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दुर्लभ बीमारी: सालभर में 30 लोग अप्लास्टिक एनीमिया से पीड़ित, आरबीसी- डब्ल्यूबीसी और प्लेटलेटस् की संख्या कम

- अनेक कारणों से बीमारी, 45 से अधिक आयु वाले चपेट में
- आरबीसी, डब्ल्यूबीसी और प्लेटलेटस् की संख्या कम
Nagpur News. शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) में एप्लास्टिक एनीमिया नामक दुर्लभ बीमारी के सालभर में औसत 12 मरीज आते हैं। मेयो, मेडिकल व एम्स में मिलाकर सालभर में इस बीमारी के 30 मरीज आते हैं। जब शरीर में रक्त बनना बंद हो जाता है, तो इस बीमारी को मेडिकल की भाषा में अप्लास्टिक एनीमिया कहा जाता है। अनेक कारणों से यह बीमारी होती है। मेयो, मेडिकल व एम्स में इस एप्लास्टिक एनीमिया का उपचार होता है। सूत्रों ने बताया कि तीनों अस्पतालों में मिलाकर सालभर में 40 से अधिक मरीज आते हैं। इस बीमारी का उपचार रक्त विकार के विशेषज्ञ हिमेटोलॉजिस्ट द्वारा किया जाता है। यह रक्त से संबंधित गंभीर व दुर्लभ बीमारी है। इस बीमारी का प्रमाण काफी कम है। शरीर में रक्त अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में बनता है। शरीर में बोन मैरो ही लाल रक्त कण आरबीसी, श्वेत रक्त कण डब्ल्यूबीसी और प्लेटलेटस् बनाते हैं। जब बोन मैरो काम करना बंद कर देता है या कमजोर हो जाता है तो शरीर में रक्त बनना बंद हो जाता है। या रक्त बनने की गति धीमी हो जाती है, जो हानिकारक साबित होता है। ऐसी स्थिति को एप्लास्टिक एनीमिया कहा जाता है।
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अनेक कारणों से बीमारी, 45 से अधिक आयु वाले चपेट में
अप्लास्टिक एनीमिया किसी भी उम्र में हाे सकता है। लेकिन 45 से अधिक आयु वर्ग में यह बीमारी पाई जाती है। यह दुर्लभ बीमारी है। इस बीमारी के मरीज नाममात्र होते हैं। बीमारी होने के अनेक कारण हैं, जिसमें ऑटोइम्यून रिएक्शन यानि शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली गलती से बोन मैरो की कोशिकाओं पर हमला कर देती है। पहले से वायरल संक्रमण जैसे हेपेटाइटिस, एचआईवी, एपस्टीन बार वायरस आदि हो तो रक्त बनना बंद हो जाता है। कैंसर की दवाएं या रेडिएशन थेरेपी चल रही हो तो रक्त बनना बंद होने का खतरा बना रहता है। रासायनिक पदार्थ जैसे बेंजीन, कीटनाशक आदि के बीच बरसों से रहने वालों को यह खतरा होता है। कुछ एंटिबायोटिक या दर्दनिवारक दवाओं का अधिक प्रयोग करनेवालों को भी बीमारी का खतरा होता है। यह बीमारी अनुवांशिक कारणों से भी होती है।
आरबीसी, डब्ल्यूबीसी और प्लेटलेटस् की संख्या कम
इस बीमारी के लक्षणों में जल्दी थकान आना, कमजोरी और चक्कर आना, चेहरा और होंठ पीले पड़ना, बार-बार संक्रमण होना, नाक या मसूड़ों से खून आना, शरीर पर नीले धब्बे आना, बिना वजह खून बहना, दिल की धड़कन तेज होना आदि लक्षण दिखाई देते हैं। ऐसे लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। ऐसे मरीजों में आरबीसी, डब्ल्यूबीसी और प्लेटलेटस् की संख्या बहुत कम होती है। बोन मैरो की बायोप्सी में पता चलता है कि नई रक्त कोशिकाएं बन रहा है या नहीं। इस बीमारी से पीड़ितों को रक्त चढ़ाना पड़ता है। इम्यून सिस्टम काे नियंत्रित करने इम्यूनोसप्रेसिव थेरेपी दी जाती है। अति गंभीर मामले में बोन मैरो ट्रांसप्लांट करना पड़ता है। संक्रमण रोकने के लिए एंटीबायोटिक्स और एंटीवायरल दवाएं दी जाती हैं।
Created On :   10 Nov 2025 7:41 PM IST












