- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- नागपुर
- /
- बुखार, फिर चिकन पॉक्स - 7 से 15 आयु...
Nagpur News: बुखार, फिर चिकन पॉक्स - 7 से 15 आयु वर्ग के बच्चे सबसे ज्यादा हो रहे प्रभावित

- मेडिकल में हर रोज आ रहे 30 से अधिक मरीज
- संक्रमित के संपर्क में आने पर फैलाव
- शुरुआत में आते हैं लाल रंग के दाने
Nagpur News. शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) में हर रोज 30 से अधिक मरीज चिकन पॉक्स के आ रहे हैं। 7 से 15 साल के बच्चों में बीमारी देखी जा रही है। इन बच्चों को पहले बुखार आया, फिर चिकन पॉक्स। मेडिकल सूत्रों के अनुसार, पहले चिकनपॉक्स 5 साल की कम आयु के बच्चों को होता था। अब यह बीमारी 7 से 15 साल आयुवर्ग में अधिक हो रही है। संक्रामक बीमारी होने से इसका फैलाव होने का खतरा रहता है। शुरुआत में बच्चों के किसी भी अंग में लाल रंग के दाने होते हैं। ऐसा लगता है, जैसे उसमें पानी भर गया हो। इससे पहले बुखार, सिरदर्द, भूख नहीं लगना, थकान आदि लक्षण दिखायी देते हैं। शुरुअाती लक्षणों के बाद चेहरे, छाती और पीठ पर लाल रंग के दाने दिखाई देते है। बाद में शरीर के अन्य हिस्सों में होते है। कुछ दिनों बाद मवाद और फफोले जैसी स्थिति बनती है। अधिकतम एक हफ्ते तक ऐसे ही लक्षण बने रहते हैं। मेडिकल में आने वाले मरीजों में यही लक्षण दिखायी दे रहे हैं।
संक्रमित के संपर्क में आने पर फैलाव
चिकन पॉक्स वैरिकाला-जोस्टर वायरस नाम के वायरस के संपर्क में आने से फैलता है। चिकन पॉक्स संक्रमित बीमारी होने से इसका फैलाव होता है। पीड़ित व्यक्ति के छींकने या खांसने से, संक्रमित व्यक्ति के फफोले से निकलने वाले तरल पदार्थ के संपर्क में आने से चिकनपॉक्स फैलता है। समय-समय पर वैक्सीनेशन नहीं होने से चिकन पॉक्स की समस्या आती है। मौसम के बदलाव के साथ ही बच्चों पर इसका असर दिखाई देता है। चिकन पॉक्स के मरीजों को साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। लापरवाही बरतने पर संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है। बताया गया कि एक बार जिसे चिकन पॉक्स होता है, उसका इम्यून सिस्टम उस वायरस के प्रति सचेत होता है। इसलिए उसे जीवन में कभी दोबारा चिकन पॉक्स नहीं होता। समय पर उपचार नहीं करने पर दाद या स्किन एलर्जी का कारण बनता है।
लक्षण दिखते ही डॉक्टर को दिखाएं
डॉ. अविनाश गावंडे, बाल रोग विशेषज्ञ व चिकित्सा अधीक्षक, मेडिकल के मुताबिक इन दिनों बच्चों को चिकन पॉक्स होने के मामले आने लगे हैं। पहले 5 साल की कम आयु में यह बीमारी होती थी। अब जो मामले सामने आ रहे है, उनका आयु वर्ग 7 से 15 साल के बीच है। टीकाकरण कार्यक्रम के दौरान चिकन पॉक्स से बचाने के लिए वैक्सीन दी जाती है। यदि किसी ने वैक्सीन नहीं ली तो, उसे समस्या आती है। टीका लगने के बाद भी यदि संक्रमित लोगों के संपर्क में आते हैं, तो भी चिकन पॉक्स होने की संभावना होती है। चिकन पॉक्स के लक्षण दिखायी देते ही तुरंत बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टरों से जांच व उपचार करवाने से परेशानी से बचा जा सकता है।
Created On :   6 April 2025 6:50 PM IST