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Nagpur News: नागपुर में लगातार सिमट रही विधानमंडल के शीतकालीन अधिवेशन की अवधि

- कोरोना काल में 2 वर्ष नहीं हो पाया था सत्र
- विदर्भ के मुद्दों को न्याय मिलने की रहेगी दरकार
Nagpur News विधानमंडल के शीतकालीन अधिवेशन की अवधि 7 दिन की कर दी गई है। नागपुर में यह अधिवेशन 8 दिसंबर से 14 दिसंबर तक होगा। इससे पहले 8 दिसंबर से 19 दिसंबर तक अधिवेशन की घोषणा की गई थी। यह पहला मौका नहीं है कि नागपुर में अधिवेशन की अवधि कम हुई है। इससे पहले भी इस तरह के निर्णय लिए गए। कोरोना काल में 2 वर्ष तक यहां अधिवेशन नहीं हो पाया था।
अब यह भी बताया जा रहा है कि अगले 2 वर्ष नागपुर में कोई अधिवेशन नहीं होगा। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के गृहनगर के कारण नागपुर को राज्य की सत्ता का केंद्र माना जाता है। ऐसे में दरकार रहेगी कि कम समय में ही सही नागपुर व विदर्भ के विविध मुद्दों को न्याय मिलेगा। नागपुर में शीतकालीन अधिवेशन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि देखें तो 1953 में गठित फजल अली आयोग की सिफारिश के अनुसार राज्य पुनर्गठन की प्रक्रिया की गई।
1960 में विदर्भ व उसके 8 जिलों को मध्यप्रदेश व बरार प्रांत से अलग किया गया। संयुक्त महाराष्ट्र में मुंबई राजधानी तो नागपुर को उपराजधानी का दर्जा मिला। तब क्षेत्रीय विकास संतुलन के ध्येय के साथ नागपुर व विदर्भ के लिए कुछ बातें िवशेष तौर से लागू की गई। 28 दिसंबर 1953 को नागपुर करार अर्थात समझौता हुआ। उसके अनुसार तय किया गया कि महाराष्ट्र विधानमंडल का कम से कम एक अधिवेशन नागपुर में होगा। उसके लिए अवधि तो निर्धारित नहीं है पर कहा गया कि कम से कम 1 माह तक अधिवेशन होना चाहिए। उसके बाद नागपुर में विधानमंडल का शीतकालीन अधिवेशन होने लगा। इस बीच कई वर्षों तक आरोप लगता रहा कि राज्य की सत्ता में विदर्भ के जनप्रतिनिधियों का दबदबा नहीं रहने से सरकार विदर्भ की उपेक्षा करती है। यहां अधिवेशन केवल औपचारिक तौर पर होता है। मुंबई,मराठवाडा व शेष महाराष्ट्र के नेता यहां केवल पिकनिक मनाने आते हैं। लेकिन पिछले एक दशक से सत्ता का नेतृत्व बदला। विदर्भ के जनप्रतिनिधियों को प्रतिनिधित्व बढ़ा।
कहा जाने लगा कि मुंबई के निर्णय भी नागपुर से लिए जाने लगे हैं। लेकिन नागपुर में अधिवेशन की अवधि सिमटती ही रही। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पहले कार्यकाल में नागपुर में शीतकालीन के बजाय मानसून अधिवेशन कराया। लेकिन विधानभवन में बाढ़ का पानी घूसने के कारण नागपुर में मानसून अधिवेशन को समय के पहले समाप्त करना पड़ा। कोरोना काल में वर्ष 2020,2021 व वर्ष 2022 में यहां अधिवेशन नहीं हो पाया। 1960 में महाराष्ट्र सरकार का पहला अधिवेशन नागपुर में हुआ। वह 27 दिन चला। वर्ष 1968 में 28 दिन अधिवेशन चला। लेकिन बाद में अवधि सिमटती रही। 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय भी नागपुर में अधिवेशन नहीं हो पाया था। 1963 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मारोतराव कन्नमवार की मृत्यु के कारण अधिवेशन नहीं हो पाया। 1979 में लोकसभा चुनाव के कारण अधिवेशन नहीं हो पाया था। 1985 में कांग्रेस के स्थापना दिन समारोह के कारण यहां अधिवेशन नहीं हो पाया था। फिलहाल विधानभवन परिसर में 7 मंजिला नई इमारत का निर्माण कार्य शुरु होनेवाला है। ऐसे में तय है कि 2 वर्ष तक नागपुर में कोई अधिवेशन नहीं हो पाएगा।
Created On :   4 Dec 2025 3:01 PM IST














