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Nagpur News: याचिका खारिज - नियमितीकरण के मामले में पॉलिटेक्निक के 143 विजिटिंग लेक्चरर्स को झटका
Nagpur News. राज्य के विभिन्न पॉलिटेक्निक कॉलेजों में लंबे समय से कार्यरत 143 विजिटिंग लेक्चरर्स के नियमितीकरण की मांग को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि इस मामले में नए पद सृजन के लिए न तो कोई प्रस्ताव भेजा गया और न ही कोई ठहराव पारित हुआ। इसलिए उमादेवी, सचिन दावले और धरम सिंह के फैसलाें के अनुसार याचिकाकर्ताओं को स्थायी नियुक्ति का लाभ नहीं दिया जा सकता। यह फैसला न्यायमूर्ति अनिल किलोरे और न्यायमूर्ति रजनीश व्यास की पीठ ने सुनाया।
सरकार पर आरोप
याचिकाकर्ताओं ने अदालत में कहा था कि उन्होंने विज्ञापन और इंटरव्यू के बाद चयन प्रक्रिया से नियुक्ति पाई, वे पूर्णकालिक लेक्चरर्स की तरह सभी शैक्षणिक जिम्मेदारियां निभा रहे हैं, लेकिन राज्य सरकार उन्हें स्थायी नहीं कर रही। उन्होंने आरोप लगाया कि कई वर्षों से वे निरंतर काम कर रहे हैं और सरकार उनसे पूरा कार्य लेते हुए भी उन्हें घंटे के अनुसार मामूली मानदेय दे रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार नियमित नियुक्ति नहीं कर रही और 50 प्रतिशत से अधिक पद रिक्त पड़े हैं।
सरकार का पक्ष
राज्य सरकार ने इस दावे का विरोध करते हुए कहा कि इन लेक्चरर्स की नियुक्ति केवल एक घंटे के सिद्धांत व्याख्यान या प्रैक्टिकल के आधार पर हुई है, जिन्हें 500 से 800 रुपये प्रति लेक्चर और प्रैक्टिकल के लिए 250–500 रुपये का भुगतान मिलता है। सरकार ने स्पष्ट किया कि ये नियुक्तियां न तो मंजूर नियमित पदों पर थीं, न ही एमपीएससी जैसी वैधानिक चयन प्रक्रिया से हुई थीं। इसलिए उन्हें नियमित करना संभव नहीं है।
दावा अस्वीकार
दालत ने दस्तावेजों की जांच के बाद पाया कि नियुक्ति आदेश, चयन समिति की प्रक्रिया, विज्ञापन और अन्य आवश्यक रिकॉर्ड अधिकांश याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि बिना ठोस भर्ती रिकॉर्ड के नियमितीकरण का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के उमादेवी मामले (2006) का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि अस्थायी या अनुबंध आधारित नियुक्तियों को नियमित करने का अधिकार कर्मचारियों को नहीं मिलता। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्तियां न तो स्थायी पदों पर थीं, न ही वे 2006 से पहले के “वन-टाइम रिलैक्सेशन” नियम के दायरे में आते हैं। इसी आधार पर अदालत ने याचिका में की गई मांगों को अस्वीकार करते हुए याचिका खारिज कर दी।
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सरकारी नौकरी में निष्पक्षता जरूरी
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निरीक्षण को दोहराया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब सरकारी संस्थान लंबे समय तक कर्मचारियों से स्थायी काम करवाते हैं, तो उन कामों के लिए मंजूर पद बनाना चाहिए और कर्मचारियों के साथ निष्पक्षता और सम्मान से व्यवहार करना चाहिए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह मामला अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी बनाने का नहीं है, बल्कि यह देखा जाना चाहिए कि क्या वर्षों तक अस्थायी नियुक्तियों के आधार पर कर्मचारियों के अधिकारों से इनकार किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में निष्पक्षता, सोच-समझकर निर्णय और काम के सम्मान का पालन अनिवार्य बताया।
Created On :   17 Nov 2025 6:34 PM IST













