बिगड़ती सेहत: बढ़ रहा तनाव, हर दिन 2 केस, बच्चे-बड़े-बुजुर्गों- नौजवानों को घेर रही है बीमारी

बढ़ रहा तनाव, हर दिन 2 केस, बच्चे-बड़े-बुजुर्गों- नौजवानों को घेर रही है बीमारी
  • जीवन के सबसे बेफिक्र पड़ाव पर बच्चे तनाव के शिकार
  • बच्चों की लाइफस्टाइल भी वयस्कों की तरह ही पहले से मुश्किल हुई
  • शिक्षा के तनाव में खेलकूद व खानपान का समय निर्धारित नहीं होने से तनाव बढ़ रहा

डिजिटल डेस्क, नागपुर. जीवन के सबसे बेफिक्र पड़ाव पर बच्चे तनाव के शिकार हो रहे हैं, यह स्थिति चिंताजनक है। आजकल की जीवनशैली के हिसाब से अधिकतर बच्चों में तनाव और अवसाद जैसे लक्षण पाए जा रहे हैं। बच्चों की लाइफस्टाइल भी वयस्कों की तरह ही पहले से मुश्किल हुई है। पढ़ाई से लेकर खेलकूद में अव्वल आने की इस दौड़ में सभी लगातार आगे आने की कोशिश में लगे रहते हैं। शहर के अस्पतालों के आंकड़े बता रहे हैं कि विविध कारणों से तनावग्रस्त बच्चों का प्रमाण बढ़ रहा है।

50 फीसदी नए व 50 फीसदी पुराने मरीज

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, जिले में बालरोग विशेषज्ञ डॉक्टरों की संख्या 400 है। इनमें से कुछ अपना खुद का अस्पताल चलाते हैं, वहीं कुछ दूसरे अस्पतालों में सेवाएं देते हैं। एक बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर के पास हर रोज औसत 100 बच्चे उपचार के लिए आते हैं। उन्हें बाल रोग से जुड़ी विविध समस्याएं होती हैं। इन बच्चों में एक फीसदी बच्चे ऐसे होते है, जो किसी न किसी कारण से तनाव का शिकार होते हैं। बालरोग विशेषज्ञों के पास आने वाले बच्चों में 50 फीसदी नए व 50 फीसदी पुराने मरीज होते हैं। यानी 400 बाल रोग विशेषज्ञों के पास हर रोज 200 मरीज नए होते हैं। इनमें से एक फीसदी यानी दो मरीज तनाव का शिकार होते हैं। हर महीने 60 बच्चे यानि साल भर में 720 बच्चे तनावग्रस्त होते हैं। अभिभावकों द्वारा इन बच्चों का उपचार करवाने सरकारी की बजाय निजी अस्पतालों में ही ले जाया जाता है। सरकारी अस्पतालों में अन्य बीमारियों का उपचार होने से वहां तनावग्रस्त बच्चों का उपचार करवाने नहीं जाते।

स्कूल-कॉलेज के बच्चों की संख्या अधिक : तनावग्रस्त बच्चों में अधिकतर स्कूल-कॉलेज के होते हैं। सर्वाधिक बोझ पढ़ाई का ही होता है। स्कूल, कॉलेज, ट्यूशन, घर हर जगह केवल पढ़ाई की बात और पढ़ाई में ही समय बीतता है। बावजूद इसके स्पर्धा में पिछड़ जाना, कम नंबर आना, घर में मां-बाप की डांट, स्कूल-कॉलेज में शिक्षकों की डांट, रिश्तेदार व पड़ोसियों के ताने आदि के कारण बच्चे तनावग्रस्त होते हैं। तनावग्रस्त होने पर उनका आत्मविश्वास कम होता है।

इन कारणों को पहचानें

नौकरी व अन्य काम के चलते समय नहीं देने से बच्चे तनाव का शिकार होते हैं।

शिक्षा के तनाव में खेलकूद व खानपान का समय निर्धारित नहीं होने से तनाव बढ़ रहा है।

कम्प्यूटर मोबाइल व सोशल साइट्स के अधिक उपयोग से भी बच्चे तनावग्रस्त हो रहे हैं।

माता-पिता के चेहरे पर दिखने वाले तनाव से भी बच्चे तनावग्रस्त होते हैं।

परिवार का माहौल बिगड़ने के कारण बच्चों पर असर होता है।

दूसरे बच्चों की तारीफ करने से भी बच्चा तनावग्रस्त हो जाता है।

सकारात्मक माहौल जरूरी

डॉ. अविनाश गावंडे, बालरोग विशेषज्ञ व चिकित्सा अधीक्षक, मेडिकल के मुताबिक घर-परिवार में सकारात्मक माहौल रखना चाहिए, जिससे बच्चों को हमेशा संस्कार व सकारात्मक ऊर्जा मिलती रहे। बच्चों के व्यवहार में बदलाव दिखने पर उसकी समस्या को समझने की कोशिश करनी चाहिए। बच्चों को हमेशा तनावमुक्त रखें, ताकि वह सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ सकें।


Created On :   16 Feb 2024 8:13 AM GMT

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