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बच्चों को संस्कारों की सौगात दें
डिजिटल डेस्क, नागपुर। संस्कारों की पहली कड़ी घर से शुरू होती है। घर से ही बच्चों के संस्कार की शुरुआत होती है। अभिभावकों को इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसके बाद दूसरी जिम्मेदारी स्कूल के शिक्षकों एवं शिक्षिकाओं की होती है, जो बच्चों के अच्छे संस्कारों का बोध कराते हैं। सिर्फ संस्कार ही नहीं, बल्कि इसके बारे में जानकारी भी होनी चाहिए। यह कहना है आयचित मंदिर रोड भोसला वेद शाला निवासी 78 वर्षीय मीनाक्षी पाध्ये का।
आप युवा पीढ़ी से क्या कहना चाहती हैं। आपकी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण पल कौन सा था और आपकी सफलता का राज क्या है।
मेरे जीवन का हर पल महत्वपूर्ण है। परिवार में किसी का भी जन्मदिन हो, शादी की सालगिरह हो सभी मिलकर मनाते हैं। हर दिन त्योहार सा लगता है। मेरी सफलता परिवार की एकता में है। मैं अपने को बहुत खुशनसीब मानती हूं कि परिवार के लोगों का साथ है।
}आप किसे अपनी विरासत मानती हैं। भविष्य को बेहतर बनाने में अनुभव किस तरह काम आते हैं।
मेरे संस्कार ही मेरी विरासत हैं। मेरा मानना है कि परिवार बालक की प्रथम पाठशाला है, तो माता-पिता प्रथम शिक्षक। परिवार में प्रत्येक सदस्य का दायित्व है कि बच्चों में भौतिक संसाधनों के स्थान पर संस्कारों की सौगात दें। भविष्य को बेहतर बनाने के लिए परिवार का साथ आवश्यक है। एकता में ही शक्ति होती है।
}आप युवा पीढ़ी का किस तरह से मार्गदर्शन करना चाहेंगे। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए उन्हें क्या करने की जरूरत है।
वर्तमान समय में यह महसूस किया जा रहा है कि जैसे-जैसे शिक्षित नागरिकों का प्रतिशत बढ़ रहा है, वैसे-वैसे समाज में जीवन मूल्यों में गिरावट आ रही है। हमें मूल्यों के सौंदर्य का बोध होना चाहिए। आज के युवा तनाव, अवसाद और अनुशासनहीनता के शिकार हैं। इसका कारण पाश्चात्य संस्कृति, विद्यालय या समाज ही नहीं, बल्कि संस्कारों के प्रति हमारी उदासीनता भी है।
Created On :   3 Oct 2021 6:08 PM IST