Nagpur News: केंद्रीय कर्मचारियों पर भी लागू होगा महाराष्ट्र जाति जांच कानून

केंद्रीय कर्मचारियों पर भी लागू होगा महाराष्ट्र जाति जांच कानून
हाई कोर्ट ने धारा 6(1) और 6(3) को पूरी तरह वैध ठहराया

Nagpur News बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में महाराष्ट्र अनुसूचित जाति प्रमाण-पत्र (सत्यापन) अधिनियम, 2000 की धारा 6(1) और 6(3) को पूरी तरह संवैधानिक और वैध घोषित कर दिया है। न्यायमूर्ति मुकुलिका जवलकर और न्यायमूर्ति राज वाकोड़े की पीठ ने स्पष्ट किया कि अगर कोई केंद्रीय सरकार का कर्मचारी महाराष्ट्र राज्य द्वारा जारी जाति प्रमाण-पत्र के आधार पर आरक्षण लाभ ले रहा है, तो उसका प्रमाण-पत्र महाराष्ट्र की जाति जांच समिति से सत्यापित कराना पूरी तरह उचित और संवैधानिक है।

आनंद कोल्हटकर और अन्य केंद्रीय कर्मचारियों ने यह याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि महाराष्ट्र की जाति जांच समिति को केंद्र सरकार के कर्मचारियों की जाति जांचने का कोई अधिकार नहीं है। केंद्र के कर्मचारियों की सेवा शर्तें केंद्र के कानून से नियंत्रित होती हैं, राज्य का कानून उन पर लागू नहीं हो सकता। इसलिए इसे रद्द करने की मांग की गई।

प्रमाण-पत्र सही ठंग से जारी हो : इस मामले पर फैसला देते हुए अदालत ने कहा कि 2000 के महाराष्ट्र जाति प्रमाण-पत्र कानून की धारा 6(1), 6(3) और 2003 के नियमों का नियम-9 पूरी तरह संवैधानिक और वैध है। इनमें कोई असंवैधानिक बात नहीं है। ये पूरा कानून सुप्रीम कोर्ट के "कुमारी माधुरी पाटिल' के फैसले के बाद बनाया गया था। इसका मकसद सिर्फ यही है कि जाति प्रमाण-पत्र सही ढंग से जारी हो, उनकी जांच हो और नकली दावों पर कार्रवाई हो। इस कानून को राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल चुकी है। यदि कोई केंद्र सरकार का कर्मचारी संबंधित राज्य की आरक्षण सूची के आधार पर अनुसूचित जाति, जनजाति का लाभ ले रहा है, तो उससे उसकी जाति का सत्यापन करना न तो गलत है और न ही असंवैधानिक है।

अगली सुनवाई 17 दिसंबर को : अदालत ने यह भी कहा कि संविधान की 7वीं अनुसूची की समवर्ती सूची की प्रविष्टि 20, प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों तथा राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों को देखते हुए राज्य सरकार को ऐसा कानून बनाने का पूरा अधिकार है, क्योंकि ये कर्मचारी राज्य द्वारा जारी जाति प्रमाण-पत्र और राज्य के आरक्षण का लाभ ले रहे हैं, इसलिए संविधान द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पूरा कराना अदालत का भी कर्तव्य है। इसके चलते अदालत ने याचिकाकर्ताओं की मांग खारिज कर दी। मामले की अगली सुनवाई 17 दिसंबर को रखी है।

बिना किसी जांच का लाभ लेते रहेंगे : अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा कि अगर याचिकाकर्ताओं की दलील मान ली जाए, तो केंद्र सरकार के कर्मचारी को मिला जाति प्रमाण-पत्र बिना जांच के पूरे परिवार के बच्चों, पोते-पोतियों आदि के लिए वैध मान लिया जाएगा। इससे वे बिना किसी जांच के शिक्षा, नौकरी और यहां तक कि चुनाव में भी आरक्षण का लाभ लेते रहेंगे। यह इस कानून का उद्देश्य कतई नहीं है। इसलिए हमारी स्पष्ट राय में धारा 6(1), 6(3) और नियम-9 पूरी तरह संवैधानिक हैं।


Created On :   28 Nov 2025 12:03 PM IST

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