने उन पर कई अवैध काम करने के लिए दबाव डाला था। पीठ ने 14 अगस्त को मामले की अगली सुनवाई रखी गई है।
सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव और तेजी से विकसित हो रहे समाज को यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है
इसके अलावा बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक विवाहित जोड़े को तलाक देते हुए और अनिवार्य 6 महीने की कूलिंग ऑफ पीरियड (वह अवधि जिसके दौरान विवाद के पक्षकार आगे की कार्रवाई करने से पहले अपने विकल्पों पर पुनर्विचार करते हैं) को माफ करते हुए कहा कि सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव और तेजी से विकसित हो रहे समाज को यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। अदालत ने विवाहित जोड़े को तलाक की इजाजत दे दी। न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की एकल पीठ ने कहा कि प्रतीक्षा अवधि 'किसी भी पक्ष के साथ किसी भी अन्याय से बचने और सुलह की संभावना को खत्म करने के लिए एक एहतियाती प्रावधान है। एक बार जब अदालत को यह संतुष्टि हो जाए कि दोनों पक्षों ने अलग होने और आगे बढ़ने का सचेत निर्णय लिया है और सुलह की कोई संभावना नहीं है, तो अदालत को यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और प्रतीक्षा अवधि को माफ करने के लिए विवेक का प्रयोग करना चाहिए। पीठ ने पुणे के रहने वाले नवविवाहिता दंपत्ति के विवाह को समाप्त करने का आदेश दिया, जिन्होंने आपसी सहमति के आधार पर तलाक मांगा था। साथ ही पीठ ने उन्हें छह महीने की प्रतीक्षा अवधि को माफ करने का भी आदेश दिया। पीठ ने कहा कि छूट के लिए आवेदन पर निर्णय लेते समय प्रतीक्षा अवधि के उद्देश्य को सही ढंग से समझने की आवश्यकता है।विकसित होते समाज में तेजी से हो रहे बदलावों को देखते हुए न्यायपालिका आपसी सहमति से अपने विवाह को समाप्त करने की मांग करने वाले पक्षों की सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इस प्रकार बदलती सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए एक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। पीठ ने कहा कि आम तौर पर ऐसे मामले सामने आते हैं, जहां पक्षकार लड़ते रहते हैं। हालांकि सुलह की कोई संभावना नहीं होती। ऐसे मामलों में पक्षों को सौहार्दपूर्ण समाधान की संभावना तलाशने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यहां तक कि उन्हें मध्यस्थता के लिए भी भेजा जाता है, ताकि वे मुकदमेबाजी को समाप्त कर सकें। हालांकि जब पक्षकार आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन करते हैं, तो वे अलग होने का एक सचेत निर्णय लेते हैं और इस प्रकार एक उचित दृष्टिकोण दिखाते हैं। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता युवा हैं और उनकी तलाक याचिका को लंबित रखने से उन्हें मानसिक पीड़ा होगी। पीठ ने आगे कहा नवविवाहित जोड़ा साथ नहीं रह पा रहा है, यह अपने आप में मानसिक पीड़ा होगी। अदालत का यह कर्तव्य है कि वह पक्षकारों को कूलिंग ऑफ पीरियड माफ करने और तलाक के लिए उनके आवेदन के लंबित रहने के तनाव से मुक्त करने के लिए विवेक का प्रयोग करके सहायता करे। इस मामले में पुरुष और महिला दोनों ने कहा है कि प्रयासों के बावजूद सुलह एक विकल्प नहीं था। इसलिए उन्होंने आपसी सहमति से अलग होने का फैसला किया। इस जोड़े ने 2021 में शादी की। शादी के एक साल बाद वे अपूरणीय मतभेदों के कारण अलग रहने लगे थे। बाद में उन्होंने आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका दायर की। जोड़े ने पारिवारिक अदालत के अनिवार्य छह महीने की कूलिंग ऑफ पीरियड माफ करने की मांग की। पारिवारिक अदालत ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया।याचिकाकर्ताओं ने कहा कि तलाक याचिका के लंबित रहने से उन्हें मानसिक पीड़ा हो रही है। इसलिए उन्होंने अनुरोध किया कि छह महीने की कूलिंग ऑफ अवधि को माफ कर दिया जाए और उनके विवाह को भंग करने का आदेश भी पारित किया जाए। न्यायमूर्ति गोडसे ने छह महीने की कूलिंग ऑफ अवधि को माफ कर दिया और जोड़े को तलाक दे दिया।
Created On :   6 Aug 2024 9:36 PM IST