Nagpur News: ई-कचरा से बेखबर नागपुर मनपा अभी भी कचरे में ही उलझी पड़ी

ई-कचरा से बेखबर नागपुर मनपा अभी भी कचरे में ही उलझी पड़ी
  • पांच साल में इलेक्ट्रॉनिक कचरे में 72.54% की वृद्धि
  • नहीं होता ढंग से पृथक्कीकरण

Nagpur News ई-वेस्ट (इलेक्ट्रॉनिक कचरा) पर नागपुर विवि के शोध में बड़ा खुलासा हुआ है। नागपुर विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक्स में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. समित माहोरे ने ई-वेस्ट के विषम परिस्थिति पर शोध प्रस्तुत किया है। शोध में उन्होंने इसके निस्तारण का उपाय सुझाया है और कहा है कि चूंकि नागपुर में ई-कचरे का ढंग से पृथक्कीकरण नहीं होता है, इसलिए सही आंकड़ा जुटाना मुश्किल है और ऐसी परिस्थिति में उपायों पर अमल भी पेचीदा है।

देश में ई-वेस्ट की मात्रा में लगातार वृद्धि

उन्होंने शोध में देश में ई-कचरे की गंभीरता पर ध्यान आकृष्ट किया है। देश में पांच साल में ई-वेस्ट की मात्रा में 72.54% की बढ़ोतरी हुई है। शोध के अनुसार, वर्ष 2019-20 में देश में 10.1 लाख मीट्रिक टन ई-वेस्ट उत्पन्न हुआ। वर्ष 2023-24 तक यह आंकड़ा बढ़कर 17.5 लाख मीट्रिक टन पहुंच गया।

नागपुर महानगरपालिका के सामने चुनौती

शहरों में बढ़ता सॉलिड वेस्ट का प्रबंधन बड़ी चुनौती बन चुका है। नियमानुसार गीला-सूखा कचरे को अलग कर वैज्ञानिक तरीके से निष्पादन होना चाहिए। शोध के अनुसार पुणे और मुंबई में 70 से अधिक ई-वेस्ट संग्रहण केंद्र स्थापित किए गए हैं, लेकिन नागपुर में मनपा सामान्य घनकचरा प्रबंधन की चुनौतियों में उलझी है। भांडेवाड़ी डम्पिंग यार्ड में कचरे में लगी भीषण आग ने अलग संकट खड़ा कर दिया है।

बच्चों और भ्रूण के लिए सबसे खतरनाक

ई-कचरा में खराब इलेक्ट्रॉनिक सामान, मोबाइल, टीवी, कम्प्यूटर, लैपटॉप, वाशिंग मशीन, स्पीकर, इयरफोन, एयर कंडीशनर, फ्रिज जैसी चीजें शामिल हैं। इसमें मौजूद खतरनाक रसायन जैसे सीसा, पारा, कैडमियम, बेरिलियम, क्रोमियम आदि मानव शरीर के विभिन्न अंगों को प्रभावित करते हैं। यह तत्व रक्त, यकृत, मस्तिष्क, गुर्दे, त्वचा, प्रजनन तंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनका प्रभाव कार्सिनोजेनिक (कैंसरकारी), न्यूरोटॉक्सिक, एंडोक्राइन डिसरप्टर और प्रजनन प्रणाली के लिए हानिकारक होता है। बच्चों और भ्रूण के लिए यह विशेष रूप से खतरनाक है। इसके अतिरिक्त, ई-वेस्ट मिट्टी की उर्वरता को प्रभावित करता है, जलस्रोतों को प्रदूषित करता है और वायु में विषैले तत्वों को छोड़ता है, जिससे मानव समाज और वन्य जीवन दोनों संकट में पड़ते हैं।

जहरीले धुएं और प्रदूषण में इजाफा

रिपोर्ट में बताया गया है कि महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और दिल्ली इस संकट में सबसे बड़े योगदानकर्ता राज्य हैं। इसके अतिरिक्त, अनौपचारिक तरीकों से ई-वेस्ट की रीसाइक्लिंग करने से जहरीले धुएं और प्रदूषण में भारी इजाफा हो रहा है।

‘रीड्यूस-रीयूज-रीसाइकल' से संकट का निपटारा

डॉ. समित माहोरे द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट "एडवांसिंग सर्कुलर इकोनमी इन इंडिया थ्रू इफेक्टिव वेस्ट मैनेजमेंट स्ट्रैटर्जिस’ में इस संकट से निपटने के लिए सर्कुलर इकोनमी मॉडल को अपनाने की सिफारिश की गई है। इस मॉडल में ‘रीड्यूस-रीयूज-रीसाइकल’ के सिद्धांतों के माध्यम से उत्पादों के जीवन चक्र को बढ़ाने, मरम्मत और पुनः उपयोग को प्राथमिकता देने की बात कही गई है।

ई-वेस्ट संग्रहण से रोजगार के अवसर

पुणे और मुंबई जैसे शहरों में इस दिशा में सकारात्मक पहल भी देखने को मिल रही है। कुछ संगठनों ने 70 से अधिक ई-वेस्ट संग्रहण केंद्र स्थापित किए हैं, जहां से उपकरणों को पुनर्चक्रण केंद्रों तक पहुंचाया जाता है। यहां से सोना, चांदी और अन्य दुर्लभ तत्व निकाले जाते हैं, जिससे न केवल पर्यावरण संरक्षण संभव हो रहा है, बल्कि रोजगार के अवसर भी सृजित हो रहे हैं।

प्रबंधन में कई गंभीर चुनौतियां

विशेषज्ञों का मानना है कि, यदि सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर ठोस नीतियां बनाएं, जागरूकता फैलाएं और बुनियादी ढांचे में निवेश करें, तो इस संकट से प्रभावी रूप से निपटा जा सकता है और ई-वेस्ट प्रबंधन में एक वैश्विक उदाहरण बन सकता है।

Created On :   21 May 2025 11:35 AM IST

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