चिंता में तेल्हारा तहसील के केला उत्पादक किसान

डिजिटल डेस्क, हिवरखेड़. कड़ाके की ठंड और कोहरे के के कारण अचानक केले की फसल पर सिंगाटोक वायरस का प्रकोप हो गया है।द जिससे केले की फसल को करपा बीमारी ने घेर लिया है। तेल्हारा तहसील में हिवरखेड़ परिसर समेत तहसील के विभिन क्षेत्र में केले की फसल पर करपा बीमारी दिखाई देने से किसान चिंताग्रस्त दिख रहे हैँ। किसानों ने अगर इस बीमारी पर सहीं ढंग से दवाईयों का छिड़काव और रोग प्रबंधन के लिए सही उपाय नहीं किए तो उत्पादन में कमी आना तय है। इस बीमारी के चलते केला उत्पादक किसान चिंताग्रस्त नजर आ रहे हैं।
बारिश के कारण मौसम में नमी गई है। वहीं अचानक ठंड बढ़ गई है। तेल्हारा परिसर में मौसम इस मिजाज से केले की फसल पर बुरा असर पड़ रहा है। मौसम में बदला से केला फसल पर करपा बीमारी (सिंगाटोका वायरस) का प्रकोप बढ़ रहा है। तेल्हारा तहसील के हिवरखेड़ समेत अन्य कई गांवों में जब किसनों से इस बीमारी के बारे में शिकायते आई तब कृषि विभाग के विशेषज्ञों ने इस परिसर के केला उत्पादन क्षेत्र में भ्रमण किया। फसल का जायजा लिया तब इस फसल पर करपा रोग के लक्षण दिखाई देने पर वैज्ञानिकों ने फसल बचाने के लिए किसानों को जरूरी सलाह दी। करपा बीमारी प्रबंधन के बारे में उन्हें समझाया गया। केले पर आने वाली बीमारी करपा है। सिंगाटोका वायरस से केले की फसल पर करपा रोग का प्रकोप बढ़ने लगता है। रोग पत्तों से शुरु होकर धीरे-धीरे पूरे पौधे पर लग जाता है। फसल को बचाने के लिए कई तरह के किटनाशकों का इस्तमाल करना अावश्यक होता है। कई बार रोग प्रबंधन के उपाय के बावजूद भी कोई असर नहीं होता तब केले के उत्पादन में की आने की संभावना बढ़ जाती है, इसी चिंता में किसान दिख रहे हैं। िहवरखेड़ परिसर के हिंगणी, सौंदला, दानापुर, हिंगणी बु.अड़गांव, खंडाला, वारखेड़, वारी, बेलखेड़ समेत तहसील के कई गांव में केले का उत्पादन होता है।
हिवरखेड़ परिसर के हिंगनी बु. के किसान सचिन कोरडे के खेत में तहसील कृषि अधिकारी नरेंद्र राठोड ने केले की फसल का जायजा लिया। केली फसल पर करपा का प्रकोप दिखाई देने पर उन्होंने किसानों को मार्गदर्शन किया। इस बीमारी में फसल के पत्तों पर लक्षण दिखाई देते हैं। उन्होंने कहा की ठंड के मौसम में सिंगाटोका वायरस के कारण केला फसल पर करपा रोग लगता है। इसकी शुरुआत पत्तों से होती है। पत्ते सूखने लगते हैं। बीमारी धीरे-धीरे पूरे पौधे को जकड़ लेती है। इससे फसल पूरी तरह खराब हो जाती है। उत्पादन पर भी बुरी तरह असर पड़ता है। फल छोटा लगता है। फल असमय पक जाता है। इस बीमारी के कई कारण है। इस बीमारी पर नियंत्रण पाना संभव है। खेती में उचित रोटेशन, रोगग्रस्त पत्तियों को नष्ट करने और फफूदी नियंत्रण के प्रयोग से रोग को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। केले की रोपाई नदी नालों के किनारे और गीली मिट्टी में नहीं करनी चाहिए।केले की बुवाई मई के अंतिम सप्ताह या जून के पहले पखवाड़े में करना चाहिए। साथ ही उचित प्रबंधन करने पर इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है,ऐसी जानकारी नरेंद्र राठोड ने दी है।
Created On :   9 Jan 2023 7:32 PM IST