महाभारत 2024: साक्षात्कार - पॉलिटिक्स अबाउट रियलिटी है, राजनीति में तो एक और एक ग्यारह होते हैं

साक्षात्कार - पॉलिटिक्स अबाउट रियलिटी है, राजनीति में तो एक और एक ग्यारह होते हैं
  • ग्यारह नहीं तो पिछड़ जाओगे
  • शरद पवार महाराष्ट्र को शांत और अशांत दोनों कर सकते हैं
  • उद्धव ठाकरे से पैचअप नहीं
  • हिंदुत्व को छोड़कर मराठा-मुस्लिम वोटों की राजनीति कर रहे
  • उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से विशेष साक्षात्कार

डिजिटल डेस्क, नागपुर, संजय देशमुख। शिवसेना और राकांपा को फोड़ने का आरोप झेलने वाले राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस राजनीति में एक और एक मिलाकर दो की बजाए एक और एक को जोड़कर उसे ग्यारह करने में यकीन रखते हैं। बकौल फडणवीस, राजनीति वास्तविकता पर आधारित होती है। आंकड़ों की राजनीति करनी होती है। कभी सफलता मिलती है, कभी विफलता। लेकिन राजनीति में आप वास्तविकता और सच्चाई से परिचित नहीं होंगे तो पिछड़ जाओगे। दैनिक भास्कर के साथ हुई खास बातचीत में उपमुख्यमंत्री फडणवीस ने अनेक मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखी। उन्होंने भविष्य में उद्धव ठाकरे की शिवसेना के साथ पैचअप होने से इनकार करते हुए कहा कि उद्धव ठाकरे ने मन खट्टा किया है। शरद पवार के राजनीतिक सामर्थ्य के बारे में फडणवीस कहते हैं कि शरद पवार महाराष्ट्र को शांत और अशांत दोनों कर सकते हैं।

राजनीति में इतनी जोड़-तोड़, तोड़-फोड़ करते हैं, रात को अच्छे से नींद आती है?

पॉलिटिक्स अबाउट रियलिटी है। राजनीति में संवेदनशील होना जरूरी है। नहीं तो आप पत्थर बन जाओगे। राजनीति में आपको वास्तविकता और सच्चाई से परिचित होना जरूरी है, नहीं तो आप पिछड़ जाओगे। मैंने बहुत धक्के खाए। उन धक्कों से मैंने यह सीखा है कि राजनीति की जो हार्ड रियलिटी है, उसको समझकर ही निर्णय लेने होते हैं।

शिवसेना और राकांपा को फोड़ने की जरूरत क्यों आन पड़ी?

कोई किसी की पार्टी फोड़ नहीं सकता है। अमित शाह अपने भाषण में कहते हैं कि राकांपा पुत्री प्रेम और शिवसेना पुत्र प्रेम के कारण फूटी है। उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे के पर कतरना शुरू कर दिया, उन्हें और उनके समर्थकों को किनारे करना शुरू कर दिया। लगातार उपेक्षा के बाद एकनाथ शिंदे को भी यह लगने लगा कि भविष्य में जिनके साथ लड़ना है, वे उनसे अधिक शक्तिशाली हैं। किसी भी सरकार में ‘मुख्यमंत्री’ सुप्रीम होता है, लेकिन उद्धव ठाकरे असहाय होकर देख रहे थे। असंतोष बढ़ता जा रहा था। ठीक ऐसी ही स्थिति राकांपा में अजित पवार की थी। भाजपा के साथ जाने पर चार बार शरद पवार ने अजित पवार को सहमति प्रदान की थी, लेकिन हर बार अंतिम समय पर शरद पवार मुकरते रहे। अजित पवार का इस्तेमाल ही किया गया है। जो उन्हें मिलना था उन्हें वह दिया नहीं। इसी वजह से उनके मन में असंतोष पैदा हुआ। दोनों का पार्टी में दम घुट रहा था।

शिंदे गुट के लोग कहते हैं कि सर्वे के नाम पर आपने शिंदे का ‘अभिमन्यु’ किया?

एकनाथ शिंदे के साथ जितने सांसद आए उनसे अधिक सीटें उनको मिली हैं। भाजपा 26 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, एक-दो सीटें और बढ़ेंगी। शिंदे गुट के साथ 13 सांसद आए थे। अजित पवार के साथ एक सांसद आया था। भाजपा ने तो एक तरह से नुकसान ही सहन किया है, लेकिन मैं इसे नुकसान नहीं मानता। गठबंधन की राजनीति में यह होता रहता है। उनके उम्मीदवार कौन होंगे, यह वही तय करते हैं, उन्हें हमारे सर्वे की जरूरत नहीं है।

आप राजनीति में एक और एक से दो की बजाय एक-एक से ग्यारह बनाने पर ज्यादा जोर देते हैं?

राजनीति में आंकड़ों का गणित करना होता है। कभी सफलता मिलती है, कभी नहीं। नहीं हुआ तो वन प्लस वन जीरो भी होता है। हमारे दोनों प्रयत्न जारी हैं- वन प्लस वन से टू और वन प्लस वन से ग्यारह। राजनीति में सोल्यूशन सफलता पर निर्भर करता है। उदाहरण के तौर पर अजित पवार के सामने दो ही सोल्यूशन थे, या तो वे उसी हालत में रहें या फिर उसे छोड़कर परिणाम की चिंता किए बगैर बाहर निकलें।

महायुति में भी अब नेता एक-दूसरे पर आरोप करने लगे?

महायुति में भाजपा बड़ी पार्टी है। इसलिए भाजपा सेंटर पोल की भूमिका में है। एकनाथ शिंदे और अजित पवार से संबंध अच्छे हैं। कुछ सीटों को लेकर रस्साकशी चलती रही, लेकिन सामंजस्य से हल निकाल लिया। दूसरी ओर महाविकास आघाडी में शरद पवार और शिवसेना ने कांग्रेस की स्थिति दयनीय बनाकर रख दी है। किसका पैर किसके जूते में है, यह पता ही नहीं चलता है।

राकांपा और शिवसेना का वजूद खत्म हो सकता है?

कोई भी पार्टी अन्य किसी पार्टी का वजूद खत्म नहीं कर सकती है। सीटें कम-ज्यादा होती रहती हैं। शरद पवार और उद्धव ठाकरे की पार्टी कुछ क्षेत्रों तक सीमित हैं। जब तक उनकी जगह कोई दूसरा भरता नहीं, तब तक उनका वजूद तो रहेगा। उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस की स्पेस ली है। वे अब मराठा और मुस्लिम वोटर की राजनीति करने लगे हैं। राजनीति में डुप्लीकेट पॉलिसी नहीं चलती है।

राज ठाकरे का साथ कितना लाभकारी होगा?

राज ठाकरे की एक अलग ऑडियन्स हैं। उनका फिक्स वोट बैंक है। कुछ निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं, जहां उनके वोटर हैं। जैसे नाशिक और पुणे, लेकिन उससे भी बड़ी बात है कि राज ठाकरे को एक नैरेटिव सेट करने में महारत हासिल है। अभी तक वह प्रवाह के विपरीत नैरेटिव सेट करना चाहते थे, इसलिए उनको उतनी सफलता नहीं मिल पाई। नरेंद्र मोदी के साथ आने से राज ठाकरे को जरूर लाभ होगा।

शरद पवार की राजनीति कहां तक सही है?

शरद पवार को महाराष्ट्र की राजनीति की अच्छी तरह समझ है। जब वे विपक्ष में होते हैं, तो टास्क खेलते हैं। शरद पवार महाराष्ट्र को शांत भी कर सकते हैं और अशांत भी। विपक्ष में इस तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। हम भी उनसे यह सब सीख रहे हैं।

गठबंधन की राजनीति में कार्यकर्ताओं पर अन्याय होता है?

यह सही है, लेकिन भाजपा कहीं न कहीं कार्यकर्ताओं को अवसर प्रदान करती है। प्रयास यही रहता है कि किसी न किसी तरह से एडजस्ट किया जाए। शक्ति बढ़ाई तभी तो इस पोजीशन पर आए हैं। अगर हमने यह बोला होता कि ‘हमारी कहीं भी शाखा नहीं’, तो कोई मौका ही नहीं था।

उद्धव ठाकरे से पैचअप हो सकता है?

हमारा मन दुखी हुआ है। जहां मन नहीं मिलते, वहां पैचअप होने की संभावना नहीं होती है। उद्धव ठाकरे की एक समस्या यह है कि उनको डेवलपमेंट के विषय की समझ नहीं है। किसी भी प्रोजेक्ट का विरोध करने की उनकी नीति है। उनकी वजह से देश की सबसे बड़ी रिफायनरी नहीं हो सकी।

2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव में क्या अंतर है?

2019 में भाजपा तीन राज्य हार कर लोकसभा चुनाव में उतरी थी। पोल पंडितों को लग रहा था कि भाजपा 220 सीटों पर सिमट जाएगी। नरेंद्र मोदी का एक साइलेंट वोटर है। मोदी का वोटर सर्वे में पकड़ में नहीं आता है। किसी भी सर्वे में महिलाओं की सैंपलिंग उतनी नहीं होती है। मोदी को वोट देने में महिलाओं का प्रतिशत बढ़ा है।













Created On :   21 April 2024 12:49 PM GMT

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