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Nagpur News: जबलपुर की चिंगारी नागपुर में भड़की, तिरंगे की शान बचाने चला 3 महीने 18 दिन सत्याग्रह

- स्वाधीनता दिवस के मौके पर दैनिक भास्कर आजादी से जुड़ीं यादों से रूबरू करा रहा है
- इनका गवाह यह शहर रहा है
- झंडा सत्याग्रह ने दी आजादी के आंदोलन को नई दिशा
Nagpur News. जब अंगरेज सरकार ने तिरंगा फहराने पर पाबंदी लगा दी तो इसकी चिंगारी जबलपुर में सुलग उठी। यही चिंगारी नागपुर में भड़क उठी। आजादी के दीवानों ने तिरंगे की शान बचाने के लिए झंडा सत्याग्रह किया। नागपुर का झंडा सत्याग्रह आजादी के आंदोलन का स्वर्ण अध्याय बना है।
1921 में चरखे वाला तिरंगा ध्वज मान्य
सन 1921 में चरखे के चित्र वाला तिरंगा झंडा राष्ट्रध्वज के रूप में मान्य किया गया। सरकार ने इसे फहराने पर पर पाबंदी लगा दी थी। 18 मार्च 1923 को महात्मा गांधी की गिरफ्तारी को एक साल पूरा होने के अवसर पर जबलपुर में तिरंगा ध्वज के साथ एक जुलूस निकाला गया। जुलूस जब कैंटोनमेंट क्षेत्र में पहुंचा तो कुछ लोगों ने नगर परिषद की इमारत पर चढ़कर तिरंगा झंडा फहरा दिया। पुलिस ने तिरंगे को उतारकर रौंद डाला। इससे आक्रोशित आंदोलकों ने तिरंगे झंडे के साथ रोज जुलूस निकालना शुरू कर दिया। पुलिस ने पंडित सुंदरलाल, सुभद्राकुमारी चौहान, नत्थुराम मोदी और अन्य प्रमुख लोगों को गिरफ्तार किया। इसका असर नागपुर के आजादी के दीवानाें पर हुआ।
14 अप्रैल को पहला विशाल जुलूस
नागपुर में 13 अप्रैल 1923 को जालियांवाला बाग हत्याकांड स्मृति दिवस के अवसर पर सभा आयोजित की गई थी। सभा में जनरल मंचरशा आवारी ने भाषण दिया। अगले दिन 14 अप्रैल को राष्ट्रध्वज के साथ एक विशाल जुलूस निकाला गया। सिविल लाइंस में अंगरेज अधिकारियों की बसाहट थी, वहां जाकर अंगरेजों के खिलाफ नारेबाजी की गई। पुलिस ने मंचरशा आवारी को गिरफ्तार किया। इस घटना के बाद झंडा सत्याग्रह के लिए समिति तैयार की गई। समिति में जमनालाल बजाज, नीलकंठराव देशमुख, भगवानदीन, आचार्य विनोबा भावे और गणपतराव टिकेकर शामिल थे। उन्होंने 1 मई 1923 से झंडा सत्याग्रह शुरू करने का ऐलान किया। इसी दिन सरकार ने सिविल लाइंस क्षेत्र में सभाएं व जुलूसों पर धारा 144 के तहत पाबंदी लगा दी।
पुलिस की बेरहमी से आंदोलन तीव्र
2 मई 1923 को जमनालाल बजाज और भगवानदीन के नेतृत्व में तिरंगे के साथ जुलूस निकाला गया। पुलिस ने बेरहमी से लाठीचार्ज किया और उन्हें जेल में डाल दिया। यह खबर दूर-दूर तक फैल गई। हर जिले से लोगों के जत्थे, जो भी संसाधन मिले उससे नागपुर पहुंचे। पुलिस ने रास्ते में ही गिरफ्तारियां शुरू कर दी गई। 13 जून 1923 तक नागपुर में 537 और जबलपुर में 15 सत्याग्रही गिरफ्तार हो चुके थे। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. अंसारी ने लाेगों से सत्याग्रह में शामिल होने का आह्वान किया। सत्याग्रह की तारीख 18 जून 1923 तय की गई।
नेहरू समेत देश भर से पहुंचे आंदोलनकारी
18 जून के सत्याग्रह को देखने जवाहरलाल नेहरू, पुरुषोत्तमदास टंडन, गोपालदास देसाई और उनकी पत्नी, चित्रशाला के वासु काका, जॉर्ज जोसेफ, विट्ठलदास जेराजनी आदि नागपुर आए। देशभर से लोगों का जत्था नागपुर पहुंचते देख सरकार की नींद उड़ गई। सत्याग्रह को रोकने 17 जून की शाम को जमनालाल बजाज, नीलकंठराव देशमुख और भगवानदीन को गिरफ्तार कर लिया गया। सत्याग्रहियों को घेरकर कैद कर लिया गया। निश्चित तारीख 18 जून को आचार्य विनोबा भावे और डॉ. हर्डीकर ने झंडे के साथ जुलूस निकाला। गणपतराव टिकेकर और पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने सत्याग्रह का नेतृत्व संभाला। 10 जुलाई 1923 को जमनालाल, नीलकंठराव, भगवानदीन और अबीदअली को कुल डेढ़ साल की सजा सुनाई गई।
पटेल बंधुओं ने संभाली कमान
कांग्रेस ने झंडा सत्याग्रह को राष्ट्रीय आंदोलन मानकर सरदार वल्लभ भाई पटेल को नागपुर भेजा। उस समय आंदोलन के नेतृत्व कर रहे गणपतराव टिकेकर की तबीयत खराब थी। इसलिए सत्याग्रह का नेतृत्व सरदार पटेल ने संभाला। इसके बाद वल्लभभाई के भाई विट्ठलभाई भी नागपुर पहुंचे। उन्होंने 13 अगस्त 1923 को गवर्नर से मुलाकात कर बताया कि 18 अगस्त को जुलूस निकालने के बाद सत्याग्रह समाप्त किया जाएगा। 18 अगस्त को माखनलाल चतुर्वेदी के नेतृत्व में जुलूस निकला। इस जुलूस में वल्लभभाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद, शंकरलाल पारेख, सुभद्राकुमारी चौहान, वासुदेव सुभेदार, पूनमचंद रांका, ठाकुर लक्ष्मण सिंह, इंद्र सिंह जैसे प्रमुख नेता शामिल थे। रात में टाउन हॉल में वल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता में विशाल सभा हुई, जिसमें उन्होंने सत्याग्रह खत्म करने की घोषणा की। नागपुर का झंडा सत्याग्रह आजादी के आंदोलन का स्वर्ण अध्याय बना है।
Created On :   12 Aug 2025 7:26 PM IST