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Nagpur News: बढ़ रही बाल मृत्यु दर , सेप्सिस से सालाना 36% शिशुओं की मौत

Nagpur News देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों में सेप्सिस संक्रमण का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। देश के अनेक विशेषज्ञों द्वारा किये गए अध्ययन में यह सामने आया कि 50 फीसदी सेप्सिस के लक्षण दिखाई दिये हैं। कुछ मामलों में एंटिबायोटिक दवाएं भी बेअसर हुई हैं। सेप्सिस से सालाना 36 फीसदी शिशुओं की मौत हो जाती है। मेडिकल जर्नल ‘द लांसेट ग्लोबल हेल्थ’ में यह रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। इस रिपोर्ट की गंभीरता को देखते हुए एम्स नागपुर ने जागरुकता कार्यक्रम लिया था, जिसमें बीमारी से निपटने सामूहिक प्रयास को जरूरी बताया। ग्रामीण क्षेत्र में इस बीमारी के प्रति लापरवाही व उपचार का अभाव देखा जा रहा है।
205 संक्रमित, 20 फीसदी की संदेहास्पद मृत्यु : सूत्रों ने बताया कि कुछ समय पहले सरकारी अस्पतालों में जन्में 566 नवजात शिशुओं के रक्त के सैंपल लिये गए। इनमें से 205 शिशुओं में संक्रमण पाया गया। इनमें से अनुमानित 20 फीसदी की संदेहास्पद मृत्यु हुई। इन शिशुओं का वजन कम, प्रसवपूर्व नियमित जांच व उपचार का अभाव पाया गया था। इसके बाद अस्पतालों में सेप्सिस को लेकर जागरुकता पर काम किया जा रहा है।
इन कारणों से होती है बीमारी सामान्य कारणों में निमोनिया, मूत्र मार्ग का संक्रमण, पेट या आंतों का संक्रमण, त्वचा या घाव का संक्रमण, कैथेटर, इंजेक्शन या सर्जरी के बाद संक्रमण, सेप्सिस के लक्षण, तेज़ बुखार या बहुत कम तापमान, दिल की तेज़ धड़कन, तेजी से सांस लेना, भ्रम होना, नींद या बेहोशी जैसी स्थिति, ब्लड प्रेशर कम होना, पेशाब कम होना, हाथ-पैर ठंडे पड़ना, त्वचा का रंग बदलना आदि सेप्सिस की बीमारी हो सकती है। इस बीमारी से नवजात शिशु और छोटे बच्चे, बुजुर्ग, डायबिटीज़, किडनी या लिवर रोग वाले मरीज, कमजोर इम्यूनिटी वाले, एचआईवी, कैंसर, स्टेरॉयड दवा लेने वाले, सर्जरी वाले मरीजों को अधिक खतरा होता है।
समय रहते उपचार जरूरी: सेप्सिस का लक्षण दिखते ही तुरंत विशेषज्ञ डॉक्टरों से जांच व उपचार करवाना चाहिए। सेप्सिस के कारण बाल मृत्यु दर का प्रमाण बढ़ रहा है। इसे रोकने के लिए प्रयास करना आवश्यक है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस बीमारी के प्रति जागरुकता का अभाव है। -डॉ. अविनाश गावंडे, बाल रोग विशेषज्ञ व चिकित्सा अधीक्षक, मेडिकल नागपुर
Created On :   26 Sept 2025 1:16 PM IST