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Nagpur News: विधवा को साझा घर में नहीं रहने देना घरेलू हिंसा के समान

Nagpur News बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि यदि किसी महिला को उसके साझा घर (शेयर्ड हाउस होल्ड) में रहने से रोका जाता है, तो यह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत आर्थिक शोषण की श्रेणी में आता है। पति की मृत्यु के बाद विधवा पत्नी और उसके बेटे को पति के भाई ने साझा घर में रहने से रोक दिया। इस मामले में अदालत ने फैसला देते हुए स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 17 के अनुसार साझा मकान में रहने का अधिकार महिलाओं का कानूनी अधिकार है, चाहे उन्होंने किसी समय उस घर में निवास किया हो या नहीं।
यह है पूरा प्रकरण
न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फालके ने यह फैसला दिया। मामले की पृष्ठभूमि यह रही कि मोहिनी के पति व आशीष के भाई, मुकेश चौहान की 2008 में मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उनकी पत्नी मोहिनी और बेटे ने ससुराल के घर में रहने का हक मांगा। लेकिन आवेदक आशीष चौहान ने उन्हें नागपुर के आनंद नगर स्थित घर में रहने से रोक दिया। इस पर मोहिनी ने घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत राहत की मांग की। प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 2014 में उनका आवेदन खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ दायर अपील पर अतिरिक्त सत्र न्यायालय ने 2022 में उन्हें भूतल (ग्राउंड फ्लोर) पर रहने की अनुमति दी और आवेदक पर 20 हजार रुपये का खर्च भी लगाया। इस आदेश के खिलाफ आशीष चौहान ने हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की।
सत्र न्यायालय का निर्णय
अशीष चौहान ने दलील दी कि मोहिनी 2004 के बाद इस घर में कभी नहीं रहीं, इसलिए उन्हें "पीड़ित व्यक्ति' नहीं माना जा सकता। उन्होंने यह भी दावा किया कि 2007 में पति-पत्नी का तलाक हो गया था, लेकिन इसका कोई कानूनी प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया। मोहिनी चौहान ने अदालत में बताया कि विवाह के बाद वह अपने पति के साथ इस घर में रहीं और पति की मृत्यु के बाद उन्हें और उनके बेटे को घर से वंचित करना "आर्थिक शोषण' है। सभी का पक्ष सुनने के बाद हाई कोर्ट ने अतिरिक्त सत्र न्यायालय का निर्णय बरकरार रखा, लेकिन सत्र न्यायालय के आदेश में संशोधन करते हुए वसीयत के अनुसार मोहिनी और उनके बेटे को भूतल (ग्राउंड फ्लोर) के बजाय पहली मंजिल पर रहने की अनुमति दी। जो उनकी सास द्वारा बनाए गए वसीयतनामे के अनुरूप है।
Created On :   24 Sept 2025 12:29 PM IST