New Delhi News: लोकतंत्र के मंदिर पहुंचते रहे हैं न्याय के पुजारी, सियासत में आने की परंपरा है पुरानी

लोकतंत्र के मंदिर पहुंचते रहे हैं न्याय के पुजारी, सियासत में आने की परंपरा है पुरानी
  • ज्यूडिशियरी से सियासत में आने की परंपरा है पुरानी
  • एनएचआरसी के भी बने सर्वेसर्वा
  • पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने भी चुनी सियासी राह
  • जेन-जेड आंदोलन के बाद केपी शर्मा ओली की सरकार गिर चुकी है

New Delhi News. अजीत कुमार. नेपाल में भड़के जेन-जेड आंदोलन के बाद केपी शर्मा ओली की सरकार गिर चुकी है और अब इस हिमालयी राष्ट्र में अंतरिम सरकार के मुखिया के तौर पर नेपाल सुप्रीम कोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की का नाम टॉप पर है। हालांकि अभी उनके नाम पर अंतिम मुहर लगनी बाकी है। लेकिन विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में ज्यृडिशियरी से सियासत में आने की परंपरा पुरानी है। इसके ताजा उदाहरण कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय और भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई हैं, जो क्रमश: लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य हैं। जस्टिस गंगोपाध्याय पर ऐसा सियासी रंग चढ़ा कि उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायाधीश पद से इस्तीफा दे दिया और पश्चिम बंगाल की तुमलुक सीट से भाजपा के उम्मीदवार बन गए। फिलहाल वे लोकसभा के माननीय सदस्य हैं। इसके पहले राम मंदिर पर ऐतिहासिक निर्णय सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई को वर्ष 2020 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्यसभा के लिए नामित किया था। इसी प्रकार सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंगनाथ मिश्र को कांग्रेस पार्टी ने वर्ष 1998 में राज्यसभा में भेेजा था।

वर्ष 2014 में केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया था। इसके पूर्व 1968 से 1970 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे मोहम्मद हिदायतुल्ला 1979 में देश के उपराष्ट्रपति बनाए गए थे। उपराष्ट्रपति होने के नाते उन्होंने वर्षों तक राज्यसभा के पदेन सभापति का कार्यभार संभाला। हाल ही में ‘इंडिया’ गठबंधन ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बी सुदर्शन रेड्‌डी को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया था।

भारतीय राजनीति में बहरूल इस्लाम ऐसे बिरले इंसान हैं, जिनका सफर राजनीति से शुरू होकर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बनने तक पहुंचा। 1951 में कांग्रेस के सदस्य बने बहरूल इस्लाम को पार्टी ने 1962 में पहली बार राज्यसभा का सदस्य बनाया था। 1968 में पार्टी ने उन्हें दूसरी बार उच्च सदन की सदस्यता दी। लेकिन दूसरा कार्यकाल पूरा होने से पहले ही 1972 में इस्लाम को गुवाहाटी हाई कोर्ट का न्यायाधीश बना दिया गया। लिहाजा उन्हें राज्यसभा की सदस्यता छोड़नी पड़ी। 1979 में जस्टिस इस्लाम को गुवाहाटी हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। फिर 1980 में वे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बनाए गए। दिलचस्प यह कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पद से इस्तीफा देने के बाद जस्टिस बहरूल इस्लाम को कांग्रेस ने तीसरी बार राज्यसभा में भेज दिया।

एनएचआरसी के भी बने सर्वेसर्वा

देश के इतिहास में सुप्रीम कोर्ट के आधा दर्जन ऐसे पूर्व मुख्य न्यायाधीश रहे हैं, जिन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के सर्वेसर्वा बने। इस सूची में जस्टिस रंगनाथ मिश्रा, जस्टिस एम एन वेंकटचेलैया, जस्टिस जेएस वर्मा, जस्टिस एएस आनंद, जस्टिस एस राजेन्द्र बाबू और जस्टिस केजी बालकृष्णन का नाम शुमार है।

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने भी चुनी सियासी राह

देश के मुख्य चुनाव आयुक्त जैसे संवैधानिक पदों पर रहे कई शख्सियतों ने भी खूब सियासत की है। इसमें सबसे बड़ा नाम पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एम एस गिल का है, जो चुनाव आयोग से रिटायर होने के बाद कांग्रेस के टिकट पर न केवल राज्यसभा में पहुंचे, बल्कि यूपीए सरकार के दौरान कैबिनेट मंत्री (युवा मामले और खेल मंत्रालय) भी बने। देश की पहली महिला मुख्य चुनाव आयुक्त रहीं वीएस रमादेवी ने सेवानिवृत्ति के बाद हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में राज्यपाल का पद सुशोभित किया तो वहीं एक अन्य पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त आर के त्रिवेदी नब्बे के दशक में गुजरात के राज्यपाल रहे। इसी प्रकार देश के पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह गाजियाबाद सीट से दो बार लोकसभा में पहुंचे और केन्द्र में राज्य मंत्री बने।

Created On :   12 Sept 2025 8:56 PM IST

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