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चर्चासत्र: पारंपरिक मीडिया पर सोशल मीडिया हावी, बहुराष्ट्रीय कंपनियों का नियंत्रण बढ़ा - खबरों की सटीकता बनी बड़ी चुनौती

- दैनिक भास्कर के आयोजन में एडिटर्स गिल्ड के अध्यक्ष अनंत नाथ के विचार
- पारंपरिक मीडिया पर सोशल मीडिया हावी
- भरोसे और सटीकता की चुनौती
Nashik News. डिजिटलाइजेशन के इस दौर में पारंपरिक मीडिया पर अब सोशल मीडिया हावी होता नजर आ रहा है। ‘दैनिक भास्कर’ ने ‘सार्वजनिक उत्सवों और समारोहों में आने वाली दुश्वारियां तथा उनके समाधान’ विषय पर चर्चासत्र के दौरान यह विषय सुर्खी बना। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अनंत नाथ ने कहा कि गूगल, ट्विटर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मीडिया पर नियंत्रण बढ़ता जा रहा है। वे लोगों की हर निजी पसंद पर नजर रख रहे हैं। पारंपरिक मीडिया पर सोशल मीडिया हावी है। इसलिए यह तय करना कठिन हो गया है कि क्या सही है, क्या गलत है।
चर्चासत्र का उद्घाटन सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति वसंत पाटील ने किया। शनिवार को परशुराम साईंखेड़कर सभागार में अंतरराष्ट्रीय शरीर सौष्ठव खिलाड़ी स्नेहा सचिन कोकणे, संचार माध्यम विशेषज्ञ प्रो. के. जी. सुरेश, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अनंत नाथ, सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति वसंत पाटील, प्रसिद्ध छायाचित्रकार संदेश भंडारे तथा दैनिक भास्कर के समूह संपादक प्रकाश दुबे उपस्थित थे।
कार्यक्रम की प्रस्तावना दैनिक भास्कर के समूह संपादक प्रकाश दुबे ने रखी। इस अवसर पर सावाना के उपाध्यक्ष वैद्य विक्रांत जाधव, कार्याध्यक्ष संजय करंजकर सुरेश गायधनी, प्रा, सोमनाथ मुठाल आदि सहित अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोग उपस्थित थे।
पारंपरिक मीडिया क्या है?
अख़बार, रेडियो, और टेलीविज़न, जो लंबे समय तक सूचना और समाचार का प्रमुख स्रोत रहे हैं। यह पारंपरिक मीडिया के मुख्य साधन हैं। लेकिन पिछले एक दशक में सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म जैसे Facebook, X (Twitter), Instagram, YouTube, और WhatsApp ने सूचना प्रसार का स्वरूप पूरी तरह बदल दिया है। जिससे अब खबरें सबसे पहले सोशल मीडिया पर आती हैं और फिर पारंपरिक मीडिया तक पहुंचती हैं। जब्कि भरोसे और सटीकता की चुनौती बने रहती है।
सोशल मीडिया में भरोसे और सटीकता की चुनौती
सोशल मीडिया भले ही तेज़ है, लेकिन फेक न्यूज़ और भ्रामक जानकारी भी उतनी ही तेजी से फैलती है। जिससे कई बार पारंपरिक मीडिया को तथ्य-जांच करने और सही जानकारी देने में संघर्ष करना पड़ता है। विश्वसनीयता के मामले में अभी भी अख़बार अधिक भरोसेमंद माने जाते हैं।
नागरिक पत्रकारिता
सोशल मीडिया ने मानो हर व्यक्ति को “पत्रकार” बना दिया है। आम नागरिक भी घटनाओं की जानकारी, वीडियो और विचार साझा करते हैं। इससे पारंपरिक मीडिया पर नए दृष्टिकोणों और तथ्यों को शामिल करने का दबाव बढ़ा है।
दर्शकों का झुकाव
युवा पीढ़ी का ध्यान अब सोशल मीडिया की ओर है। YouTube और Instagram Reels जैसे प्लेटफॉर्म दृश्यात्मक और त्वरित सामग्री प्रदान करते हैं, जो टीवी समाचारों से अधिक आकर्षक लगती है।
पारंपरिक मीडिया का डिजिटल रूपांतरण
बदलते दौर में सोशल मीडिया के दबाव ने पारंपरिक मीडिया को भी डिजिटल बनने पर मजबूर किया है। हर अख़बार, चैनल और रेडियो स्टेशन की ऑनलाइन वेबसाइट, मोबाइल ऐप और सोशल मीडिया अकाउंट हैं, जिनके माध्यम से वे ताज़ा खबरें साझा करते हैं, लेकिन जानकारों का कहना है कि खबरों की जल्दबाजी में उसकी सटीकता का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।
Created On :   9 Nov 2025 10:33 PM IST












