मारबत-बड़ग्या जुलूस: दुनिया का अनोखा मिलन - परंपरा और आधुनिकता का संगम देखने उमड़ी भीड़

दुनिया का अनोखा मिलन - परंपरा और आधुनिकता का संगम देखने उमड़ी भीड़
  • अलग-अलग मोहल्लों और समाजों की तरफ से बड़ग्या (विशालकाय पुतले) भी तैयार किए जाते हैं
  • जुलूस के दौरान यह पुतले पूरे शहर में घुमाए जाते हैं और लोग नारे लगाते हैं

Nagpur News. शनिवार को शहर खास उत्सव का साक्षी बना। पारंपरिक मारबत और बड़ग्यों का भव्य जुलूस निकाला गया। काली और पीली मारबत के साथ ही विभिन्न सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों पर कटाक्ष करते बड़ग्यों को देखने के लिए भारी संख्या में लोग जुटे। वोट चोरी, स्मार्ट मीटर विवाद, आतंकवाद, महंगाई, भ्रष्टाचार और नशाखोरी जैसे ज्वलंत मुद्दों पर बड़ग्यों के माध्यम से व्यंग्य किया गया। मारबत और बड़ग्या एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक त्योहार है, जिसकी परंपरा करीब 150 साल से भी अधिक पुरानी मानी जाती है। यह महानगर की पहचान बन चुका है।

इतिहास और उत्पत्ति

इस त्योहार की शुरुआत लगभग 1870 के दशक में नागपुर के गुरुजी मोहल्ला और इतवारी क्षेत्र से हुई थी। मूल रूप से यह त्योहार बुराई और कुरीतियों के विरोध का प्रतीक है। समाज में व्याप्त बुराइयों, अत्याचारों और अनाचारों के खिलाफ जनता अपनी नाराजगी जताने के लिए मारबत (स्त्री का पुतला) और बड़ग्या (पुरुष के पुतले) बनाकर जुलूस में निकालती थी। पुतलों पर उस समय की सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक समस्याओं की झलक दिखाई जाती थी।


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परंपरा

  • दो प्रमुख मारबतें निकलती हैं – काली मारबत और पीली मारबत।
  • इसके अलावा अलग-अलग मोहल्लों और समाजों की तरफ से बड़ग्या (विशालकाय पुतले) भी तैयार किए जाते हैं।
  • जुलूस के दौरान यह पुतले पूरे शहर में घुमाए जाते हैं और लोग नारे लगाते हैं, अंत में इन पुतलों को खुले मैदान में जलाया जाता है, जो बुराई के अंत का प्रतीक है।

महत्व

  • यह सिर्फ धार्मिक या सांस्कृतिक त्योहार नहीं, बल्कि जनता की आवाज़ है।
  • जिस समय अखबार या अन्य संचार माध्यम इतने प्रभावी नहीं थे, उस समय लोग अपनी नाराजगी और संदेश मारबत-बड़ग्या के जरिए व्यक्त करते थे।

भव्य जुलूस

  • नागपुर के इतवारी, महाल, गांधीबाग, सदर जैसे प्रमुख इलाकों से गुजरता हुआ यह जुलूस हजारों की भीड़ को आकर्षित करता है।
  • ढोल-ताशों, पारंपरिक वेशभूषा और रंग-बिरंगी झांकियों से पूरा माहौल उत्सवमय हो जाता है।

मारबत और बड़ग्या नागपुर का केवल उत्सव नहीं, बल्कि इतिहास, परंपरा और जनभावना का प्रतीक है, जिसने बुराई के विरोध और सामाजिक संदेश देने की अनूठी परंपरा कायम की है।

Created On :   25 Aug 2025 7:42 PM IST

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