एक एेसा इंजीनियर, जिसने बदली किसानों की राह

An engineer who changed the way to the farmers due to this reason
एक एेसा इंजीनियर, जिसने बदली किसानों की राह
एक एेसा इंजीनियर, जिसने बदली किसानों की राह

डिजिटल डेस्क, नागपुर। नीरज दुबे। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मालगुजारी तालाबों काे फ्री राइट होल्ड देने के निर्देश के बाद सरकार ने इनकी अनदेखी शुरू कर कर दी। इसके चलते मालगुजारी तालाबों का संगोपन और व्यवस्थापन सरकारी स्तर पर रोक दिया गया, नतीजा इन तालाबों की स्थिति बद से बदतर हो गई। पिछले कई सालों से देखभाल और सफाई के अभाव में तालाबों का अस्तित्व खत्म होने पर था। भंडारा जिले के 28 में से 22 तालाब फूटने की कगार पर आ गए थे। तालाबों के भीतर स्रोत में करीब 4 फीट मिट्टी का जमाव हो गया था।

सिंचाई विभाग के कार्यकारी अभियंता के रूप में शिरीष आप्टे ने तालाबों के पुनर्निर्माण और सफाई का फैसला लिया। सिंचाई  विभाग के ट्रक, जेसीबी लगाकर तालाबों की सफाई कर 16 लाख क्यूबिक मीटर मलबा निकाला। सफाई के दौरान निकले करीब 5 लाख क्यूबिक मीटर मुरुम से तालाबों के किनारों को बनाया गया। इतना ही नहीं तालाबों से जुड़ी नहरों की सफाई और चौड़ाईकरण को मनरेगा से जोड़ा गया, ताकि जलसंचयन क्षमता में बढ़ोतरी की जा सके। मालगुजारी तालाबों के पुनर्रुद्धार से करीब 33 गांवों की कृषि व्यवस्था में न केवल सुधार आया बल्कि 40 फीट ग्राऊंड वाटर रिचॉर्ज क्षमता में बढ़ोतरी भी हुई है।

मिलती गई नई राहें
मालगुजारी तालाबों की सफाई को देखने के लिए कई अन्य सरकारी विभागों के अधिकारी भी पहुंचे। इस दौरान अभियंता शिरीष आप्टे को मत्स्य विभाग ने तालाबों के भीतर शेल्टर पिट बनाने का सुझाव दिया। गर्मी के दिनों में जलस्तर कम होने पर तालाब के भीतर शेल्टर पीट से मछलियों की सुरक्षा होती है। करीब तीन सालों तक गर्मी के दिनों में सुरक्षित रहने पर नेचरल ब्रीडिंग के लिए मछलियां तैयार हो सकती हैं। इस सलाह के बाद तालाबों के भीतर शेल्टर पिट बनाने से अतिरिक्त आमदनी के रूप में किसानों को मत्स्य पालन भी संभव हो पाया है।

कृषि के साथ ही पशुपालन के लिए नागझिरा बंपर जोन में 6 तालाबों से जानवरों को पानी सुविधा मिली है। करीब दो सालों की मशक्कत के बाद तालाबों ने पुनरुद्धार से सिंचाई सुविधा उपलब्ध हुई। इससे कृषि के साथ पशुपालन को बढ़ावा मिला और तालाबों से जुड़े गांवों में गोबर गैस संयंत्र और दुग्ध व्यवसाय भी संभव हुआ। गोबर गैस संयंत्र से जहां इलाके के जंगलों की सुरक्षा हुई और वायु प्रदूषण पर रोक भी लगी। भंडारा जिले के 33 गांवों में धान के साथ ही गन्ना उत्पादन का क्षेत्र भी बढ़ चुका है। सन 2008 में भंडारा जिले में 42,000 रुपए प्रति व्यक्ति सालाना आमदनी थी। तालाबों के व्यवस्थापन से सन 2012 में प्रति व्यक्ति सालाना आमदनी 67,000 रुपए तक हो गई। इतना ही नहीं मालगुजारी तालाब के साथ ही अन्य पारंपरिक जलस्रोत की सफाई और व्यवस्थापन गोंदिया, गड़चिरोली, चंद्रपुर में पब्लिक मूवमेंंट बन चुकी है।

बन गई सक्सेस स्टोरी
सरकारी अधिकारी होने के बावजूद भी अभिंयता शिरीष आप्टे ने अपने दायित्वों को दायरों तक सीमित नहीं रहने दिया। सरकारी संसाधनों और ज्ञान के समन्वय से पारंपरिक तालाबों का नए सिरे से संगोपन कियाै। यही वजह है कि इतिहास की धरोहर केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं रहते हुए जनता के वर्तमान जीवन का हिस्सा बन गई। वर्तमान में भंडारा के जांभाेरा गांव में 230 मकान हैं और यहां 70 ट्रैक्टर के अलावा कृषि के साधन मौजूद है। अभियंता शिरीष आप्टे के लगातार प्रयासों की बदौलत राज्य सरकार के अनुरोध पर टाटा ट्रस्ट ने पांच स्थानों को विकास योजना में शामिल किया है। टाटा ट्रस्ट आगामी तीन सालों में 35 करोड़ के सीएसआर फंड से चंद्रपुर, भंडारा, गड़चिरोली, गोंदिया एवं उमरेड, कुही के कई तालाबों का पुनर्रुद्धार करेगा।

"आज भी खरे हैं, तालाब"

सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद अनुपम मिश्रा ने अपनी पुस्तक "आज भी खरे हैं, तालाब" में प्राचीन भारतीय कृषि व्यवस्था का उल्लेख किया है। इस पुस्तक में अंग्रेजों से पहले कृषि सिंचाई के लिए स्थानीय तालाब व्यवस्था की जानकारी दी गई है। सन 2005-06 में अनुपम मिश्रा ने विनोबा विचार केंद्र में संबोधन के दौरान अंग्रेजी सरकार के पहले की कृषि आधारित व्यवस्था की जानकारी दी थी। उन्होंने कहा था कि इस दौर में भारत में निर्मित सिल्क, मसाले समेत कई खाद्य सामग्री को व्यवसाय के लिए अन्य देशों में भी भेजा जाता था। मजबूत कृषि और उत्पादन व्यवस्था से स्थानीय जनता की संपन्नता का अर्थशास्त्र तत्कालीन राजकर्ताओं ने तैयार की थी, लेकिन अंग्रेजों के शासन में स्थानीय कृषि और उत्पादन व्यवस्था की कमर तोड़ दी। उत्तर एवं दक्षिण भारत के कई इलाकों में कृषि और स्थानीय सामग्री उत्पादन के लिए तालाब थे, लेकिन इन तालाबों का संगोपन और व्यवस्थापन नहीं हो पाने से ये मृतप्राय हो गए।

अनुपम मिश्रा ने अपनी पुस्तक में कृषि व्यवस्था को मजबूत करने के लिए जलस्रोत की संरचना का ब्योरा दिया है। अनुपम मिश्रा की जानकारी के आधार पर जलसंपदा विभाग के अधिकारी शिरीष आप्टे ने पारंपरिक जल संसाधनों के इतिहास और प्राचीन पुस्तकों का अध्ययन शुरू किया। प्राकृतिक जलस्रोत एवं कृषि सिंचाई व्यवस्था की संरचना को समझा। अध्ययन के दौरान ही सन 2008 में भंडारा में लघुसिंचाई विभाग में कार्यकारी अभियंता के रूप में श्री आपटे की नियुक्ति हुई। इस दौरान विभाग के अंतर्गत 28 मालगुजारी तालाब क्षेत्र होने की जानकारी सामने आई। जिलाधिकारी कार्यालय में मौजूद 1908 के इम्पीरियल गैजेट एवं दस्तावेजों से मालगुजारी तालाबों की संरचना और संस्कृति की जानकारी हासिल की।

Created On :   8 April 2018 12:52 PM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story